Diwali 2025 Mata Laxmi Puja Vidhi, Shubh Muhurat: आज देशभर में दीवाली का पावन पर्व बड़ी धूमधाम और उत्साह के साथ मनाया जा रहा है। इस दिन घरों को दीपों और रोशनी से सजाने के साथ-साथ मां लक्ष्मी और भगवान गणेश की विधिवत पूजा का विशेष महत्व है। ज्योतिषी सलोनी चौधरी के अनुसार, इस शुभ अवसर पर भगवान गणेश, माता लक्ष्मी और धन के देवता कुबेर की विधि-विधान से पूजा करने से घर में समृद्धि और सौभाग्य का वास होता है। आइए जानते हैं लक्ष्मी पूजा का शुभ मुहूर्त के साथ षोडशोपचार पूजा विधि…
दिवाली 2025 लक्ष्मी पूजन का शुभ मुहूर्त (Dilwai 2025 Lakshmi Puja Muhurat)
लक्ष्मी पूजा मुहूर्त- 20 अक्टूबर को शाम 6 बजकर 56 मिनट से 8 बजकर 4 मिनट तक
अवधि- 1 घंटा 8 मिनट
निशिता काल का मुहूर्त – रात 11:41 से 21 अक्टूबर को सुबह 12:31 तक
प्रदोष काल- शाम 5 बजकर 33 मिनट से रात 8 बजकर 8 मिनट तक
वृषभ काल- शाम 6 बजकर 56 मिनट से 8 बजकर 53 मिनट तक
कुंभ लग्न मुहूर्त (अपराह्न) – 15:44 से 15:52
अवधि – 00 घण्टे 08 मिनट्स
वृषभ लग्न मुहूर्त (सन्ध्या) – 18:56 से 20:53
अवधि – 01 घण्टा 56 मिनट्स
सिंह लग्न मुहूर्त (मध्यरात्रि) – 01:26 से 03:41, अक्टूबर 21
अवधि – 02 घण्टे 15 मिनट्स
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दिवाली पर लक्ष्मी जी की षोडशोपचार पूजा विधि (Diwali Ganesh Laxmi Ji Puja Vidhi)
दिवाली पूजन प्रारंभ करने से पहले गणेश जी, लक्ष्मी जी, कुबेर देव और अन्य यंत्रों को स्थापित करने के लिए सबसे पहले सुंदर रंगोली बनाएं। उसके बाद पूजन के लिए एक चौकी रखें और उस पर लाल रंग का कपड़ा बिछाएं। अब उस पर अक्षत (चावल) डालें और फिर गणेश-लक्ष्मी जी की मूर्तियाँ स्थापित करें। साथ ही अन्य देवी-देवताओं की मूर्तियाँ भी रख लें। ध्यान रखें कि गणेश जी के दाईं ओर मां लक्ष्मी की मूर्ति स्थापित हो। पूजन शुरू करने से पूर्व कुशा या आम के पत्तों की सहायता से अपने ऊपर और आसन के नीचे जल छिड़कें, ताकि शुद्धिकरण हो सके।
बोलें-ऊं अपवित्र: पवित्रोवा सर्वावस्थां गतोऽपिवा। य: स्मरेत् पुण्डरीकाक्षं स बाह्याभ्यन्तर: शुचि:॥ इसके बाद अपने हाथ धोते हुए बोले-ऊं केशवाय नम: ऊं माधवाय नम:, ऊं नारायणाय नम:। अब पूजा आरंभ करें।’
इस मंत्र से आसन शुद्ध करें- ऊं पृथ्वी त्वयाधृता लोका देवि त्यवं विष्णुनाधृता। त्वं च धारयमां देवि पवित्रं कुरु चासनम्॥ अब चंदन लगाएं। फिर श्रीखंड चंदन लगाते हुए मंत्र बोलें चन्दनस्य महत्पुण्यम् पवित्रं पापनाशनम्, आपदां हरते नित्यम् लक्ष्मी तिष्ठ सर्वदा।
फिर पूजा का संकल्प लें। इसके लिए अपने हाथों में फूल, सुपारी, एक पान, नारियल, चांदी का सिक्का, मिठाई, लौंग, अक्षत आदि ले लें और इस मंत्र को बोले- ऊं विष्णुर्विष्णुर्विष्णु:, ऊं तत्सदद्य श्री पुराणपुरुषोत्तमस्य विष्णोराज्ञया प्रवर्तमानस्य ब्रह्मणोऽह्नि द्वितीय पराद्र्धे श्री श्वेतवाराहकल्पे सप्तमे वैवस्वतमन्वन्तरे, अष्टाविंशतितमे कलियुगे, कलिप्रथम चरणे जम्बुद्वीपे भरतखण्डे आर्यावर्तान्तर्गत ब्रह्मवर्तैकदेशे पुण्य (अपने नगर/गांव का