महान बुद्धिजीवी आचार्य चाणक्य अपनी नीतियों को लेकर दुनियाभर में प्रसिद्ध हैं। चाणक्य जी बेहद ही बुद्धिमान रणनीतिकार माने जाते थे। उन्होंने अपने नीतियों के बल पर ही नंद वंश का नाश कर, एक साधारण से बालक चंद्रगुप्त मौर्य को मगध का सम्राट बनाया था। आचार्य चाणक्य ने हजारों वर्षों पूर्व एक नीति शास्त्र की भी रचना की थी, जिसमें उन्होंने समाज कल्याण से जुड़ी की बातों का जिक्र किया है। हजारों वर्षों पूर्व रचित चाणक्य नीति आज के समय में भी प्रासंगिक मानी जाती है।
आचार्य चाणक्य ने अपने नीति शास्त्र में दोस्ती को लेकर कुछ विचार साझा किए हैं। चाणक्य जी के अनुसार कुछ ऐसी बातें हैं, जो गहरी और पक्की दोस्ती में भी दरार डाल सकती हैं। आचार्य चाणक्य ने कहा, ‘लोभ, दुखों का कारण होता है क्योंकि लालच में व्यक्ति स्वार्थी होता जाता है।’
अपने इस कथन में आचार्य चाणक्य ने कई बातें बताई हैं, जो गहरी दोस्ती को भी तोड़ कर रख देती हैं। कौटिल्य के नाम से प्रसिद्ध चाणक्य जी का मानना था कि हर रिश्ते की अपनी एक मर्यादा होती है, चाहे वह पति-पत्नी का रिश्ता हो, या फिर प्रेम का। यहां तक की दोस्ती के रिश्ते में भी एक मर्यादा होती है। हालांकि जब लोग किसी भी रिश्ते में अपनी मर्यादा को भूल जाते हैं तो इसके कारण वह रिश्ता टूट जाता है।
चाणक्य जी बताते हैं कि दोस्ती के रिश्ते में भी मान-सम्मान बेहद ही जरूरी होता है। जब दोस्ती में आदर भाव की कमी आने लगती है तो मित्रता कमजोर पड़ने लगती है। इसलिए दोस्ती के बीच कभी भी इंसान को लालच नहीं आने देना चाहिए। क्योंकि लालच किसी भी रिश्ते की नींव को हिलाकर रख सकता है।
लालची व्यक्ति स्वार्थी हो जाता है और उसे अपने सिवा दूसरा कोई नजर नहीं आता। इसलिए ज्यादातर लोग स्वार्थी और लालची लोगों से मित्रता करना पसंद नहीं करते। क्योंकि दोस्ती में कभी भी झूठ की कोई जगह नहीं होती। चाणक्य जी मानते हैं कि दोस्ती की नींव हमेशा विश्वास पर टिकी होती है। जिस रिश्ते में विश्वास नहीं होता, वह रिश्ता कमजोर हो जाता है।