हिंदू पंचाग के अनुसार माना जाता है कि पौष माह की धनु संक्रांति से पौष संक्रांति का आरंभ हो जाता है। इस माह की संक्रांति के दिन गंगा-यमुना स्नान का महत्व माना जाता है। पौष संक्रांति के दिन श्रद्धालु नदी किनारे जाकर सूर्य को अर्घ्य देते हैं। माना जाता है कि इस विधि को करने से स्वयं के मन की शुद्धि होती है। बुद्धि और विवेक की प्राप्ति के लिए भी इस दिन सूर्य पूजन किया जाता है। इस दिन सूर्य किसी विशेष राशि में प्रवेश करता है, इसी कारण से इसे संक्रांति के नाम से जाना जाता है। इस दिन भगवान को मीठे पकवानों का भोग लगाया जाता है।

धनु संक्रांति के दिन भगवान सत्यनारायण की कथा का पाठ किया जाता है। भगवान विष्णु की पूजा में केले के पत्ते, फल, सुपारी, पंचामृत, तुलसी, मेवा आदि का भोग तैयार किया जाता है। सत्यनारायण की कथा के बाद देवी लक्ष्मी, महादेव और ब्रह्मा जी की आरती की जाती है और चरणामृत का प्रसाद दिया जाता है। इस दिन के लिए मान्यता है कि इस दिन को पवित्र माना जाता है, इस दिन जो लोग विधि के साथ पूजन करते हैं उनके सभी संकट दूर होते हैं और मनोकामनाओं की पूर्ति होती है।

इस दिन संक्रांत, पूर्णिमा और चंद्र ग्रहण तीनों के लिए एक ही समय में दान कार्य करने चाहिए। जो लोग तीर्थ स्थान नहीं जा पाते हैं वो घर पर ही स्नान करने के बाद दान करें और विष्णु के सहस्त्र नामों का पाठ करें। इस दिन सूर्य वृश्चिक राशि से निकलकर धनु राशि में प्रवेश कर रहा है, इसी कारण से इस दिन को धनु संक्रांति के नाम से जाना जाता है। सूर्य के प्रभाव से बचने के लिए इस दिन सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है। सूर्य के पूजन से स्वस्थ जीवन का वरदान मिलता है। माना जाता है कि भगवान सूर्य का तेज बहुत अधिक है और वो अपने क्रोध में किसी को माफ नहीं करते लेकिन उनकी सच्चे मन से पूजा की जाए तो वो सभी की मनोकामनाएं पूरी करते हैं।