शास्त्री कोसलेंद्रदास

नातन वैदिक धर्म के विभिन्न पर्वों में प्रत्येक पक्ष में आने वाली एकादशी असाधारण महत्त्व रखती है। इन एकादशियों में भी देव-उत्थापन यानी देव-उठनी एकादशी का माहात्म्य अनुपम है। कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को देव प्रबोधिनी कहा जाता है क्योंकि इस तिथि को भगवान श्रीहरि का जागरण होता है। चातुर्मास्य व्रत का समापन होता है। यही कारण है कि इस तिथि से विवाह जैसे दूसरे मांगलिक कृत्यों का आरंभ होता है। इस तिथि को अनेक मंदिरों, आश्रमों एवं घरों में भगवान शालिग्राम के साथ माता तुलसी की विवाह विधि संपन्न होती है, जिसे तुलसी-विवाह कहते हैं।

एकादशी पर करें उपवास
महाभारत एवं पद्मपुराण में ऐसा आया है कि मनु द्वारा व्यवस्थित कृत्य तथा वैदिक कृत्य कलियुग में नहीं किए जा सकते, अत: धर्मराज युधिष्ठिर ने बहुत सरल, अल्पव्यय-साध्य, अल्पकष्टकर किंतु अत्यधिक फल देने वाले ऐसे मार्ग की घोषणा की, जो पुराणों का सार है। यह मार्ग है – दोनों पक्षों की एकादशी को अन्न नहीं खाना चाहिए और जो ऐसा करता है वह नरक नहीं जाता। वराहपुराण में आया है कि जो व्यक्ति एकादशी का व्रत आरम्भ करता है और फिर मूर्खतावश छोड़ देता है तो वह बुरी दशा को प्राप्त होता है।

महिमा अपार
पुराणों एवं मध्यकाल के निबन्धों में एकादशी के विषय में विशाल साहित्य है। एकादशी पर पृथक रूप से कई निबन्ध हैं, यथा – शूलपाणि का एकादशीविवेक और रघुनन्दन का एकादशीतत्त्व। यदि पुराणों की जांच-पड़ताल करें तो पता चलता है कि उनमें कुछ तो एकादशी के दिन भोजन करना वर्जित करते हैं और कुछ एकादशी व्रत में फलाहार की व्यवस्था करते हैं।
इस पर्व पर अन्न में है पाप
नारदीयपुराण में आया है – सभी प्रकार के पाप एवं ब्राह्मण-हत्या के समान अन्य पाप हरि के दिन यानी एकादशी को अन्न में आश्रय लेते हैं इसलिए जो एकादशी के दिन भोजन करता है वह उन पापों को खाता है। पुराण बार-बार यही कहते हैं – जब हरि का दिन आता है तो भोजन नहीं करना चाहिए। मत्स्य एवं भविष्यपुराण में आया है कि जब व्यक्ति एकादशी को उपवास करता है और द्वादशी को खाता है, चाहे शुक्ल पक्ष में या कृष्ण पक्ष में, वह विष्णु के सम्मान में बड़ा व्रत करता है। वैष्णवों को सभी एकादशियों पर उपवास करना होता है। नारदपुराण में एकादशी-माहात्म्य पर एक लम्बी उक्ति है – एकादशी व्रत से उत्पन्न अग्नि से सहस्रों जीवनों में किए गए पापों का ईंधन जलकर भस्म हो जाता है। एकादशी स्वर्ग एवं मोक्ष प्रदान करती है। राज्य एवं पुत्र देती है।
रात्रि में करें जागरण और विष्णु-पूजन

पद्मपुराण ने एकादशी-उपवास की प्रशंसा की है-एकादशी पर उपवास करके हरि को प्रसन्न करने के लिए रात्रि में जागना चाहिए और विष्णु मंदिर को सजाना चाहिए। जो व्यक्ति तुलसीदलों से श्रीहरि की पूजा करता है, वह एक दल से ही करोड़ों यज्ञों का फल पाता है। वराहपुराण में आया है कि ब्रह्मा ने कुबेर को एकादशी दी और कुबेर ने उसे उस व्यक्ति को दिया, जो संयमित, शुद्ध रहता है। केवल वहीं खाता है जो पका हुआ नहीं है; कुबेर प्रसन्न होने पर सब कुछ देता है।

एकादशी पर फलाहार
लोगों की दुर्बलता को ध्यान में रखकर ऋषियों ने एकादशी पर सम्पूर्ण उपवास के नियम को ढीला कर दिया। नारदपुराण में आया है – मूल, फल, दूध एवं जल का सेवन मुनीश्वर लोग एकादशी पर कर सकते हैं। मत्स्यपुराण में आया है कि जो एकादशी को उपवास करने में अशक्त हों, उन्हें नक्त भोजन (केवल रात्रि में) करना चाहिए, यदि कोई बीमार हो तो वह अपनी ओर से अपने पुत्र या किसी अन्य को उपवास करने को कह सकता है। एकादशी पर किए जाने वाले उपवास की अन्तर्हित धारणा आध्यात्मिक सिद्ध होती है। यह मन का अनुशासन है।

बारह महीने में 24 एकादशी
एकादशी का धार्मिक स्वरूप व्यापक है और बारह महीनें की चौबीस एकादशियों एवं मलमास की दो एकादशियों को विभिन्न संज्ञाएं हैं। चैत्र शुक्ल से लेकर एकादशी के 24 नाम क्रमश: ये हैं – कामदा, वरूथिनी, मोहिनी, अपरा, निर्जला, योगिनी, शयनी, कामिका, पुत्रदा, अजा, परिवर्तिनी, इन्दिरा, पापांकुशा, रमा, प्रबोधिनी, उत्पत्ति, मोक्षदा, सफला, षट्पदा, जया, विजया, आमलकी और पापमोचनी। मलमास की दो एकादशियों के नाम पद्मपुराण के अनुसार कमला व कामदा हैं किंतु अहल्याकामधेनु में कैवल्यदा एवं स्वर्गदा हैं।

संयम और सत्य आचरण
एकादशी व्रत में कुछ प्रतिबन्ध भी हैं। किसी व्यक्ति के मृत हो जाने पर भी यह व्रत नहीं टूटता। क्षमा, सत्य, दया, दान, शौच, इन्द्रिय-निग्रह, देव-पूजा, होम, सन्तोष एवं अस्तेय नामक सामान्य धर्म सभी व्रतों में पालित होते हैं। शाक, मांस, मसूर की दाल, मैथुन, द्यूत, अधिक जलसेवन का त्याग करना चाहिए। मत्स्यपुराण के अनुसार ये बारह त्याज्य हैं – कांसे के पात्र, मांस, सुरा, मधु, तैल, असत्य भाषण, व्यायाम, यात्रा, दिवास्वाप (दिन का शयन), धनार्जन, तिलपिष्ट एवं मसूर की दाल।