Chhath Puja Vrat Katha in Hindi: आज 7 नवंबर को छठ पूजा का तीसरा दिन है, जिसे बड़ी छठ भी कहा जाता है। चार दिनों तक चलने वाली छठ का सबसे जरूरी दिन आज का माना जाता है। आज के दिन डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य देने की परंपरा है। व्रत पवित्र जल में खड़े होकर सूर्य देव को अर्घ्य देती हैं। इसके साथ ही विधिवत पूजा करती है। इसके साथ ही व्रती और उनके परिवार के लोग रात्रि के समय जागरण करने के साथ-साथ छठी मईया की कथा सुनते हैं और गीत गाते हैं। मान्यता है छठ पूजा के दौरान छठी मईया की कथा सुनने से हर दुख-दर्द दूर हो जाते हैं और हर मनोकामना पूर्ण हो जाती है। आइए जानते हैं छठी मईया की व्रत कथा।
छठी मईया की कई व्रत कथा प्रचलित है जिसमें से महाभारत काल में द्रौपदी के व्रत रखने की कथा भी शामिल है।
छठ पूजा व्रत कथा (Chhath Vrat Katha)
पौराणिक मान्यताओं अनुसार, बहुत समय पहले प्रियंवद नामक के राजा थे जिनकी पत्नी का नाम मालिनी था। विवाह के काफी समय हो जाने के बाद भी उनकी कोई संतान नहीं थी। इस बात से दोनों दुखी रहते थे। उन्होंने संतान प्राप्ति की इच्छा के कई जतन किए। इसके बाद उन्होंने महर्षि कश्यप द्वारा पुत्रेष्टि यज्ञ करवाया। यज्ञ संपन्न करने के बाद महर्षि ने राजा प्रियव्रत की पत्नी मालिनी को खीर खाने को दी। खीर का सेवन करने से मालिनी गर्भवती हो गईं। इससे दोनों के साथ-साथ प्रजा काफी खुशी हो गई। समय के साथ महारानी मालिनी ने एक पुत्र को जन्म दिया। लेकिन उन्हें मरा हुआ पुत्र प्राप्त हुआ। राजा को बहुत दुख हुआ। उन्होंने निराश होकर प्राण त्यागने का निश्चय कर लिया।
जैसे ही राजा ने प्राण त्यागने की कोशिश की, तो उनके सामने भगवान की मानस पुत्री देवसेना प्रकट हुई। उन्होंने राजा प्रियंवद से कहा कि वह षष्ठी देवी हैं और वह लोगों को पुत्र का सौभाग्य प्रदान करती हूं। इसके साथ ही जो लोग मेरी सच्चे मन से आराधना करते हैं मैं उनकी सभी मनोकामना पूर्ण करती हूं। यदि राजन तुम मेरी विधि विधान पूजा करोगे, तो मैं तुम्हें पुत्र रत्न का वरदान दूंगी।
देवी की आज्ञा मानकर राजा प्रियंवद ने कार्तिक शुक्ल पक्ष की षष्ठी को देवी षष्ठी का विधि विधान पूजन किया। जिसके फलस्वरूप राजा की पत्नी फिर से गर्भवती हुई और उन्हें सुंदर पुत्र की प्राप्ति हुई। ऐसा माना जाता है तभी से छठ पर्व मनाया जाने लगा। जो व्यक्ति छठ पर्व की विधिवत पूजा करने के साथ व्रत रखता है, तो छठी मईया उनकी हर मनोकामना पूरी करती है।
छठ पर्व के दौरान व्रती तीसरे और चौथे दिन पवित्र नदी या तालाब में कमर तक जल के अंदर खड़े होकर सूर्य देव को अर्घ्य देते हैं। लेकिन ऐसा क्यों है कि नदीं के किनारे में खड़े होकर नहीं बल्कि अंदर खड़े होकर अर्घ्य दिया जाता है। जानें इसका कारण – छठ पर्व पर सूर्य देव को पानी में खड़े होकर क्यों दिया जाता है अर्घ्य? किसने की थी इसकी शुरुआत
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