पूनम नेगी

कोई कहे गणेश तो कोई ‘एकदंत’। कहीं विनायक तो कहीं ‘गजानन’। विभिन्न नामों से संबोधित भक्तों के प्यारे गणपति बप्पा भारतीय जनमानस की आस्था का अटूट केंद्र हैं। विश्व का शायद ही कोई कोना हो जहां हिन्दू धर्मावलम्बी गणेश पूजन न करते हों। हिन्दू समाज का कोई भी शुभ कार्य गणपति को नमन के बिना शुरू नहीं किया जाता क्योंकि वे सुख-समृद्धि, वैभव एवं आनंद के अधिष्ठाता होने के साथ विघ्नहर्ता भी हैं।

श्री विनायक की अनूठी काया में मानवीय प्रबंधन के ऐसे अनूठे सूत्र समाए हुए हैं जो दुनिया की किसी भी पाठशाला में पढ़ाए नहीं जा सकते। भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि से शुरू होकर अनंत चतुर्दशी को संपन्न होने वाले इस दस दिवसीय मंगल उत्सव के दौरान पूरे देश में ‘विघ्नहर्ता’ के भक्तों की आस्था पूरे चरम पर दिखाई देती है।

गौरतलब हो कि महाराष्ट्र की संस्कृति में गणपति का विशेष स्थान है। गणेश जी के विश्व प्रसिद्ध मंदिर भारत के इसी प्रान्त में हैं। जिस प्रकार हमारी सनातन संस्कृति में भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों की विशेष महत्ता है। हिन्दू धर्मावलम्बियों के लिए महाराष्ट्र के अष्टविनायक भी उसी तरह आस्था के प्रमुख केंद्र हैं। महाराष्ट्र में पुणे के आसपास के सवा सौ किलोमीटर के क्षेत्र में स्थित मंगलमूर्ति गणेश के आठ पवित्र मंदिर अष्ट विनायकों के नाम से विख्यात हैं। ये अष्ट विनायक तीर्थ हैं-1. मयूरेश्वर या मोरेश्वर मंदिर, पुणे। 2. सिद्धिविनायक मंदिर, अहमदनगर। 3. बल्लालेश्वर मंदिर, रायगढ़। 4. वरदविनायक मंदिर, रायगढ़। 5. चिंतामणि मंदिर, पुणे। 6. गिरिजात्मज अष्टविनायक मंदिर, पुणे। 7. विघ्नेश्वर अष्टविनायक मंदिर, ओझर। 8. महागणपति मंदिर, राजणगांव। इन पुराण कालीन मंदिरों में विराजित गणेश की प्रतिमाएं स्वयंभू (स्वयं प्रगट) मानी जाती हैं।

पुणे से 80 किलोमीटर दूर मोरेगांव स्थित अष्ट विनायकों में प्रथम श्री मयूरेश्वर तीर्थ गणेशजी की पूजा का महत्त्वपूर्ण केंद्र है। इस मंदिर के चारों कोनों में निर्मित प्रस्तर मीनारें और चार द्वार सतयुग, त्रेतायुग, द्वापरयुग और कलियुग के प्रतीक माने जाते हैं। मंदिर के द्वार पर बनी शिव वाहन नंदी की मूर्ति का मुंह भगवान गणेश की मूर्ति की ओर है। पौराणिक मान्यता है कि प्राचीन काल में शिवजी और नंदी एक बार इस मंदिर क्षेत्र में विश्राम के लिए रुके थे, लेकिन बाद में नंदी ने यहां से जाने के लिए मना कर दिया। तभी से नंदी यहीं स्थित हो गए। नंदी और मूषक, दोनों ही इस मंदिर के रक्षक के रूप में तैनात हैं। मंदिर में गणेश जी बैठी मुद्रा में विराजमान है तथा उनकी सूंड बाएं हाथ की ओर है तथा उनकी चार भुजाएं एवं तीन नेत्र हैं।

