Ahoi Ashtami 2021 Puja Vidhi, Vrat Vidhi, Katha, Muhurat, Samagri, Mantra: हिंदू धर्म में सभी त्योहारों का विशेष महत्व है, उन्हीं में से एक त्योहार है अहोई अष्टमी का। अहोई अष्टमी का व्रत माताएं अपनी संतान की लंबी आयु और सुख-समृद्धि के लिए करती हैं। कहा जाता है कि इस दिन से दिवाली की शुरुआत भी हो जाती है, यह व्रत करवा चौथ के चार दिन बाद रखा जाता है। इस दिन महिलाएं पूरे दिन निर्जला उपवास करती हैं और अपनी संतान की लंबी आयु के लिए मंगल कामना करती हैं। हर वर्ष कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष के अष्टमी तिथि को अहोई अष्टमी का त्योहार मनाया जाता है।
शुभ मुहूर्त:
अहोई अष्टमी पूजा का शुभ मुहूर्त- 05:39 PM से 06:56 PM
अवधि- 01 घण्टा 17 मिनट
गोवर्धन राधा कुण्ड स्नान गुरुवार, अक्टूबर 28, 2021 को
तारों को देखने के लिए सांझ का समय- 06:03 PM
अहोई अष्टमी के दिन चन्द्रोदय समय-11:29 PM
व्रत कथा: प्राचीन समय में एक साहुकार था, जिसके सात बेटे और सात बहुएं थी। साहुकार की एक बेटी भी थी जो दीपावली में ससुराल से मायके आई थी। दीपावली पर घर को लीपने के लिए सातों बहुएं मिट्टी लाने जंगल में गई तो ननद भी उनके साथ हो ली। साहुकार की बेटी जहां मिट्टी काट रही थी उस स्थान पर स्याहु (साही) अपने साथ बेटों से साथ रहती थी। मिट्टी काटते हुए गलती से साहूकार की बेटी की खुरपी की चोट से स्याहू का एक बच्चा मर गया। स्याहू इस पर क्रोधित होकर बोली मैं तुम्हारी कोख बाधूंगी। स्याहू के वचन सुनकर साहूकार की बेटी अपनी सातों भाभीयों से एक-एक कर विनती करती हैं कि वह उसके बदले अपनी कोख बंधवा लें। सबसे छोटी भाभी ननद के बदले अपनी कोख बंधवाने के लिए तैयार हो जाती है। इसके बाद छोटी भाभी के जो भी बच्चे होते हैं वे सात दिन बाद मर जाते हैं। सात पुत्रों की इस प्रकार मृत्यु होने के बाद उसने पंडित को बुलवाकर इसका कारण पूछा। पंडित ने सुरही गाय की सेवा करने की सलाह दी।
सुरही सेवा से प्रसन्न होती है और उसे स्याहु के पास ले जाती है। रास्ते थक जाने पर दोनों आराम करने लगते हैं, अचानक साहुकार की छोटी बहू की नजर एक ओर जाती हैं, वह देखती है कि एक सांप गरूड़ पंखनी के बच्चे को डंसने जा रहा है और वह सांप को मार देती है। इतने में गरूड़ पंखनी वहां आ जाती है और खून बिखरा हुआ देखकर उसे लगता है कि छोटी बहु ने उसके बच्चे को मार दिया है इस पर वह छोटी बहू को चोंच मारना शुरू कर देती है।
छोटी बहू इस पर कहती है कि उसने तो उसके बच्चे की जान बचाई है। गरूड़ पंखनी इस पर खुश होती है और सुरही सहित उन्हें स्याहु के पास पहुंचा देती है। वहां स्याहु छोटी बहू की सेवा से प्रसन्न होकर उसे सात पुत्र और सात बहु होने का अशीर्वाद देती है। स्याहु के आशीर्वाद से छोटी बहु का घर पुत्र और पुत्र वधुओं से हरा भरा हो जाता है।
