बकरीद को ईद-उल-अजहा भी कहा जाता है। ये त्योहार इस्लामिक कैलेंडर के आखिरी महीने जु-अल-हिज्ज में मनाया जाता है। मुसलमान इस दिन नमाज अदा करने के बाद बकरे की कुर्बानी देते हैं। मगर क्या आप जानते हैं इस दिन बकरे की कुर्बानी देना अहम क्यों माना गया है। दरअसल यह त्योहार अपनी सबसे प्रिय चीज को अल्लाह के लिए कुर्बान कर देने का होता है। लेकिन इस पर्व पर बकरे की कुर्बानी देने से जुड़ी एक ऐतिहासिक घटना है। जानिए क्या है बकरीद का इतिहास और क्या है कुर्बानी का अर्थ ?
इस्लामिक मान्यताओं के अनुसार हजरत इब्राहिम को अल्लाह का पैगंबर माना गया है। इब्राहिम हमेशा सभी की भलाई के काम में जुटे रहे और उनका जीवन जनसेवा में ही बीता। लेकिन 90 साल की उम्र तक भी उनकी कोई संतान नहीं हुई। उन्होंने खुदा की इबादत की और उन्हें चांद-सा बेटा मिला जिसका नाम उन्होंने इस्माइल रखा।
इब्राहिम को एक दिन सपने में खुदा दिखे जिन्होंने उन्हें आदेश दिया कि वह अपनी सबसे प्यारी चीज को कुर्बान कर दे। खुदा के आदेश का पालन करते हुए उन्होंने अपने सभी प्रिय जानवरों को एक-एक करके कुर्बान कर दिया। लेकिन फिर से उन्हें खुदा ने सपने में आकर उनकी सबसे प्रिय चीज कुर्बान करने के लिए कहा। तब उन्होंने अपने बेटे को कुर्बान करने का प्रण लिया। बेटे की कुर्बानी देने से पहले उन्होंने खुद की आंख पर पट्टी बांध ली और बेटे की कुर्बानी दे दी। ऐसा करने के बाद जब इब्राहिम ने आंख से पट्टी हटाई देखा तो उन्होंने देखा कि उनका बेटा तो खेल रहा है। अल्लाह ने उसकी निष्ठा देख उसके बेटे के स्थान पर बकरे की कुर्बानी दिलवा दी। ऐसा माना जाता है कि तभी से बकरे की कुर्बानी देने की परंपरा चली आ रही है।
ईद मुबारक मैसेज:
ईद लेकर आती है ढेर सारी खुशियां,
ईद मिटा देती है इंसान में दुरियां।
ईद है खुदा का एक नायाम तबारोक,
इसीलिए कहते हैं ईद मुबारक
कोई तुम्हारी फिक्र करे तो बताना।
ईद मुबारक तो हर कोई कह देगा,
कोई हमारे अंदाज में कहे तो बताना।
ईद मुबारक
चुपके से चांद की रौशनी छू जाए आपको,
धीरे से ये हवा कुछ कह जाए आपको।
दिल से जो चाहते हो मांग लो खुदा से,
हमारी दुआ हैं इस ईद वो मिल जाए आपको।
आप सभी को ईद मुबारक

