चातुर्मास के दौरान दुनियाभर के श्रद्धालु ब्रज चौरासी कोस की परिक्रमा करते हैं। चातुर्मास जुलाई से लेकर नवंबर तक रहता है। इस दौरान मांगलिक कार्य नहीं होते हैं, लेकिन धार्मिक आयोजनों की धूम जमकर होती है। सावन, भादों, कुआर व कार्तिक माह के दौरान मथुरा-वृंदावन इलाके में आस्था की अविरल धारा बहती नजर आती है।
माना जाता है कि चौरासी कोस की परिक्रमा से सभी तीर्थों का पुण्य मिलता है। ब्रज चौरासी कोस की यात्रा मधुवन, तालवन, बहुलावन, शांतनु कुंड, राधाकुंड, कुसुम सरोवर, जतीपुरा, डीग, कामवन, बरसाना, नंदगांव, कोकिलायन, जाप, कोटवन, पैगांव, शेरगढ़, चीरभाट, बड़गांव, वृंदावन, लोहवन, गोकुल व मथुरा क्षेत्र के अंतर्गत की जाती है।
पौराणिक आधार पर भक्ति के 64 अंगों में से एक परिक्रमा है। बाराह पुराण के अनुसार, ब्रजयात्रा और वनयात्रा परिक्रमा के दो स्वरूप है। श्रद्धापूर्वक स्रान, दान, भजन, पूजन, उपवास, व्रत, स्थल-विश्राम व परिक्रमा को ‘वन यात्रा’ कहते है। यह भाद्र कृष्ण अष्टमी से भाद्र पूर्णिमा तक की जाती थी। ग्रामादिक दर्शन, भ्रमण व पड़ाव करना ‘ब्रज यात्रा’ कहलाता है। यह वैशाख कृष्ण प्रतिपदा से शुरू करके श्रावण पूर्णिमा तक समाप्त होती है।
ब्रज को भगवान श्रीकृष्ण की लीला स्थली माना जाता है। यह ब्रज क्षेत्र चौरासी कोस की परिधि में स्थित है। ब्रज की चौरासी कोस की परिक्रमा यात्रा सर्वाधिक महत्व की यात्रा मानी जाती है। इस परिक्रमा में भगवान श्रीकृष्ण की लीलाओं से जुड़े स्थल, सरोवर, वन, मंदिर, कुण्ड आदि का भ्रमण किया जाता है।
यह सम्पूर्ण यात्रा लगभग 360 किमी की है, जिसे श्रद्धालु पैदल भजन-कीर्तन एवं धार्मिक अनुष्ठान करते हुए लगभग 20 से 40 दिन में पूरा करते हैं। वेद और पुराणों में ब्रज की चौरासी कोस की परिक्रमा का बहुत महत्व है। इस परिक्रमा के बारे में पुराण में बताया गया है कि पृथ्वी पर 66 अरब तीर्थ हैं और वे सभी चातुर्मास में ब्रज में आकर निवास करते हैं।
करीब 252 किलोमीटर परिक्रमा मार्ग में परिक्रमार्थियों के विश्राम के लिए 25 पड़ावस्थल हैं। इस पूरे परिक्रमा मार्ग में करीब 1300 गांव रास्ते में आते हैं। कृष्ण की लीलाओं से जुड़े 1100 सरोवर, 36 वन-उपवन और पहाड़ आते हैं। इस दौरान परिक्रमार्थी बालकृष्ण की लीलाओं के साक्षी कई स्थल और देवालयों के दर्शन भी करते हैं। परिक्रमा के दौरान श्रद्धालुओं को यमुना नदी को भी पार करना होता है।
चौरासी कोस के अंदर राजस्थान की सीमा पर मौजूद पहाड़ पर केदारनाथ का एक मंदिर है। इसके अलावा, श्रद्धालुओं को गुप्तकाशी, यमुनोत्री और गंगोत्री के दर्शन भी यहां होते हैं। तत्पश्चात यशोदा मैया व नन्दबाबा ने उनकी परिक्रमा की। तभी से ब्रज में चौरासी कोस की परिक्रमा की शुरुआत मानी जाती है। यात्रा के अपने नियम हैं।
