Chaitra Navratri 2021 Puja Vidhi, Shubh Muhurat, Samagri, Mantra: नवरात्रि का पावन पर्व आज से शुरू हो गया है। मां दुर्गा की उपासना के ये नौ दिन काफी खास माने जाते हैं। लोगों का ऐसा विश्वास है कि मां इन दिनों भक्ति से प्रसन्न होकर सभी की इच्छाएं पूर्ण करती हैं। नवरात्रि पर्व 21 अप्रैल तक चलेगा। इस पर्व का पहला दिन काफी खास होता है। इस दिन शुभ मुहूर्त में विधि विधान कलश स्थापित कर माता की पूजा की जाती है।
सबसे पहले जानिए घटस्थापना मुहूर्त:
चैत्र घटस्थापना मंगलवार 13 अप्रैल 2021 को
घटस्थापना मुहूर्त- 05:58 AM से 10:14 AM
अवधि- 04 घण्टे 16 मिनट
घटस्थापना अभिजित मुहूर्त- 11:56 AM से 12:47 PM
अवधि- 51 मिनट
प्रतिपदा तिथि प्रारम्भ- 12 अप्रैल 2021 को 08:00 AM बजे
प्रतिपदा तिथि समाप्त- 13 अप्रैल 2021 को 10:16 AM बजे
नवरात्रि पूजन सामग्री: श्रीदुर्गा की प्रतिमा, सिंदूर, दर्पण, कंघी, केसर, कपूर, धूप, वस्त्र, बंदनवार आम के पत्तों का, पुष्प, सुपारी साबुत, दूर्वा, मेंहदी, बिंदी, हल्दी की गांठ, पिसी हुई हल्दी, पटरा, आसन, पुष्पहार, बेलपत्र, चौकी, रोली, मौली, कमलगट्टा, दीपक, दीपबत्ती, जायफल, जावित्री, नारियल, नैवेद्य, मधु, शक्कर, पंचमेवा, मिट्टी, पान, लौंग, इलायची, हवन सामग्री, कलश मिट्टी या पीतल का, पूजन के लिए थाली, सरसों सफेद और पीली, श्वेत वस्त्र, दूध, दही, ऋतुफल, गंगाजल। चैत्र नवरात्रि पूजन की सामग्री लिस्ट, घट स्थापना का तरीका और मुहूर्त यहां देखें
नवरात्रि पूजन विधि: नवरात्रि के पहले दिन मां दुर्गा की पूजा करने से पहले कलश स्थापित किया जाता है। कलश को पांच तरह के पत्तों से सजाकर उसमें हल्दी की गांठ, सुपारी, दूर्वा रखी जाती है। कलश को स्थापित करने से पहले उसके नीचे बालू की वेदी बनाई जाती है जिसमें जौ बोये जाते हैं। मान्यता है कि जौ बोने से देवी अन्नपूर्णा प्रसन्न होती हैं। नवरात्रि पूजन के समय माँ दुर्गा की प्रतिमा को पूजा स्थल के बीचों-बीच स्थापित किया जाता है और माँ की पूजा में श्रृंगार सामग्री, रोली, चावल, माला, फूल, लाल चुनरी आदि का प्रयोग किया जाता है। कई जगह पूरे नौ दिनों तक पूजा स्थल में एक अखंड दीप भी जलाया जाता है। कलश स्थापना करने के बाद गणेश जी और मां दुर्गा की आरती करते हैं। हिंदू नववर्ष सम्वत् 2078 की हुई शुरुआत, जानिए कैसा रहेगा ये नया साल समाज के लिए
नवरात्रि में मां दुर्गा के इन नौ रूपों की होती है पूजा: पहले दिन मां शैलपुत्री, दूसरे दिन मां ब्रह्मचारिणी, तीसरे दिन मां चंद्रघंटा, चौथे दिन मां कुष्मांडा, पांचवे दिन स्कंदमाता, छठे दिन मां कात्यायनी, सातवें दिन मां कालरात्रि, आठवें दिन मां महागौरी और नौवें दिन मां सिद्धिदात्री की पूजा की जाती है।
