Chandramani Gemstone: रत्न सिर्फ मनुष्य की शोभा बढ़ाने के लिए ही नहीं बल्कि रत्नों का संबंध सीधा ग्रहों से होता है। रत्न शास्त्र में 9 रत्नों का वर्णन मिलता है। ये रत्न किसी न किसी ग्रह का प्रतिनिधित्व करते हैं। मान्यता है अगर आपकी जन्मकुंडली में वो ग्रह कमजोर स्थित है तो उस ग्रह से संबंधित रत्न को धारण करके उस ग्रह की ताकत को बढ़ाया जा सकता है। यहां हम बात करने जा रहे हैं चंद्रमणि रत्न के बारे में जिसका संबंध चंद्र ग्रह से है। आइए जानते हैं चंद्रमणि धारण करने के लाभ और पहनने की सही विधि…

कैसी होती है चंद्रमणि

चंद्रमणि के ऊपर दूधिया रंग की चमक दिखाई देती है जो चांदी के समान प्रतीत होती है। इस उपरत्न की सतह पर कई बार नीली झांई के समान दूधिया रंग का प्रकाश दिखाई देता है। जिस चन्द्रमणि में जितनी अधिक नीली आभा होती है वह उतना ही अधिक मंहगा होता है। यह बाजार में सस्ता ही मिल जाता है। इसको बाजार से टैब टेस्टेड ही लेना चाहिए क्योंकि मार्केट में काफी नकली चंद्रमणि मिलती हैं।

चंद्रमणि धारण करने के लाभ

अगर परिवार में किसी न किसी कारण से सदस्यों के बीच तनाव रहता है। या वैचारिक मतभेद रहते हैं और पारिवारिक कलह पीछा नहीं छोड़ रही है तो मून स्टोन रत्न पहना बहुत फायदेमंद हो सकता है। साथ ही यह रत्न व्यक्ति को अपने काम और अपने फैसलों के प्रति मजबूती के साथ खड़ा रहने की योग्यता देता है। जिन लोगों की डिजीजन मेकिंग कमजोर होती है, वो लोग भी चंद्रमणि धारण कर सकते हैं। अगर किसी व्यक्ति को बार- बार क्रोध आता है तो वो भी चंद्रमणि धारण कर सकता है।

ये लोग कर सकते हैं धारण

वैदिक ज्योतिष अनुसार वृश्चिक लग्न वाले लोगों की जन्मकुंडली में चन्द्रमा भाग्य भाव का स्वामी है, लेकिनइसलिए वृश्चिक राशि वाले जातकों को चंद्रमणि पहनना चाहिए। साथ ही कर्क राशि के स्वामी चंद्र देव हैं। इसलिए कर्क राशि के जातक चंद्रमणि धारण कर सकते हैं। वहीं किसी व्यक्ति की जन्मकुंडली में चंद्रमा उच्च का मतलब सकारात्मक स्थित है तो वो लोग भी चंद्रमणि धारण कर सकते हैं। लेकिन अगर चंद्रमा नीच का विराजमान हो तो चंद्रमणि धारण नहीं करें।

इस विधि से करें धारण

रत्न शास्त्र अनुसार चंद्रमणि को चांदी की अंगूठी में ही धारण करना चाहिए। चंद्रमणि कम से कम सवा 7 रत्ती का होना चाहिए। साथ ही शुक्ल पक्ष के सोमवार की रात में इसे हाथ की सबसे छोटी उंगली (कनिष्ठा) में धारण करना चाहिए। कई लोग इसे पूर्णिमा के दिन भी पहनने की सलाह देते हैं। क्योंकि पूर्णिमा पर चंद्रमा की शक्ति पूर्ण होती है। वहीं इस उपरत्न को पहनने से पहले इसे गंगाजल और गाय के दूध से शुद्ध कर लें फिर इसे शिवजी को अर्पित करने के बाद ही धारण करें।