इसमें शामिल होने वालों को प्रतिदिन 36 नियमों का कड़ाई से पालन करना होता है। इनमें प्रमुख नियम धरती पर सोना, नित्य स्रान, ब्रह्मचर्य का पालन, जूते-चप्पल का त्याग, नित्य देव पूजा, संकीर्तन, फलाहार, क्रोध, मिथ्या, लोभ, मोह व अन्य दुर्गुणों का त्याग प्रमुख है। कालांतर में पूर्व जगद्गुरु श्रीमद् वल्लभाचार्य महाप्रभु ने ब्रज यात्रा को पुन: प्रारंभ किया।
यात्रा के मौजूदा स्वरूप का श्रेय चैतन्य महाप्रभु के शिष्यों में से एक श्रीपाद सनातन गोस्वामी को जाता है। उनके द्वारा दशकों पहले जिस प्रकार से यात्रा की गई कमोबेश आज भी ब्रज चौरासी कोस परिक्रमा यात्रा का वही स्वरूप है। यह यात्राएं समूहों में होती हैं। संस्थाएं और कई बड़े आश्रम इनका आयोजन करते हैं। लेकिन, बहुत से लोग स्वनिर्धारित कार्यक्रम के तहत भी परिक्रमा के लिए निकल पड़ते हैं। अपनी कार, बाइक या किसी अन्य वाहन से भी यात्रा की जाती है।
आजकल समयाभाव व सुविधाभोगी जीवन शैली के चलते वाहनों के द्वारा भी ब्रज चौरासी कोस दर्शन यात्राएं होने लगी हैं। इन यात्राओं में लग्जरी कोच बसों या कारों से तीर्थयात्रियों को हफ्तेभर में समूचे ब्रज चौरासी कोस के प्रमुख स्थलों के दर्शन कराए जाते हैं। यह यात्राएं प्रतिदिन प्रात: काल जिस स्थान से प्रारंभ होती है, रात्रि को वहीं पर आकर समाप्त हो जाती है।
गौ सेवा मानव सेवा समिति द्वारा संचालित कान्हा रसोई परिवार की ओर से पुरुषोत्तम मास में चौरासी कोस परिक्रमा यात्रा का आयोजन किया गया। यात्रा के अध्यक्ष पंकज दीक्षित महाराज बताते हैं कि इस बार ब्रज चौरासी कोस परिक्रमा यात्रा मथुरा, मधुबन, अड़ीग, राधाकुंड, गोवर्धन, डीग, आदि बद्री, केदारनाथ, काम्यवन, बरसाना, नंदगांव, होडल, शेषशायी, कोसीकलां, मांटवन, राया, दाऊजी, गोकुल, मथुरा होते हुए वृंदावन में आकर समाप्त होगी।
एक मान्यता के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण ने मैया यशोदा और नंद बाबा के दर्शनों के लिए सभी तीर्थों को ब्रज में ही बुला लिया था। चौरासी कोस की परिक्रमा लगाने को 84 लाख योनियों से छुटकारा पाने का एक मात्र साधन बताया गया है। माना जाता है कि परिक्रमा के दौरान एक-एक कदम पर जन्म-जन्मांतर के पाप नष्ट हो जाते हैं।
शास्त्रों में यह भी कहा गया है कि परिक्रमार्थी एक-एक कदम पर अश्वमेध यज्ञ का फल मिलता है। साथ ही, जो व्यक्ति इस परिक्रमा को लगाता है, उस व्यक्ति को निश्चित ही मोक्ष की प्राप्ति होती है। गर्ग संहिता के अनुसार, जब यशोदा मैया और नंद बाबा ने भगवान श्री कृष्ण से चार धाम की यात्रा करने की इच्छा जाहिर की तो भगवान श्रीकृष्ण ने उनकी उम्र का हवाला देते हुए उनके लिए सभी तीर्थों और चारों धामों को आह्रान कर यहीं बुला लिया गया था। उसी समय से केदारनाथ और बदरीनाथ के प्रतीक भी यहां मौजूद हैं।