नाम लें) क्षेत्रे बौद्धावतारे वीर विक्रमादित्यनृपते : 2070 तमेऽब्दे पिंगल नाम संवत्सरे दक्षिणायने हेमंत ऋतो महामंगल्यप्रदे मासानां मासोत्तमे कार्तिक मासे कृष्ण पक्षे अमावस तिथौ रविवासरे हस्त नक्षत्रे आयुष्मान योगे चतुष्पद करणादिसत्सुशुभे योग (गोत्र का नाम लें) गोत्रोत्पन्नोऽहं अमुकनामा (अपना नाम लें) सकलपापक्षयपूर्वकं सर्वारिष्ट शांतिनिमित्तं सर्वमंगलकामनया– श्रुतिस्मृत्यो- क्तफलप्राप्तर्थं— निमित्त महागणपति नवग्रहप्रणव सहितं कुलदेवतानां पूजनसहितं स्थिर लक्ष्मी महालक्ष्मी देवी पूजन निमित्तं एतत्सर्वं शुभ-पूजोपचारविधि सम्पादयिष्ये।
सारी पूजन सामग्री भगवान गणेश और माता लक्ष्मी को अर्पित करें। इसके बाद कलश स्थापना और पूजन करें। सबसे पहले कलश पर स्वास्तिक का चिन्ह बनाएं, फिर उसके गले में मौली (रक्षासूत्र) बांधें और ऊपर आम के पत्ते रखें। अब कलश में जल, गंगाजल, सुपारी, दूर्वा, अक्षत और सिक्का डालें। इसके बाद उसका ढक्कन बंद करके उसमें गेहूं या चावल भर दें। अब एक नारियल लें, उसे लाल कपड़े में लपेटें और कलावा बांधकर कलश के ऊपर स्थापित करें। अंत में, दोनों हाथों में फूल लेकर वरुण देव का आह्वान करें और पूजा आरंभ करें। ओ३म् त्तत्वायामि ब्रह्मणा वन्दमानस्तदाशास्ते यजमानो हविभि:। अहेडमानो वरुणेह बोध्युरुशंस मान आयु: प्रमोषी:। (अस्मिन कलशे वरुणं सांग सपरिवारं सायुध सशक्तिकमावाहयामि, ओ३म्भूर्भुव: स्व:भो वरुण इहागच्छ इहतिष्ठ। स्थापयामि पूजयामि॥) इसके बाद फूल कलश में चढ़ा दें। इसके साथ ही फूल, माला, भोग भी लगा दें।
अब गणेश-लक्ष्मी की पूजा आरंभ करें। सबसे पहले एक हाथ में फूल लेकर गणेश जी का ध्यान करें। मंत्र बोलें- गजाननम्भूतगणादिसेवितं कपित्थ जम्बू फलचारुभक्षणम्। उमासुतं शोक विनाशकारकं नमामि विघ्नेश्वरपादपंकजम्। बोलें और गणेश जी को फूल चढ़ा दें। इसके बाद पद्य, आर्घ्य, स्नान, आचमन मंत्र – एतानि पाद्याद्याचमनीय-स्नानीयं, पुनराचमनीयम् ऊं गं गणपतये नम:। इस मंत्र से चंदन लगाएं: इदम् रक्त चंदनम् लेपनम् ऊं गं गणपतये नम:, इसके बाद- इदम् श्रीखंड चंदनम् बोलकर श्रीखंड चंदन लगाएं। अब सिन्दूर लगाएं “इदं सिन्दूराभरणं लेपनम् ऊं गं गणपतये नम:। दूर्वा और विल्बपत्र भी गणेश जी को चढ़ाएं। गणेश जी को वस्त्र. आभूषण पहनाएं। इदं रक्त वस्त्रं ऊं गं गणपतये समर्पयामि।
फिर गणेश जी को प्रसाद चढ़ाएं और बोले इदं नानाविधि नैवेद्यानि ऊं गं गणपतये समर्पयामि, मिठाई अर्पित करने के लिए मंत्र बोलें– इदं शर्करा घृत युक्त नैवेद्यं ऊं गं गणपतये समर्पयामि:। अब आचमन कराएं। इदं आचमनयं ऊं गं गणपतये नम:। इसके बाद पान सुपारी दें: इदं ताम्बूल पुगीफल समायुक्तं ऊं गं गणपतये समर्पयामि:। अब एक फूल लेकर गणपति पर चढ़ाएं और बोलें: एष: पुष्पान्जलि ऊं गं गणपतये नम:।