नवरात्रि के नौ दिन क्या करें? नवरात्रि के सभी दिन मां दुर्गा की सच्चे मन से अराधना करें। संभव हो तो नवरात्रि में प्रतिदिन मंदिर में जाकर माता की अराधना करें। नवरात्रि में नौ दिन व्रत रखना धार्मिक दृष्टि से तो शुभ माना ही गया है साथ ही ये स्वास्थ्य के लिए भी लाभदायक होता है। उपवास रखने से शरीर की सफाई होती है। इन नौ दिनों में देवी मां का श्रृंगार करना चाहिए। नवरात्रि में दुर्गा सप्तशती का पाठ काफी फलदायी बताया जाता है। मां शैलपुत्री की पूजा से चंद्र दोष से मिलती है मुक्ति, जानिए इनकी पूजा विधि और कथा
नवग्रह को शांत करने या उनकी पीड़ा को दूर करने के लिए ‘ॐ नमो भास्कराय मम् सर्वग्रहाणां पीड़ा नाशनं कुरु कुरु स्वाहा।’ मंत्र की 11 माला जप करें।
राम नवमी 21 अप्रैल को मनाई जाएगी। इस दिन कन्या पूजन की परंपरा है। राम नवमी का त्यौहार भगवान विष्णु के सातवें अवतार भगवान राम के जन्म दिवस के रूप में मनाया जाता है।
नवरात्रि के दौरान मां दुर्गा सप्तशती का पाठ करने से शुभ फलों की प्राप्ति होती है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस पाठ को करने से मां भगवती प्रसन्न होती हैं और अपने भक्तों की मनोकामनाएं पूरी करती हैं। दुर्गा सप्तशती पाठ को कुल 13 अध्याय में बांटा गया है। इस पाठ को करने के लिए शास्त्रों में कुछ नियम व सावधानियां वर्णित है। जानिए दुर्गा सप्तशती पाठ करने के नियम व सावधानियां, जिनका पालन करने से मां दुर्गा अपने भक्तों पर असीम कृपा बरसाती हैं।
नवरात्रि में व्रत रखने वालों को अन्न नहीं खाना होता है। ये व्रत फलाहार ग्रहण करके रखा जाता है। नवरात्र व्रत रखने वालों को रोज विधि विधान माता की पूजा करनी चाहिए।
-दुर्गा सप्तशती का पाठ न ज्यादा तेज स्वर में करें न ज्यादा धीमी आवाज में करें।
-दुर्गा सप्तशती का पाठ करते समय उच्चारण स्पष्ट होना चाहिए।
-अगर आप एक दिन में पाठ पूरा नहीं कर सकते हैं, तो कम से कम जो अध्याय आरंभ किया है उसे पूरा करना चाहिए।
नवरात्रि व्रत कथा के अनुसार एक समय बृहस्पति जी ने ब्रह्माजी के समक्ष चैत्र व आश्विन मास के शुक्ल पक्ष में पड़ने वाले नवरात्र का महत्व जानने की इच्छा जताई, इन्होंने कहा इस व्रत का क्या फल है, इसे किस प्रकार किया जाता है? सबसे पहले इस व्रत को किसने किया? ये सब विस्तार से कहिये। बृहस्पतिजी के प्रश्नों का जवाब देते हुए ब्रह्माजी ने कहा- हे बृहस्पते! प्राणियों के हित की इच्छा से तुमने बहुत अच्छा प्रश्न किया है। जो इंसान मनोरथ पूर्ण करने वाली मां दुर्गा, महादेव, सूर्य और नारायण का ध्यान करता है, वे धन्य है। यह नवरात्र व्रत संपूर्ण कामनाओं को पूर्ण करने वाला है। पूरी कथा पढ़ें यहां
