वर्ष 2018 का पहला ग्रहण 31 जनवरी को खग्रास चंद्रग्रहण है। हिंदू पंचांग के अनुसार इस दिन माघ माह के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा भी है। जिस ग्रहण के दिन पूरे चंद्रमा पर ग्रहण लगता है उसे खग्रास चंद्रग्रहण कहा जाता है। इस दिन कई कार्यों को करना अशुभ माना जाता है, विशेषकर गर्भवती महिलाओं को सावधान रहने की आवश्यकता मानी जाती है। माना जाता है कि जो गर्भवती महिलाएं ग्रहण को देख लेती हैं उनके शिशु को शारीरिक या मानसिक हानि हो सकती है। हिंदू धर्म की मान्यताओं के अनुसार ग्रहण के सूतक काल को शुभ नहीं माना जाता है। गर्भवती महिलाओं को इस दिन घर में रहकर ऊं क्षीरपुत्राय विह्महे अमृत तत्वाय धीमहि तन्नो चंद्र प्रचोदयात् मंत्र का जाप करना चाहिए। साथ ही इस दिन सात अनाज एक साथ मिलाकर दान करना चाहिए। हर घटना के पीछे पौराणिक घटना या कथा प्रचलित होती है। आज जानते हैं कि ग्रहण लगने के पीछे क्या मान्यता है।
पौराणिक कथा के अनुसार माना जाता है जब क्षीर सागर के मंथन के बाद भगवान विष्णु मोहिनी रुप में देवताओं को अमृत पिला रहे थे तो उस समय असुर राहु देवताओं का रुप लेकर बीच में आ गया और उसने धोखे से अमृत का पान कर लिया। राहु के इस कर्म को चंद्रमा और सूर्य ने देख लिया और उन्होनें इस बारे में भगवान विष्णु को बता दिया। राहु के इस छल से क्रोधित होकर भगवान विष्णु ने सुदर्शन चक्र से उसका सिर काट डाला। राहु ने अमृत का पान किया हुआ था जिस कारण उसकी मृत्यु नहीं हुई। गर्दन कटने के बाद असुर का ऊपरी हिस्सा राहु हो गया और बाकी शरीर केतु हो गया।
ब्रह्मा ने राहु-केतु को ग्रह बना दिया और इस घटना के बाद दोनों सूर्य और चंद्रमा के दुश्मन हो जाते हैं। इसी कारण से वो सूर्य और चंद्रमा को केतु-राहु के रुप में ग्रसते हैं, जिसे ग्रहण कहा जाता है। इसी के साथ ऋग्वेद के अनुसार माना जाता है कि असूया पुत्र राहु जब सूर्य और चंद्रमा पर तम से प्रहार कर देता है तो इतना अंधेरा हो जाता है कि धरती पर रौशनी नहीं बच पाती है। ग्रह बनने के बाद राहु-केतु दुश्मनी के भाव से पूर्णिमा को चंद्रमा और अमावस्या को सूर्य पर प्रहार करता है, इसे ग्रहण या राहु पराग कहा जाता है।

