Akshaya Tritiya Date: वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि बेहद ही शुभ मानी जाती है। जिसे अक्षय तृतीया कहा जाता है। इस दिन बिना मुहूर्त देखे किसी भी शुभ काम को संपन्न किया जा सकता है। सोना खरीदने का इस पर्व वाले दिन विशेष महत्व माना गया है। मान्यता है कि इस दिन सोना खरीदने से समृद्धि आती है। दान इत्यादि कार्यों के लिए भी ये दिन शुभ है। इस शुभ अवसर पर भगवान विष्णु, मां लक्ष्मी और कुबेर जी की पूजा होती है।

क्यों मनाई जाती है अक्षय तृतीया और क्या है महत्व:

– मान्यता है कि इस दिन भगवान विष्णु के छठें अवतार भगवान परशुराम का जन्म हुआ था। परशुराम महर्षि जमदाग्नि और माता रेनुकादेवी की संतान थे। यही कारण है कि अक्षय तृतीया के दिन भगवान विष्‍णु और परशुरामजी की पूजा की जाती है।

– त्रेता युग का प्रारंभ भी इसी तिथि से हुआ माना जाता है।

– इस दिन मां गंगा स्वर्ग से धरती पर अवतरित हुई थीं। इसलिए इस दिन पवित्र नदी गंगा में स्नान करने से सारे पाप नष्ट हो जाते हैं।

– इस दिन श्री बद्रीनाथ की प्रतिमा स्थापित कर पूजा की जाती है और श्री लक्ष्मी नारायण के दर्शन किये जाते हैं। प्रसिद्ध तीर्थ स्थल बद्रीनारायण के कपाट भी इसी तिथि से ही पुनः खुलते हैं।

– वृंदावन स्थित श्री बांके बिहारी जी मन्दिर में भी केवल इसी दिन श्री विग्रह के चरण दर्शन होते हैं, अन्यथा वे पूरे वर्ष वस्त्रों से ढके रहते हैं।

– भगवान शंकरजी ने इसी दिन भगवान कुबेर माता लक्ष्मी की पूजा अर्चना करने की सलाह दी थी। जिसके बाद से अक्षय तृतीया पर इनकी पूजा करने की परंपरा चली आ रही है।

– पौराणिक कथाओं अनुसार अक्षय तृतीया के दिन ही पांडव पुत्र युधिष्ठर को अक्षय पात्र की प्राप्ति भी हुई थी। इसमें कभी भी भोजन समाप्त नहीं होता था।

अक्षय तृतीया मुहूर्त:
अक्षय तृतीया 2020, 26 अप्रैल
अक्षय तृतीया पूजा मुहूर्त – 05:48 से 12:19
सोना खरीदने का शुभ समय – 05:48 से 13:22
तृतीया तिथि प्रारंभ – 11:51 (25 अप्रैल 2020)
तृतीया तिथि समाप्ति – 13:22 (26 अप्रैल 2020)

अक्षय तृतीया की पूजा विधि: इस दिन ब्रह्म मुहूर्त में गंगा स्नान करके श्री विष्णुजी और मां लक्ष्मी की प्रतिमा पर अक्षत (साबुत चावल) चढ़ाना चाहिए। भगवान की कमल के पुष्प या श्वेत गुलाब, धुप-अगरबत्ती एवं चन्दन इत्यादि से पूजा अर्चना करनी चाहिए। नैवेद्य के रूप में जौ, गेंहू, या सत्तू, ककड़ी, चने की दाल आदि चढ़ा सकते हैं। इस दिन ब्राह्मणों को भोजन करवाने की भी परंपरा है। साथ ही अपनी इच्छानुसार कुछ न कुछ दान जरूर करें।