अष्ट विनायकों में दूसरे हैं- सिद्धि विनायक। यह मंदिर पुणे से करीब 200 किमी दूरी पर भीम नदी के किनारे एक पहाड़ की चोटी पर बना हुआ है। मंदिर में गणेशजी की तीन फुट ऊंची और ढाई फुट चौड़ी उत्तर मुखी मूर्ति स्थापित है जबकि गणेश की सूंड सीधे हाथ की ओर है। इस सिद्धि विनायक मंदिर की परिक्रमा के लिए पहाड़ी की यात्रा करनी होती है।

अष्टविनायकों की श्रेणी में तीसरा है श्री बल्लालेश्वर विनायक मंदिर। मुंबई-पुणे हाइवे के किनारे बसे पाली गांव का यह मंदिर गणेशजी के परम भक्त बालक बल्लाल के नाम से जाना जाता है। कथा है कि प्राचीन काल में बल्लाल नामक एक भक्त बालक ने एक बार अपने दोस्तों के साथ मिलकर पाली गांव में गणेश जी की विशेष पूजा का आयोजन किया था।

यह पूजा कई दिनों तक चली, इस कारण उस पूजा में शामिल उसके मित्र कई दिनों तक अपने घर नहीं गए। इस बात से नाराज होकर उन बच्चों के माता-पिता ने बल्लाल को मार-पीट कर गणेश प्रतिमा के साथ उसे पास के जंगल में फेंक दिया। किन्तु उस गंभीर हालत में भी बल्लाल गणेश जी के मंत्रों का जप करता रहा। तब उसकी गहन भक्ति से प्रसन्न होकर गणेशजी ने उसे दर्शन दिए और उसके कहने पर सदा के लिए वहीं विराजमान हो गए। तभी से यह मंदिर बल्लालेश्वर विनायक के नाम से विख्यात हो गया।

अष्ट विनायक में चौथे हैं श्रीवरद विनायक। यह मंदिर महाराष्ट्र के रायगढ़ जिले के कोल्हापुर क्षेत्र में एक सुन्दर पर्वतीय गांव महाड़ में स्थित है। मान्यता है कि इस मंदिर में नंददीप नाम का एक दीपक सैकड़ों वर्षों में प्रज्जवलित है। पांचवें विनायक हैं- चिंतामणि गणपति। पुणे जिले के हवेली क्षेत्र में स्थित इस मंदिर के पास ही तीन नदियों भीम, मुला और मुथा का संगम है। माना जाता है कि भगवान ब्रहमा ने अपने विचलित मन को वश में करने के लिए इसी स्थान पर तपस्या की थी।

इस मंदिर के बारे में मान्यता है कि यहां शीश नवाने वाले भक्त सहज ही चिंता से मुक्त हो जाते हैं। छठे स्थान पर आते हैं श्री गिरजात्मज विनायक। पुणे-नासिक राजमार्ग पर पुणे से करीब 90 किलोमीटर दूर नारायणगांव के निकट यह मंदिर एक पहाड़ पर बौद्ध गुफाओं के स्थान पर बनाया गया है। यहां लेनयादरी पहाड़ पर 18 बौद्ध गुफाएं हैं और इनमें से 8वीं गुफा में गिरजात्मज विनायक मंदिर है।

सातवें स्थान पर हैं विघ्नेश्वर विनायक। यह मंदिर पुणे के ओझर जिले में जूनर क्षेत्र में स्थित है। पौराणिक कथाओं के अनुसार भगवान गणेश ने इसी क्षेत्र में विघ्नासुर का वध कर साधु-संतों को उसके कष्टों से मुक्ति दिलवाई थी। तभी से यह मंदिर विघ्नेश्वर विनायक के रूप में जाना जाता है। अष्टविनायकों में आठवें व अंतिम हैं महागणपति। पुणे के रांजणगांव में पुणे-अहमदनगर राजमार्ग पर 50 किलोमीटर की दूरी पर स्थित इस मंदिर का इतिहास 9-10वीं सदी के बीच माना जाता है। मंदिर का प्रवेश द्वार पूर्व दिशा की ओर है। मंदिर में स्थित भगवान गणपति की विशाल और सुन्दर मूर्ति को ‘माहोतक’ नाम से भी जाना जाता है।