December 2025 Last Pradosh Vrat Date And Time: सनातन धर्म में प्रदोष व्रत का विशेष महत्व है। यह व्रत महादेव को समर्पित होता है। हिंदू मान्यता के अनुसार दिन और रात्रि के मिलन की बेला को प्रदोष काल कहा जाता है, जिसमें देवों के देव महादेव अत्यधिक प्रसन्न रहते हैं। यहां हम बात करने जा रहे हैं साल के अंंतिम प्रदोष व्रत के बारे में, 17 अगस्त को रखा जाएगा। बुधवार के दिन पड़ने से यह व्रत बुध प्रदोष व्रत होगा। मान्यता है कि इस व्रत करने से भगवान शिव की कृपा से मनोकामना पूर्ण होती है और जीवन में खुशहाली आती है। वहीं काम- कारोबार में तरक्की मिलती है। आइए जानते हैं बुध प्रदोष व्रत का शुभ मुहूर्त, तिथि और महत्व…
बुध प्रदोष व्रत तिथि 2025 (Budh Pradosh Vrat Kab Hai 2025)
पंचांग के अनुसार पौष मास के कृष्णपक्ष की त्रयोदशी तिथि 16 दिसंबर 2025 की रात को 11:58 बजे शुरू होकर 18 दिसंबर 2025 को पूर्वाह्न 02:33 बजे पर खत्म होगी। ऐसे में महादेव से साल का आखिरी प्रदोष व्रत 17 दिसंबर 2025 को ही रखा जाएगा।
बुध प्रदोष व्रत का शुभ मुहूर्त
इस दिन प्रदोष काल की पूजा का शुभ मुहूर्त शाम को 05:27 से रात्रि 08:11 बजे तक रहेगा। इस समय आप भोलेनाथ की पूजा- अर्चना कर सकते हैं।
बुध प्रदोष व्रत का महत्व
प्रदोष व्रत के दिन महादेव और मां पार्वती की आराधना करने से दांपत्य जीवन सुखमय रहता है। साथ ही बुद्धि, विद्या और ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है। साथ ही करियर और कारोबार में तरक्की मिलती है। बुध प्रदोष तिथि का व्रत करने से व्रती को धन, विद्या और वाणी पर नियंत्रण की प्राप्ति होती है। प्रदोष व्रत के पुण्य प्रभाव से साधक के सभी कष्ट एवं दोष दूर हो जाता है और उसे अनंत सुखों की प्राप्ति होती है।
शिव स्तुति (Shiv Stuti)
पशूनां पतिं पापनाशं परेशं गजेन्द्रस्य कृत्तिं वसानं वरेण्यम।
जटाजूटमध्ये स्फुरद्गाङ्गवारिं महादेवमेकं स्मरामि स्मरारिम।1।
महेशं सुरेशं सुरारातिनाशं विभुं विश्वनाथं विभूत्यङ्गभूषम्।
विरूपाक्षमिन्द्वर्कवह्नित्रिनेत्रं सदानन्दमीडे प्रभुं पञ्चवक्त्रम्।2।
गिरीशं गणेशं गले नीलवर्णं गवेन्द्राधिरूढं गुणातीतरूपम्।
भवं भास्वरं भस्मना भूषिताङ्गं भवानीकलत्रं भजे पञ्चवक्त्रम्।3।
शिवाकान्त शंभो शशाङ्कार्धमौले महेशान शूलिञ्जटाजूटधारिन्।
त्वमेको जगद्व्यापको विश्वरूप: प्रसीद प्रसीद प्रभो पूर्णरूप।4।
परात्मानमेकं जगद्बीजमाद्यं निरीहं निराकारमोंकारवेद्यम्।
यतो जायते पाल्यते येन विश्वं तमीशं भजे लीयते यत्र विश्वम्।5।
न भूमिर्नं चापो न वह्निर्न वायुर्न चाकाशमास्ते न तन्द्रा न निद्रा।
न गृष्मो न शीतं न देशो न वेषो न यस्यास्ति मूर्तिस्त्रिमूर्तिं तमीड।6।
अजं शाश्वतं कारणं कारणानां शिवं केवलं भासकं भासकानाम्।
तुरीयं तम:पारमाद्यन्तहीनं प्रपद्ये परं पावनं द्वैतहीनम।7।
नमस्ते नमस्ते विभो विश्वमूर्ते नमस्ते नमस्ते चिदानन्दमूर्ते।
नमस्ते नमस्ते तपोयोगगम्य नमस्ते नमस्ते श्रुतिज्ञानगम्।8।
प्रभो शूलपाणे विभो विश्वनाथ महादेव शंभो महेश त्रिनेत्।
शिवाकान्त शान्त स्मरारे पुरारे त्वदन्यो वरेण्यो न मान्यो न गण्य:।9।
शंभो महेश करुणामय शूलपाणे गौरीपते पशुपते पशुपाशनाशिन्।
काशीपते करुणया जगदेतदेक-स्त्वंहंसि पासि विदधासि महेश्वरोऽसि।10।
त्वत्तो जगद्भवति देव भव स्मरारे त्वय्येव तिष्ठति जगन्मृड विश्वनाथ।
त्वय्येव गच्छति लयं जगदेत।।
