Eid-ul- Adha 2023: इस्लाम धर्म के प्रमुख त्योहारों में से एक ईद-उल-अज़हा यानी बकरीद होता है। इस्लामी कैलेंडर के अनुसार,हर साल आखिरी माह ज़ु अल-हज्जा की 10वीं तारीख को बकरीद का पर्व मनाया जाता है। इस पर्व को कुर्बानी के पर्व के तौर पर मनाते हैं। इस दिन नमाज़ पढ़ने के बाद बकरे की कुर्बानी दी जाती है। इस साल बकरीद का पर्व 29 जून 2023, गुरुवार को मनाया जाएगा। जानिए ईद-उल-अज़हा के बारे में खास बातें।
बकरीद नमाज़ का समय
जामा मस्जिद में बकरीद की नमाज़ सुबह 6 बजकर 45 मिनट में अदा की जाएगी। इसके साथ ही रजा मस्जिद में सुबह 7 बजकर 30 मिनट पर होगी।
तीन हिस्सों में बांटा जाता है बकरे का गोश्त
कुर्बानी के तौर पर बकरे की बलि दी जाती है। इस बकरे को तीन भाग में बांटा जाता है। जहां पहला भाग घर के लिए, दूसरा भाग किसी करीबी के लिए और तीसरा भाग किसी जरूरतमंद या गरीब को दिया जाता है। बकरीद के पर्व को दीन और नेकी की राह में चलने को दर्शाता है।
ईद-उल-अज़हा में क्यों देते हैं बकरे की कुर्बानी?
इस्लाम धर्म के अनुसार, हज़रत इब्राहीम अल्लाह के पैगंबर थे। एक बार अल्लाह ने हजरत साहब की इम्तिहान लेने की सोची। ऐसे में उन्होंने हज़रत साहब को सपने में अपनी सबसे प्यारी चीज की कुर्बानी मांग ली। ऐसे में जब वह जगे, तो उन्होंने सोचा कि आखिर ऐसी कौन सी चीज है, जो उन्हें अपनी जान से प्यारी है। ऐसे में उन्हें अपने बेटे का ख्याल आया। बता दें कि हजरत इब्राहिम अपने इकलौते बेटे इस्माइल से सबसे अधिक मोहब्बत करते थे। लेकिन जब अल्लाह ने अपनी प्यारी चीज की कुर्बानी की बात की तो उन्होंने अपने ही बेटे को कुर्बान करने के लिए तैयार हो गए। ऐसे में जब हज़रत साहब अपने बेटे की कुर्बानी देने के लिए जा रहे थे, तो उन्हें रास्ते में एक शैतान मिला और उनसे बोला कि आप अपने बेटे की बजाय किसी जानवर की कुर्बानी दे सकते हैं। हज़रत साहब को ये बात काफी अच्छी लगी, लेकिन उन्होंने सोचा कि ऐसे तो अल्लाह को धोखा देना है और उनके हुक्म की नाफरमानी होगी। फिर उन्होंने अपने बेटे को कुर्बान करना सही समझा। ऐसे में वह अपने बेटे को साथ लेकर आगे बढ़ गए। बेटे की कुर्बानी देते वक्त उन्होंने अपनी आंखों पर पट्टी बांध ली ताकि बेटे का मोह अल्लाह की राह में बाधा न बने। कुर्बानी के बाद जब उन्होंने जब अपनी आंख से पट्टी हटाई तो देखकर हैरान रह गए कि उनका बेटा सही सलामत खड़ा है और उसकी जगह एक डुम्बा (एक प्रकार का बकरा) कुर्बान हो गया है। उसके बाद से ही बकरे की कुर्बानी देने का चलन शुरू हुआ।
नमाज़ के बाद दी जाएगी कुर्बानी
ईद उल अज़हा के दिन नमाज़ के बाद बकरे की कुर्बानी दी जाती है। आमतौर पर माना जाता है कि छोटे से बकरे को लाकर उनका लालन पालन एक औलाद की तरह किया जाता है। ऐसे में जब व्यक्ति उसकी कुर्बानी देता है, तो वह व्यक्ति भी भाव-विभोर हो जाता है। लेकिन आज के समय में लोग कुछ दिन पहले या फिर उसी दिन लाकर बकरे की कुर्बानी दे देते हैं। कुर्बानी के समय परिवार के किस एक सदस्य के नाम से ज़िबह (हलाल) किया जाता है।