अब लक्ष्मी की पूजा आरंभ करें। सबसे पहले उनका ध्यान करें -ॐ या सा पद्मासनस्था, विपुल-कटि-तटी, पद्म-दलायताक्षी। गम्भीरावर्त-नाभिः, स्तन-भर-नमिता, शुभ्र-वस्त्रोत्तरीया।। लक्ष्मी दिव्यैर्गजेन्द्रैः। ज-खचितैः, स्नापिता हेम-कुम्भैः। नित्यं सा पद्म-हस्ता, मम वसतु गृहे, सर्व-मांगल्य-युक्ता।। अब हाथ में अक्षत लेकर बोलें “ॐ भूर्भुवः स्वः महालक्ष्मी, इहागच्छ इह तिष्ठ, एतानि पाद्याद्याचमनीय-स्नानीयं, पुनराचमनीयम्।” प्रतिष्ठा के बाद स्नान कराएं: ॐ मन्दाकिन्या समानीतैः, हेमाम्भोरुह-वासितैः स्नानं कुरुष्व देवेशि, सलिलं च सुगन्धिभिः।। ॐ लक्ष्म्यै नमः।। इदं रक्त चंदनम् लेपनम् से रक्त चंदन लगाएं। इदं सिन्दूराभरणं से सिन्दूर लगाएं। ‘ॐ मन्दार-पारिजाताद्यैः, अनेकैः कुसुमैः शुभैः। पूजयामि शिवे, भक्तया, कमलायै नमो नमः।। ॐ लक्ष्म्यै नमः, पुष्पाणि समर्पयामि।’इस मंत्र से पुष्प चढ़ाएं फिर माला पहनाएं।
अब लक्ष्मी देवी को इदं रक्त वस्त्र समर्पयामि कहकर लाल वस्त्र पहनाएं। इसके बाद मां लक्ष्मी की अंग पूजा करें। इसके लिए बाएं हाथ में अक्षत लेकर दाएं हाथ से थोड़ा-थोड़ा अक्षत छोड़ते जाएं— ऊं चपलायै नम: पादौ पूजयामि ऊं चंचलायै नम: जानूं पूजयामि, ऊं कमलायै नम: कटि पूजयामि, ऊं कात्यायिन्यै नम: नाभि पूजयामि, ऊं जगन्मातरे नम: जठरं पूजयामि, ऊं विश्ववल्लभायै नम: वक्षस्थल पूजयामि, ऊं कमलवासिन्यै नम: भुजौ पूजयामि, ऊं कमल पत्राक्ष्य नम: नेत्रत्रयं पूजयामि, ऊं श्रियै नम: शिरं: पूजयामि। अंग पूजन की भांति हाथ में अक्षत लेकर मंत्र बोलें। ऊं अणिम्ने नम:, ओं महिम्ने नम:, ऊं गरिम्णे नम:, ओं लघिम्ने नम:, ऊं प्राप्त्यै नम: ऊं प्राकाम्यै नम:, ऊं ईशितायै नम: ओं वशितायै नम:।
अंग पूजन एवं अष्टसिद्धि पूजा की की तरह ही हाथ में अक्षत लेकर मंत्रोच्चारण करें। ऊं आद्ये लक्ष्म्यै नम:, ओं विद्यालक्ष्म्यै नम:, ऊं सौभाग्य लक्ष्म्यै नम:, ओं अमृत लक्ष्म्यै नम:, ऊं लक्ष्म्यै नम:, ऊं सत्य लक्ष्म्यै नम:, ऊं भोगलक्ष्म्यै नम:, ऊं योग लक्ष्म्यै नम: फिर प्रसाद अर्पित करें और इस मंत्र को बोले-इदं नानाविधि नैवेद्यानि ऊं महालक्ष्मियै समर्पयामि” मंत्र से नैवैद्य अर्पित करें। मिठाई अर्पित करने के लिए मंत्र: “इदं शर्करा घृत समायुक्तं नैवेद्यं ऊं महालक्ष्मियै समर्पयामि” बालें। प्रसाद अर्पित करने के बाद आचमन कराएं। इदं आचमनयं ऊं महालक्ष्मियै नम:। इसके बाद पान सुपारी चढ़ाएं:- इदं ताम्बूल पुगीफल समायुक्तं ऊं महालक्ष्मियै समर्पयामि।
अब एक फूल लेकर लक्ष्मी देवी पर चढ़ाएं और बोलें: एष: पुष्पान्जलि ऊं महालक्ष्मियै नम:। श्रीलक्ष्मी को धूप समर्पित करें। इसके बाद नैवेद्य चढ़ाएं। इसके बाद कुबेर भगवान सहित अन्य देवी-देवता की पूजा कर लें। अंत में गणेश आरती, लक्ष्मी आरती, कुबेर आरती करने के बाद अंत में भूल चूक के लिए माफी मांग लें।
दिवाली के बाद नवबंर माह में ग्रहों के राजा सूर्य राशि परिवर्तन करके वृश्चिक राशि में प्रवेश कर जाएंगे। ऐसे में मीन राशि में विराजमान शनि के साथ संयोग करके नवपंचम राजयोग का निर्माण करेंगे। इस राजयोग का निर्माण होने से 12 राशियों के जीवन में किसी न किसी तरह से प्रभाव देखने को मिलने वाला है। लेकिन इन तीन राशि के जातकों को विशेष लाभ मिल सकता है। जानें इन लकी राशियोें के बारे में
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