अहोई अष्टमी मंत्र: अहोई अष्टमी से 45 दिनों तक ‘ॐ पार्वतीप्रियनंदनाय नमः’ का 11 माला जाप करने से शुभ फलों की प्राप्ति होती है। मान्यता है कि संतान कामना की इच्छा रखने वाले लोगों की भी इच्छा भी पूर्ण हो जाती है।
अहोई अष्टमी के दिन अहोई माता की पूजा करें और करवा में जल भरकर रखें। अहोई माता की कथा सुनें और स्याहु माता के लॉकेट की पूजा करें। उसके बाद संतान को पास में बैठाकर माला बनाएं। इस मौले को मौली के धागों की मदद से तैयार करें। माला बनाने के लिए किसी प्रकार की सूई या पिन का इस्तेमाल नहीं किया जाता है। संतान का तिलक करें और माला धारण करें।
पौराणिक कथाओं के अनुसार दिवाली के मौके पर घर को लीपने के लिए एक साहुकार की सात बहुएं मिट्टी लाने जंगल में गई तो उनकी ननद भी उनके साथ चली आई। साहुकार की बेटी जिस जगह मिट्टी खोद रही थी। उसी जगह स्याहु अपने बच्चों के साथ रहती थी। मिट्टी खोदते वक्त लड़की की खुरपी से स्याहू का एक बच्चा मर गया। इसलिए जब भी साहुकार की बेटी को बच्चे होते थे, वो सात दिन के भीतर मर जाते थे।
इसी तरह एक-एक कर उसके सात बच्चों की मौत हो गई। लड़की ने जब पंडित को बुलाया और इसका कारण पूछा तो उसे पता चला कि अनजाने में उससे जो पाप हुआ, उसका ये नतीजा है। पंडित ने लड़की से अहोई माता की पूजा करने को कहा, इसके बाद कार्तिक कृष्ण की अष्टमी तिथि के दिन उसने माता का व्रत रखा और पूजा की। बाद में माता अहोई ने सभी मृत संतानों को जीवित कर दिया। इस तरह से संतान की लंबी आयु और प्राप्ति के लिए इस व्रत को किया जाने लगा।
पहले इस्तेमाल की गई पूजा सामग्री का इस्तेमाल अहोई की पूजा में न करें। इसके साथ ही फल-फूल और मिठाई भी ताजी ही होनी चाहिए।
नि:संतान दंपत्ति को अहोई अष्टमी के दिन गणेश जी को बेलपत्र अर्पित करें और ‘ओम पार्वतीप्रियनंदनाय नम:’ मंत्र का 11 माला जप करें। अहोई अष्टमी से 45 दिन तक यह लगातार करना होता है।
अहोई अष्टमी के व्रत के दिन खाना बनाने में प्याज, लहसुन और तेल आदि का इस्तेमाल नहीं करें। जो महिलाएं अहोई अष्टमी का व्रत रखें वो दिन में सोने से परहेज करें। गलती से भी घर में किसी बड़े-बुजुर्ग का अनादर न करें।
अहोई अष्टमी के दिन स्याहु माला को संतान की लंबी आयु की कामना के साथ पहना जाता है। दिवाली तक इसे पहनना आवश्यक माना जाता है। मान्यता है कि इससे पुत्र की आयु लंबी होती है।
1. आज के दिन व्रत रखने वाली महिलाओं को मिट्टी से जुड़ा काम नहीं करना चाहिए।
2. व्रत करने वाली महिलाओं को बगीचे या गमले में खुरपी वगैरह भी नहीं चलानी चाहिए।
3. व्रत वाले दिन किसी भी नुकीली चीज जैसे चाकू, कैंची का इस्तेमाल न करें।
4. व्रत रखने वाली महिलाएं काले या गहरे नीले रंग के वस्त्र न पहनें।
हर साल अहोई अष्टमी के मौके पर राधा कुंड में बड़े मेले का आयोजन होता है। मान्यता है कि इस रात्रि में यदि पति और पत्नी संतान प्राप्ति की कामना के साथ इस राधा कुंड में डुबकी लगाएं और अहोई अष्टमी का निर्जल व्रत रखें, तो उनके घर में जल्द ही किलकारियां गूंजती हैं।