1. सर्वमंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके।
शरण्ये त्र्यंबके गौरी नारायणि नमोऽस्तुते।।
2. ॐ जयन्ती मंगला काली भद्रकाली कपालिनी।
दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोऽस्तुते।।
पौराणिक कथाओं अनुसार एक बार राजा दक्ष के स्वागत के लिए सभी लोग अपने स्थान से खड़े हुए लेकिन भगवान शंकर अपने स्थान से नहीं उठे। राजा दक्ष को उनकी पुत्री सती के पति की यह बात अच्छी नहीं लगी और उन्होंने इसे अपमान स्वरूप ले लिया। इसके कुछ समय बाद दक्ष ने अपने निवास पर एक बड़े यज्ञ का आयोजन किया, जिसमें उन्होंने सभी देवी-देवताओं को बुलाया, लेकिन अपने अपमान का बदला लेने के कारण शिव जी नहीं बुलाया।
सती ने भगवान शिव से अपने पिता द्वारा आयोजित यज्ञ में जाने की इच्छा जताई। सती के आग्रह पर भगवान शंकर ने उन्हें जाने की अनुमति दे दी। जब सती यज्ञ में पहुंचीं, तो उनकी मां के अलावा किसी ने उन पर ध्यान नहीं दिया। सती के पिता दक्ष ने यज्ञ में सबके सामने भगवान शंकर के लिए अपमानजनक शब्द कहे। अपने पति के बारे में भला-बुरा सुनने से हताश हुईं मां सती ने यज्ञ वेदी मे कूदकर अपने प्राण त्याग दिए। इसके बाद सती ने अगला जन्म शैलराज हिमालय के घर में पुत्री के रूप में लिया और वे शैलपुत्री कहलाईं।
-ॐ देवी शैलपुत्र्यै नमः॥
-वन्दे वाञ्छितलाभाय चन्द्रार्धकृतशेखराम्।
वृषारुढां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम्॥
पूजा विधि: मां शैलपुत्री को सफेद रंग की वस्तुएं काफी प्रिय हैं, इसलिए नवरात्रि के पहले दिन मां को सफेद वस्त्र और सफेद फूल चढ़ाने चाहिए। साथ ही सफेद रंग की मिठाई का भोग भी मां को बेहद ही पसंद आता है। मां शैलपुत्री की पूजा से भक्तों को मनोवांछित फल और कन्याओं को उत्तम वर की प्राप्ति होती है। शैल का अर्थ होता है पत्थर और पत्थर को दृढ़ता का प्रतीक माना जाता है। इसीलिए मां के इस स्वरूप की उपासना से जीवन में स्थिरता और दृढ़ता आती है।
नवरात्रि के पहले दिन मां दुर्गा के प्रथम स्वरूप शैलपुत्री की पूजा की जाती है. इस दिन मां शैलपुत्री को गुड़हल का फूल चढ़ाएं और गाय के घी का भोग लगाना चाहिए. इससे आरोग्य लाभ की प्राप्ति होती है.
देवीभाग्वत पुराण में कहे एक श्लोक के अनुसार माता का वाहन अश्व यानि घोड़ा होगा! ऐसे में पड़ोसी देशों से युद्ध, छत्र भंग, आंधी-तूफान के साथ कुछ राज्यों में सत्ता में उथल-पुथल की संभावना रहता है. वहीं जब माता के विदाई की सवारी भी भविष्य में घटने वाली घटनाओं की ओर इशारा करता है. इस बार मां दुर्गा नर वाहन पर विदा होंगी.
