February Pradosh Vrat 2025: भगवान शिव को समर्पित प्रदोष व्रत का हिंदू धर्म में विशेष महत्व है। शिवपुराण में भी इस व्रत का महत्व बताया गया है। इस दिन माता पार्वती और भोलेनाथ की पूजा-अर्चना की जाती है। धार्मिक मान्यता है कि इस व्रत को करने से मन की सारी इच्छाएं पूरी होती हैं और जीवन में चल रही परेशानियां दूर होती हैं। अगर आप भी इस व्रत को करने की सोच रहे हैं, तो चलिए जानते हैं कि फरवरी माह का दूसरा प्रदोष व्रत कब रखा जाएगा? साथ ही, जानिए इसका महत्व और पूजा का शुभ मुहूर्त।
फरवरी का दूसरा प्रदोष व्रत कब रखा जाएगा?
हिंदू पंचांग के अनुसार, फरवरी महीने का दूसरा प्रदोष व्रत 25 फरवरी 2025 दिन मंगलवार को रखा जाएगा। इस दिन दोपहर 12:48 बजे तक द्वादशी तिथि रहेगी, उसके बाद त्रयोदशी तिथि शुरू हो जाएगी। प्रदोष व्रत हमेशा त्रयोदशी तिथि के दौरान ही किया जाता है, इसलिए इस दिन व्रत रखना शुभ माना जाएगा। वहीं, फरवरी माह का दूसरा प्रदोष व्रत मंगलवार के दिन पड़ रहा है इसलिए इसे भौम प्रदोष व्रत कहा जाएगा।
भौम प्रदोष व्रत 2025 पूजा शुभ मुहूर्त
25 फरवरी शुभ चौघड़िया दोपहर में 3:26 बजे से 4:52 बजे तक रहेगा। इसके बाद लाभ चौघड़िया शाम में 7:52 बजे से 9:26 बजे तक रहेगा।
भौम प्रदोष व्रत महत्व
भौम प्रदोष व्रत करने से भगवान शिव की विशेष कृपा मिलती है। कहा जाता है कि भौम प्रदोष व्रत करने से शरीर से जुड़ी बीमारियां ठीक हो जाती हैं, कर्ज से राहत मिलती है और मानसिक तनाव भी दूर होता है। इसके अलावा कुंडली में चंद्र दोष से भी छुटकारा मिलता है।
प्रदोष पर करें इन मंत्रों का जाप
ॐ नमः शिवाय
ॐ महादेवाय नमः
ॐ कार्तिकेय नमः
ॐ पार्वती नमः
ॐ हौं जूं सः ॐ भूर्भुवः स्वः ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय मामृतात् ॐ स्वः भुवः भूः ॐ सः जूं हौं ॐ।
शिव आरोग्य मंत्र
माम् भयात् सवतो रक्ष श्रियम् सर्वदा।
आरोग्य देही में देव देव, देव नमोस्तुते।।
ओम त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्।
उर्वारुकमिव बन्धनान मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्।।
महामृत्युंजय मंत्र
ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्
उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्॥
शिव गायत्री मंत्र
ऊँ तत्पुरुषाय विद्महे महादेवाय धीमहि, तन्नो रुद्रः प्रचोदयात्।
शिव स्तुति मंत्र
द: स्वप्नदु: शकुन दुर्गतिदौर्मनस्य, दुर्भिक्षदुर्व्यसन दुस्सहदुर्यशांसि।
उत्पाततापविषभीतिमसद्रहार्ति, व्याधीश्चनाशयतुमे जगतातमीशः।।
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