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार संतान के सुखी जीवन और जिन महिलाओं की संतानें नहीं होतीं। उसकी प्राप्ति के लिए अहोई अष्टमी व्रत करने का विधान होता है।
अहोई अष्टमी से 45 दिनों तक 'ॐ पार्वतीप्रियनंदनाय नमः' का 11 माला जाप करने से शुभ फलों की प्राप्ति होती है। मान्यता है कि संतान कामना की इच्छा रखने वाले लोगों की भी इच्छा भी पूर्ण हो जाती है।
अहोई माता की पूजा करने से पहले श्री गणेश की करनी चाहिए पूजा।
अहोई अष्टमी की पूजा का शुभ मुहूर्त शाम 5 बजकर 39 मिनट से 6 बजकर 56 बजे तक रहेगा। शुभ मुहूर्त की अवधि 1 घंटा 17 मिनट होगी
अहोई अष्टमी के दिन महिलाएं को नीले और काले रंग के कपड़े नहीं पहनन चाहिए। जिन महिलाओं ने व्रत रखा हैं, खासकर उन्हें तो इन रंगों के कपड़े भूलकर भी धारण नहीं करने चाहिए।
अहोई माता मूर्ति, माला, दीपक, करवा, अक्षत, पानी का कलश, पूजा रोली, दूब, कलावा, श्रृंगार का सामान, श्रीफल, सात्विक भोजन, बयाना, चावल की कोटरी, सिंघाड़े, मूली, फल, खीर, दूध व भात, वस्त्र, चौदह पूरी और आठ पुए आदि।
अहोई अष्टमी पूजा का शुभ मुहूर्त- 05:39 PM से 06:56 PM
अवधि- 01 घण्टा 17 मिनट
गोवर्धन राधा कुण्ड स्नान गुरुवार, अक्टूबर 28, 2021 को
तारों को देखने के लिए सांझ का समय- 06:03 PM
हिंदू धर्म में अहोई अष्टमी का विशेष महत्व है। यह व्रत संतान की सुख-समृद्धि के लिए रखा जाता है। कहते हैं कि अहोई अष्टमी का व्रत कठिन व्रतों में से एक है. इस दिन महिलाएं निर्जला व्रत रखती हैं। मान्यता है कि अहोई माता की विधि-विधान से पूजन करने से संतान को लंबी आयु प्राप्त होती है।
अहोई अष्टमी की पूजा के लिए चांदी की अहोई बनाई जाती है, जिसे स्याहु भी कहते हैं। पूजा के समय इस माला कि रोली, अक्षत से इसकी पूजा की जाती है। इसके बाद एक कलावा लेकर उसमे स्याहु का लॉकेट और चांदी के दाने डालकर माला बनाई जाती है। व्रत करने वाली माताएं इस माला को अपने गले में अहोई से लेकर दिवाली तक धारण करती हैं।
शाम को तारे निकलने के बाद अहोई माता की पूजा आरंभ होती है। इस दौरान महिलाएं तारों को अर्घ्य देकर अपने व्रत का पारण करती हैं। कुछ महिलाएं तो चंद्रमा को अर्घ्य देकर अहोई अष्टमी का व्रत खोलती हैं।
अहोई माता मूर्ति, माला, दीपक, करवा, अक्षत, पानी का कलश, पूजा रोली, दूब, कलावा, श्रृंगार का सामान, श्रीफल, सात्विक भोजन, बयाना, चावल की कोटरी, सिंघाड़े, मूली, फल, खीर, दूध व भात, वस्त्र, चौदह पूरी और आठ पुए आदि।
जिन महिलाओं की संतानें हमेशा अस्वस्थ रहती हैं उन्हें यह व्रत अवश्य करना चाहिए। संतानें होते ही मर जाती हैं, उन्हें भी यह व्रत अवश्य करना चाहिए। संतानों की अच्छी और लंबी आयु के लिए महिलाओं को यह व्रत करना चाहिए। यह व्रत माता और पिता दोनों करें तो अधिक फल प्राप्त होता है।