13 अप्रैल दिन मंगलवार को हो रहा है। इसी दिन हिंदू नववर्ष का आरंभ भी होगा। ज्योतिषशास्त्र के अनुसार नवरात्र का बड़ा ही महत्व होता है। इस पूरे नौ दिनों में मां दुर्गा के नौ स्वरूपों की उपासना की जाती है।
या देवी सर्वभूतेषु,
शक्तिरूपेण संस्थिता,
नमस्तस्यै नमस्तस्यै,
नमस्तस्यै नमो नम:
जय अम्बे गौरी, मैया जय श्यामा गौरी,
तुमको निशिदिन ध्यावत, तुमको निशिदिन ध्यावत,
हरि ब्रह्मा शिवरी ॐ जय अम्बे गौरी
जय अम्बे गौरी, मैया जय श्यामा गौरी,
तुमको निशिदिन ध्यावत, तुमको निशिदिन ध्यावत,
हरि ब्रह्मा शिवरी ॐ जय अम्बे गौरी
माँग सिन्दूर विराजत, टीको जगमग तो,
उज्जवल से दो नैना, चन्द्रवदन नीको,
ॐ जय अम्बे गौरी
कनक समान कलेवर, रक्ताम्बर राजै,
रक्तपुष्प गल माला, कण्ठन पर साजै,
ॐ जय अम्बे गौरी
केहरि वाहन राजत, खड्ग खप्परधारी,
सुर-नर-मुनि-जन सेवत, तिनके दुखहारी,
ॐ जय अम्बे गौरी
कानन कुण्डल शोभित, नासाग्रे मोती,
कोटिक चन्द्र दिवाकर, सम राजत ज्योति,
ॐ जय अम्बे गौरी
शुम्भ-निशुम्भ बिदारे, महिषासुर घाती,
धूम्र विलोचन नैना, निशिदिन मदमाती,
ॐ जय अम्बे गौरी
चण्ड-मुण्ड संहारे, शोणित बीज हरे,
मधु-कैटभ दोउ मारे, सुर भयहीन करे,
ॐ जय अम्बे गौरी
ब्रहमाणी रुद्राणी तुम कमला रानी,
आगम-निगम बखानी, तुम शिव पटरानी,
ॐ जय अम्बे
गौरी चौंसठ योगिनी गावत, नृत्य करत भैरव,
बाजत ताल मृदंगा, और बाजत डमरु,
ॐ जय अम्बे गौरी
तुम ही जग की माता, तुम ही हो भरता,
भक्तन की दु:ख हरता, सुख सम्पत्ति करता,
ॐ जय अम्बे गौरी
भुजा चार अति शोभित, वर-मुद्रा धारी,
मनवान्छित फल पावत, सेवत नर-नारी,
ॐ जय अम्बे गौरी
कन्चन थाल विराजत, अगर कपूर बाती,
श्रीमालकेतु में राजत, कोटि रतन ज्योति,
ॐ जय अम्बे गौरी
श्री अम्बेजी की आरती, जो कोई नर गावै,
कहत शिवानन्द स्वामी, सुख सम्पत्ति पावै,
ॐ जय अम्बे गौरी
जय अम्बे गौरी, मैया जय श्यामा गौरी,
तुमको निशिदिन ध्यावत, तुमको निशिदिन ध्यावत,
हरि ब्रह्मा शिवरी ॐ जय अम्बे गौरी
नवरात्रि के पहले माता शैलपुत्री की पूजा की जाती है। नवरात्रि के नौ दिनों में मां दुर्गा के नौ रूपों की पूजा की जाती है।
श्रीदुर्गा की प्रतिमा पर सिंदूर, दर्पण, कंघी, केसर, कपूर, धूप, वस्त्र, बंदनवार आम के पत्तों का, पुष्प, सुपारी साबुत, दूर्वा, मेंहदी, बिंदी, हल्दी की गांठ, पिसी हुई हल्दी, पटरा, आसन, पुष्पहार, बेलपत्र, चौकी, रोली, मौली, कमलगट्टा, दीपक, दीपबत्ती, जायफल और जावित्री चढ़ाएं।
पहले दिन मां शैलपुत्री, दूसरे दिन मां ब्रह्मचारिणी, तीसरे दिन मां चंद्रघंटा, चौथे दिन मां कुष्मांडा, पांचवे दिन स्कंदमाता, छठे दिन मां कात्यायनी, सातवें दिन मां कालरात्रि, आठवें दिन मां महागौरी और नौवें दिन मां सिद्धिदात्री की पूजा की जाती है।
