Durva Ashtami 2023: हिंदू धर्म में दूवा अष्टमी का विशेष महत्व है। हिंदू पंचांग के अनुसार, भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को दूर्वा अष्टमी का पर्व मनाया जाता है। इस साल 22 सितंबर को पड़ रही है। इस दिन भगवान गणेश को दूर्वा चढ़ाने की परंपरा है। इस दिन गणपति जी को दूर्वा चढ़ाने से व्यक्ति को हर तरह के पापों से मुक्ति मिल जाती हैं। इसके साथ ही दूब चढ़ाने से व्यक्ति को हर तरह की परेशानियों से छुटकारा मिल जाता है। इसके साथ ही सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है।

दूर्वा अष्टमी 2023 शुभ मुहूर्त

दूर्वा अष्टमी  तिथि- 22 सितम्बर 2023

पूर्वविद्धा समय –  दोपहर 01 बजकर 35 मिनट से  06 बजकर 18 मिनट तक
अष्टमी तिथि प्रारम्भ – 22 सितम्बर को दोपहर 01 बजकर 35 मिनट से शुरू
अष्टमी तिथि समाप्त – 23 सितम्बर को दोपहर 12 बजकर 17 मिनट तक

दुर्वा अष्टमी पूजा विधि

इस दिन सूर्योदय मे उठकर सभी कामों से निवृत्त होकर स्नान कर लें। इसके बाद महिलाएं व्रत का संकल्प लें। भगवान गणेश, शिव जी के साथ अन्य देवी-देवता को फूल-माला, सिंदूर, कुमकुम, चंदन, अक्षत चढ़ाने के साथ भोग लगाएं। इसके साथ ही गणेश जी को 21 जोड़े दूर्वा अवश्य चढ़ाएं।  महिलाएं अपने बच्चों की लंबी उम्र और समृद्धि के लिए इस व्रत को रखती हैं। इसके साथ ही गणपति बप्पा की कृपा से वैवाहिक जीवन में शांति और सद्भाव बना रहता है। इसके साथ ही अनंत धन और सौभाग्य की प्राप्ति होती है।

दूर्वा अष्टमी का महत्व

हिंदू धर्म में दूर्वा घास का विशेष धार्मिक महत्व है। यह समृद्धि का प्रतीक है। इसका इस्तेमाल धार्मिक और मांगलिक कार्यों में किया जाता है।  दूर्वा घास का महत्व भी स्वयं भगवान कृष्ण ने राजा युधिष्ठिर को समझाया था। भगवान कृष्ण ने कहा कि जो व्यक्ति धार्मिक रूप से दूर्वा अष्टमी पूजा करता है, उसे अपनी विरासत को पीढ़ी-दर-पीढ़ी आगे बढ़ाने का आशीर्वाद मिलेगा। किंवदंतियों के अनुसार माना जाता है कि भगवान विष्णु की बांह से कुछ बाल गिरे थे,जो दूर्वा घास बन गए। ऐसा माना जाता है कि समुद्र मंथन के बाद जब असुर और देवता ‘अमृत’ ले जा रहे थे, तब अमृत की कुछ बूंदें दूर्वा घास पर गिर गई और तब से यह शुभ और अमर हो गई। जो व्यक्ति दूर्वा अष्टमी के दिन पूरे समर्पण भाव से दूर्वा घास की पूजा करता है उसकी सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। इसके साथ ही हर तरह के पापों से मुक्ति मिल जाती है। 

दूर्वा चढ़ाते समय बोलें ये मंत्र

  • इदं दूर्वादलं ऊं गं गणपतये नमः
  • ओम् गं गणपतये नमः
  • ओम् एकदंताय विद्महे, वक्रतुण्डाय धीमहि, तन्नो दंती प्रचोदयात्
  • ओम् श्रीं ह्रीं क्लें ग्लौम गं गणपतये वर वरद सर्वजन जनमय वाशमनये स्वाहा तत्पुरुषाय विद्महे वक्रतुंडाय धिमहि तन्नो दंति प्रचोदयत ओम शांति शांति शांतिः
  • ओम् वक्रतुण्डैक दंष्ट्राय क्लीं ह्रीं श्रीं गं गणपते वर वरद सर्वजनं मे वशमानय स्वाहा

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