अहोई अष्टमी की पूजा के लिए चांदी की अहोई बनाई जाती है, जिसे स्याहु भी कहते हैं। पूजा के समय इस माला कि रोली, अक्षत से इसकी पूजा की जाती है। इसके बाद एक कलावा लेकर उसमे स्याहु का लॉकेट और चांदी के दाने डालकर माला बनाई जाती है। व्रत करने वाली माताएं इस माला को अपने गले में अहोई से लेकर दिवाली तक धारण करती हैं।
अहोई अष्टमी के दिन तारों को अर्घ्य देते समय तांबे के लोटे का प्रयोग बिल्कुल न करें। केवल स्टील या फिर पीतल के लोटे का ही प्रयोग करें।
अहोई माता को सफेद फूलों की माला अर्पित करें। अहोई अष्टमी पर माता को हलुआ और पूड़ी बनाकर उसका भोग लगाएं और प्रसाद बाटें। इससे संतान को तरक्की मिलती है।
प्राचीन काल में एक साहुकार था, जिसके सात बेटे और सात बहुएं थी। इस साहुकार की एक बेटी भी थी जो दीपावली में ससुराल से मायके आई थी। दीपावली पर घर को लीपने के लिए सातों बहुएं मिट्टी लाने जंगल में गई तो ननद भी उनके साथ हो ली। साहुकार की बेटी जहां मिट्टी काट रही थी उस स्थान पर स्याहु (साही) अपने साथ बेटों से साथ रहती थी। मिट्टी काटते हुए गलती से साहूकार की बेटी की खुरपी की चोट से स्याहू का एक बच्चा मर गया। स्याहू इस पर क्रोधित होकर बोली मैं तुम्हारी कोख बाधूंगी। स्याहू के वचन सुनकर साहूकार की बेटी अपनी सातों भाभीयों से एक-एक कर विनती करती हैं कि वह उसके बदले अपनी कोख बंधवा लें। सबसे छोटी भाभी ननद के बदले अपनी कोख बंधवाने के लिए तैयार हो जाती है। इसके बाद छोटी भाभी के जो भी बच्चे होते हैं वे सात दिन बाद मर जाते हैं। सात पुत्रों की इस प्रकार मृत्यु होने के बाद उसने पंडित को बुलवाकर इसका कारण पूछा। पंडित ने सुरही गाय की सेवा करने की सलाह दी।
सुरही सेवा से प्रसन्न होती है और उसे स्याहु के पास ले जाती है। रास्ते थक जाने पर दोनों आराम करने लगते हैं, अचानक साहुकार की छोटी बहू की नजर एक ओर जाती हैं, वह देखती है कि एक सांप गरूड़ पंखनी के बच्चे को डंसने जा रहा है और वह सांप को मार देती है। इतने में गरूड़ पंखनी वहां आ जाती है और खून बिखरा हुआ देखकर उसे लगता है कि छोटी बहु ने उसके बच्चे को मार दिया है इस पर वह छोटी बहू को चोंच मारना शुरू कर देती है।
छोटी बहू इस पर कहती है कि उसने तो उसके बच्चे की जान बचाई है। गरूड़ पंखनी इस पर खुश होती है और सुरही सहित उन्हें स्याहु के पास पहुंचा देती है। वहां स्याहु छोटी बहू की सेवा से प्रसन्न होकर उसे सात पुत्र और सात बहु होने का अशीर्वाद देती है। स्याहु के आशीर्वाद से छोटी बहु का घर पुत्र और पुत्र वधुओं से हरा भरा हो जाता है।
संतान की भलाई के लिए माताएं अहोई अष्टमी के दिन सूर्योदय से लेकर गोधूलि बेला (शाम) तक उपवास करती हैं। शाम के वक्त आकाश में तारों को देखने के बाद व्रत तोड़ने का विधान है। हालांकि कुछ महिलाएं चन्द्रमा के दर्शन करने के बाद व्रत को तोड़ती हैं। चंद्र दर्शन में थोड़ी परेशानी होती है, क्योंकि अहोई अष्टमी की रात चन्द्रोदय देर से होता है। नि:संतान महिलाएं संतान प्राप्ति की कामना से भी अहोई अष्टमी का व्रत करती हैं।