माँ का श्रृंगार रोली ,चावल, सिंदूर, माला, फूल, चुनरी, साड़ी, आभूषण और सुहाग से करते हैं। पूजा स्थल में एक अखंड दीप जलाया जाता है जिसे व्रत के आखिरी दिन तक जलाया जाना चाहिए। कलश स्थापना करने के बाद, गणेश जी और मां दुर्गा की आरती करते है जिसके बाद नौ दिनों का व्रत शुरू हो जाता है।
अम्बे तू है जगदम्बे काली,
जय दुर्गे खप्पर वाली,
तेर ही गुण गायें भारती,
ओ मैया हम सब उतारे तेरी आरती ।
तेर भक्त जानो पर मैया भीड़ पड़ी है भारी,
दानव दल पर टूट पड़ो माँ कर के सिंह सवारी ।
सो सो सिंघो से है बलशाली,
है दस भुजाओं वाली,
दुखिओं के दुखड़े निवारती ।
माँ बेटे की है इस जग में बड़ा ही निर्मल नाता,
पूत कपूत सुने है पर ना माता सुनी कुमाता ।
सबपे करुना बरसाने वाली,
अमृत बरसाने वाली,
दुखिओं के दुखड़े निवारती ।
नहीं मांगते धन और दौलत ना चांदी ना सोना,
हम तो मांगे माँ तेरे मन में एक छोटा सा कोना ।
सब की बिगड़ी बनाने वाली,
लाज बचाने वाली,सतिओं के सत को सवारती ।
ओ मैया हम सब उतारे तेरी आरती ।
चैत्र घटस्थापना मंगलवार 13 अप्रैल 2021 को घटस्थापना मुहूर्त- 05:58 AM से 10:14 AM अवधि- 04 घण्टे 16 मिनट घटस्थापना अभिजित मुहूर्त- 11:56 AM से 12:47 PM अवधि- 51 मिनट प्रतिपदा तिथि प्रारम्भ- 12 अप्रैल 2021 को 08:00 AM बजे प्रतिपदा तिथि समाप्त- 13 अप्रैल 2021 को 10:16 AM बजे
नवरात्रि में बहुत-से लोग पूरे नौ दिन तक उपवास भी रखते हैं। नवमी के दिन नौ कन्याओं को जिन्हें माँ दुर्गा के नौ स्वरूपों के समान माना जाता है, श्रद्धा से भोजन कराई जाती है और दक्षिणा आदि दी जाती है। चैत्र नवरात्रि में लोग लगातार नौ दिनों तक देवी की पूजा और उपवास करते हैं और दसवें दिन कन्या पूजन करने के पश्चात् उपवास खोलते हैं।
कलश स्थापना से संबन्धित हमारे पुराणों में मान्यता है जिसके अनुसार कलश को भगवान विष्णु का रुप माना गया है। इसलिए लोग देवी की पूजा से पहले कलश का पूजन करते हैं। पूजा स्थान पर कलश की स्थापना करने से पहले उस जगह को गंगा जल से शुद्ध किया जाता है और फिर पूजा में सभी देवी -देवताओं को आमंत्रित किया जाता है।
नवरात्रि पर्व में सुबह जल्दी उठें और स्नान कर पूजन की तैयारी करें। पूजा की थाल सजाएं। माँ दर्गा की प्रतिमा को लाल वस्त्र में रखें। मिट्टी के पात्र में जौ के बीज बोयें और नवरात्रि के नौ दिनों तक इन पर पानी का छिड़काव करते रहें। शुभ मुहूर्त में विधि से कलश को स्थापित करें। कलश को मिट्टी के बर्तन के पास रख दें। फूल, कपूर, अगरबत्ती के साथ पंचोपचार पूजा करें। नौ दिनों तक माँ दुर्गा की विधि विधान पूजा करें। अष्टमी या नवमी को मां दुर्गा की पूजा के बाद नौ कन्याओं का पूजन करें। आखिरी दिन दुर्गा माता के पूजा के बाद कलश विसर्जित कर दें।
