हिन्दू धर्म और शास्त्र में दिशा का बेहद महत्व है, चाहे वह वास्तु के हिसाब से हो या फिर यात्रा करने से पहले, दिशाशूल का अर्थ है संबंधित दिशा में बाधा और कष्ट का मौजूद होना। अर्थात कि यदि निषेध वाले दिन उस दिशा में जाते हैं तो आपको कष्ट प्राप्त हो सकता है।

हमारे जीवन में ज्योतिष के अनुसार दिशाओं बड़ा महत्व है और हमें हर दिन कहीं न कहीं की यात्रा करनी पड़ती है। कभी-कभी यात्रा सफलतादायक और सुखमय होती है, तो कभी यह असफलतादायक और कष्टमय होकर हमें परेशान भी करती हैं। इससे बचने के लिए हमें प्रतिदिन दिशा शूल का ध्यान ज़रूर रखना चाहिए लेकिन कहीं से भी घर वापसी को दिशाशूल से बाहर रखा गया है।

दिशा शूल ले जाओ बामे, राहु योगिनी पूठ।
सम्मुख लेवे चंद्रमा, लावे लक्ष्मी लूट।

किसी विशेष दिन किसी विशेष दिशा में यात्रा करना निषेध माना गया है। क्योंकि ऐसा करने पर हानि और कष्ट उठाने पड़ते हैं। विभिन्न दिनों का दिशा शूल निम्नलिखित तालिका से समझा जा सकता है :

  • सोमवार और शनिवार को पूर्व दिशा में दिशा शूल माना जाता है।
  • मंगलवार और बुधवार को उत्तर दिशा में दिशा शूल माना जाता है।
  • बुधवार और शनिवार को उत्तर-पूर्व कोण में दिशा शूल माना जाता है।
  • गुरूवार को दक्षिण दिशा में दिशा शूल माना जाता है।
  • शुक्रवार और रविवार को पश्चिम दिशा में दिशा शूल माना जाता है।
  • सोमवार और गुरूवार को दक्षिण-पूर्व कोण में दिशा शूल माना जाता है।
  • मंगलवार को उत्तर-पश्चिम कोण में दिशा शूल माना जाता है।
  • रविवार और शुक्रवार को दक्षिण-पश्चिम कोण में दिशा शूल माना जाता है।

आवश्यक है जाना तो करें यह उपाय: किसी जरूरी कार्य के होने पर रविवार को पान या घी खाकर, सोमवार को दर्पण देखकर या दूध पीकर, मंगल को गुड़, खाकर, बुधवार को धनिया या तिल खाकर, गुरुवार को जीरा या दही खाकर, शुक्रवार को दही पीकर और शनिवार को अदरक या उड़द खाकर प्रस्थान किया जा सकता है।

इस दिशा रखें ध्यान: घर के मंदिर में पूजा करते वक्‍त भी दिशा मायने रखती है। वास्‍तु के मुताबिक, पूजा करते समय व्‍यक्ति का मुंह पश्चिम दिशा की ओर होना शुभ माना गया है। अगर ऐसा ना हो सके तो मुंह पूर्व दिशा की ओर भी रख सकते हैं। साथ ही उत्तर दिशा को सफलता की दिशा माना जाता है।