Durga Puja 2023: दुर्गा पूजा देश भर में मनाए जाने वाले सबसे बड़े हिंदू त्योहारों में से एक माना जाता है। मान्यता है कि मां दुर्गा ने महिषासुर नामक राक्षस का वध किया था इसी के कारण इसे दुर्गोत्सव या शरदोत्सव के रूप में मनाते हैं। यह त्योहार बंगाली समुदाय के लिए बहुत ही खास होता है। कैलेंडर के अनुसार, आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि के साथ दुर्गा पूजा आरंभ होती है, जो पांच दिनों तक चलते हुए दशमी तिथि को समाप्त हो जाती है। इस खास मौके पर मां दुर्गा की मूर्ति स्थापित की जाती है और विधि-विधान से पूजा अर्चना की जाती है। आइए जानते हैं दुर्गा पूजा के इन पांच शुभ दिनों का महत्व।

दुर्गा पूजा 2023 तिथि

इस साल दुर्गा पूजा 20 अक्टूबर 2023 से शुरू होगी। बता दें कि दुर्गा पूजा आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि यानी शारदीय नवरात्रि के छठे दिन से शुरू होती है और इसका समापन विजयादशमी को होगा। दुर्गा पूजा के पहले दिन को कल्परम्भ कहा जाता है।

दुर्गा पूजा 2023 कैलेंडर

20 अक्टूबर: मां दुर्गा को आमंत्रण एवं अधिवास, कल्परम्भ
21 अक्टूबर:  नवपत्रिका पूजा
22 अक्टूबर: कुमारी पूजा, संधि पूजा
23 अक्टूबर:  महानवमी, नवमी होम, दुर्गा बलिदान
24 अक्टूबर:  सिंदूर उत्सव, दुर्गा विसर्जन, विजयादशमी

दुर्गा पूजा का महत्व

दुर्गा पूजा राक्षसराज महिषासुर पर देवी दुर्गा की जीत का जश्न के रूप में मनाते हैं। दुर्गा पूजा का पहला दिन महालया है, जो देवी के आगमन का प्रतीक है। महालया आश्विन अमावस्या के दिन होता है।

बंगाली समाज शारदीय नवरात्रि की प्रतिपदा तिथि से पंचमी तक दुर्गा पूजा की तैयारी शुरू कर देते हैं। तैयारियों के दौरान दुर्गा मां की मूर्ति को सजाया जाता है और फिर छठे दिन से शक्ति की पूजा की जाती है। मां दुर्गा के महिषासुर मर्दिनी रूप की पूजा बंगाली लोग करते हैं। लोग पंडालों में दुर्गा मां की मूर्ति के साथ-साथ मां सरस्वती, मां लक्ष्मी, पुत्र गणेश और कार्तिकेय की मूर्ति भी स्थापित करते हैं।

धुनुची नृत्य

दुर्गा पूजा में सप्तमी से लेकर नवमी तक धुनुची नृत्य किया जाता है। धुनुची नृत्य या धुनुची नाच बंगाल की एक बहुत ही प्राचीन परंपरा है जिसकी झलक हर दुर्गा पूजा पंडाल में देखी जा सकती है।

दुर्गा पूजा के पांच दिन

पहला दिन- कल्परम्भ

दुर्गा पूजा का आरंभ कल्परम्भ से शुरू होता है। इसे अकाल बोधन भी कहा जाता है। इस दिन देवी मां को असमय निद्रा से जगाया जाता है, क्योंकि चातुर्मास के दौरान सभी देवी-देवता दक्षिणायन काल में निंद्रा अवस्था में होते हैं। इस दिन उनकी पूजा करके जगाया जाता है।

दूसरा दिन- नवपत्रिका पूजा

नवपत्रिका पूजा का पर्व नवरात्रि की सप्तमी तिथि को मानते हैं। यह दिन मां दुर्गा के सातवें स्वरूप मां कालरात्रि का होता है। नवपत्रिका पूजा में नौ तरह के पत्तों यानी केला, हल्दी, अनार, धान, मनका, बेलपत्र और जौ के को बांधकर इसी से मां को स्नान कराया जाता है। इसके बाद ही मां को सजाकर प्राण प्रतिष्ठा की जाती है।

तीसरा दिन- संधि पूजा

तीसरा दिन संधि पूजा का है। संधि पूजा अष्टमी और नवमी तिथि के बीच आती है। इस दिन पारंपरिक परिधान पहनकर देवी मां की पारंपरिक पूजा की जाती है। संधि पूजा अष्टमी तिथि के अंतिम 24 मिनट और नवमी तिथि के प्रारंभ होने के 24 मिनट बाद की जाती है। इसलिए इस बार संधि पूजा 22 अक्टूबर की रात को 7 बजकर 34 मिनट से लेकर रात के 8 बजकर 22 मिनट तक रहेगा।

चौथा दिन- महानवमी पूजा

नवरात्रि का नौवें दिन मां सिद्धिदात्री का है। इस दिन मां दुर्गा को दही, शहद, दूध आदि का भोग लगाते हैं। इसके साथ ही मां दुर्गा को दर्पण दिखाया जाता है। ये दर्पण वहीं होता है, जो मां दुर्गा के स्वागत के समय इस्तेमाल किया जाता है।

पांचवा दिन- सिंदूर उत्सव

दुर्गा का पूजा का पांचवा और आखिरी दिन के दिन सिंदूर खेला जाता है। इस दिन महिलाएं मां दुर्गा को सिंदूर चढ़ाने के साथ एक-दूसरे के सिंदूर लगाने के साथ गुलाल की तरह उड़ाती है। इसलिए इसे सिंदूर खेला भी कहा जाता है।

सिंदूर खेला के बाद शुभ मुहूर्त में मां दुर्गा की मूर्ति का विधि-विधान के साथ विसर्जन किया जाता है।