नवरात्रि में शक्ति के नौ रूपों की पूजा होती है। भारत के अलग-अलग राज्यों में नवरात्रि को अलग-अलग ढंग से मनाया जाता है। जैसे बंगाल और असम में नवरात्र में दुर्गा माता की मूर्तियों की पूजा होती है। गुजरात की बात करें तो वहां मिट्टी से बने बर्तनों को पूजा जाता है। यहां मिट्टी के इन बर्तनों को गरबो कहते हैं। उत्तर भारत में नवरात्रि पर्व को राम लीला से जोड़ा जाता है। वहीं दक्षिण भारत में इन दिनों देवी-देवताओं की छोटी-छोटी मूर्तियां जुटाई जाती हैं।
माँ दुर्गा को आदिशक्ति कहा गया है अर्थात् सभी शक्तियाँ इन्हीं से निःसृत होती हैं। यही सृष्टि की नियामिका शक्ति हैं, साथ ही अखिल ब्रह्माण्ड की आधारशिला भी। यही अखिल ब्रह्माण्ड को नियोजित, नियमित, निर्देशित व संचालित करने वाली हैं और अपने दिव्य स्पंदनों से स्पंदित करने वाली भी। लेकिन इस आदि शक्ति और इनके नामों की क्या व्याख्या हो? अलग-अलग संदर्भों में भक्त, साधक, शोधार्थी , जिज्ञासु, ज्ञानी और अर्थार्थी इस आदि शक्ति के नामों और संबद्ध उपासना पद्धति के अलग-अलग अर्थ व्याख्यायित करते हैं। जानिए मां दुर्गा के स्वरुपों का अर्थ
यह नवरात्र धन और धर्म की बढ़ोतरी के लिहाज से काफी खास माना जा रहा है। 13 अप्रैल चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को वासंती नवरात्र अश्वनी नक्षत्र सर्वार्थ अमृत सिद्धि योग से प्रारंभ होगा और 22 अप्रैल गुरुवार को मघा नक्षत्र और सिद्धि योग में दशमी तिथि के साथ संपन्न हो जाएगा। मां अपने भक्तों को दर्शन घोड़े पर सवार होकर देने आ रही हैं! वही मां की विदाई नर वाहन पर होगी।
13 अप्रैल मंगलवार से शुरू हो रहे नवसंवत्सर के दिन दो बजकर 32 मिनट में सूर्य का मेष राशि में प्रवेश हो रहा है। संवत्सर प्रतिपदा और विषुवत संक्रांति दोनों एक ही दिन 31 गते चैत्र, 13 अप्रैल को हो रही है। यह विचित्र स्थिति 90 वर्षों से अधिक समय के बाद हो रही है। इसके अलावा भारतवर्ष में ऋतु परिवर्तन के साथ ही हिंदू नववर्ष प्रारंभ होता है।
चौड़े मुंह वाला मिट्टी का एक बर्तन, कलश, 7 प्रकार के अनाज, पवित्र स्थान की मिट्टी, जल (संभव हो तो गंगाजल), कलावा/मौली, आम या अशोक के पत्ते (पल्लव), छिलके/जटा वाला नारियल, सुपारी, अक्षत, पुष्प और पुष्पमाला, लाल कपड़ा, मिठाई, सिंदूर, दूर्वा इत्यादि।
नवरात्रि के प्रथम दिन ग्रहों के शुभ संयोग से विशेष योग का निर्माण हो रहा है। प्रतिपदा की तिथि में विष्कुंभ और प्रीति योग का निर्माण हो रहा है। इस दिन विष्कुंभ योग दोपहर 03 बजकर 16 मिनट तक रहेगा। प्रीति योग का आरंभ होगा। करण सुबह 10 बजकर 17 मिनट तक, उसके बाद बालव रात 11 बजकर 31 मिनट तक रहेगा।
चैत्र शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से नवरात्र शुरू होते हैं। इस बार पूरे 9 दिन नवरात्र पड़ रहे हैं। मां की सवारी इस बार घोड़ा रहेगी।