Adhik Maas Amavasya 2023 Upay For Pitru Dosh: अधिक मास में पड़ने वाली अमावस्या तिथि का विशेष महत्व है, क्योंकि यह 3 साल के बाद आती है। इसलिए इस तिथि का विशेष महत्व है। इस साल अधिक मास की अमावस्या 16 अगस्त 2023 को पड़ रही है। मान्यताओं के अनुसार, अमावस्या के दिन पितर पृथ्वी लोक में आते हैं ताकि उनके परिवार वाले उनका पिंडदान, तर्पण और श्राद्ध कर पाएं। इसके साथ ही अगर आपकी कुंडली में पितृदोष है, तो कुछ खास ज्योतिषीय उपाय करके भी इस समस्या से छुटकारा पा सकते हैं। जानिए अधिक मास की अमावस्या तिथि को कौन सा एक उपाय करने से पितृदोष से छुटकारा मिल सकता है।
बता दें कि इस बार अधिक मास की अमावस्या 15 अगस्त दिन मंगलवार को दोपहर 12 बजकर 42 मिनट से आरंभ हो रही है, जो 16 अगस्त बुधवार को दोपहर 03 बजकर 07 मिनट तक है। अमावस्या के साथ ही मलमास समाप्त हो जाएगा और श्रावण मास आरंभ हो जाएगा।
क्या है पितृ दोष? (Pitru Dosh)
जब किसी व्यक्ति की मृत्यु के बाद उसका अंतिम संस्कार ठीक ढंग से नहीं किया जाता है, तो परिवार के सदस्यों को कई पीढ़ियों तक पितृ दोष का दंश झेलना पड़ता है। इसके अलावा पीपल, नीम या फिर बरगद पेड़ कटवाने के कारण भी ये दोष लगता है।
ऐसे में कुंडली में पितृ दोष होने से संतान सुख से वंचित रह जाते हैं। इसके अलावा नौकरी, व्यवसाय पर बुरा असर पड़ता है। घर में हमेशा किसी न किसी के बीच विवाद बना रहता है। शादी होने पर किसी न किसी तरह की अड़चन आती रहती है।
अधिक मास की अमावस्या पर करें ये उपाय Adhik Maas Amavasya 2023 Upay For Pitru Dosh)
अधिक मास की अमावस्या को भगवान शिव की विधिवत पूजा करें। शिवलिंग में जल चढ़ाने के अलावा दूध, गंगाजल, काली तिल आदि भी चढ़ाएं। इसके साथ ही सफेद आक के फूल, बेलपत्र, भांग और धतूरा आदि चढ़ा दें। इसके अलावा सूर्यदेव को अर् दें। इसके लिए तांबे के लोटे में जल , सिंदूर, लाल फूल, अक्षत डाल लें। इसके बाद पितृओं के निमित्त नदी तट पर तर्पण कर्म करें। इसके साथ ही पितृसूक्त, गजेंद्र मोक्ष, पितृ स्तोत्र, पितृ गायत्री मंत्र, श्रीमद्भागवत गीता का पाठ और पितृ कवच का पाठ करके कपूर जलाकर आरती करें। इसके साथ ही इस मंत्र का जाप करें।
मंत्र- ॐ पितृगणाय विद्महे जगत धारिणी धीमहि तन्नो पितृो प्रचोदयात्।
।। पितृ-सूक्तम् ।।
उदिताम् अवर उत्परास उन्मध्यमाः पितरः सोम्यासः।
असुम् यऽ ईयुर-वृका ॠतज्ञास्ते नो ऽवन्तु पितरो हवेषु॥1॥
अंगिरसो नः पितरो नवग्वा अथर्वनो भृगवः सोम्यासः।
तेषां वयम् सुमतो यज्ञियानाम् अपि भद्रे सौमनसे स्याम्॥2॥
ये नः पूर्वे पितरः सोम्यासो ऽनूहिरे सोमपीथं वसिष्ठाः।
तेभिर यमः सरराणो हवीष्य उशन्न उशद्भिः प्रतिकामम् अत्तु॥3॥
त्वं सोम प्र चिकितो मनीषा त्वं रजिष्ठम् अनु नेषि पंथाम्।
तव प्रणीती पितरो न देवेषु रत्नम् अभजन्त धीराः॥4॥
त्वया हि नः पितरः सोम पूर्वे कर्माणि चक्रुः पवमान धीराः।
वन्वन् अवातः परिधीन् ऽरपोर्णु वीरेभिः अश्वैः मघवा भवा नः॥5॥
त्वं सोम पितृभिः संविदानो ऽनु द्यावा-पृथिवीऽ आ ततन्थ।
तस्मै तऽ इन्दो हविषा विधेम वयं स्याम पतयो रयीणाम्॥6॥
बर्हिषदः पितरः ऊत्य-र्वागिमा वो हव्या चकृमा जुषध्वम्।
तऽ आगत अवसा शन्तमे नाथा नः शंयोर ऽरपो दधात॥7॥
आहं पितृन्त् सुविदत्रान् ऽअवित्सि नपातं च विक्रमणं च विष्णोः।
बर्हिषदो ये स्वधया सुतस्य भजन्त पित्वः तऽ इहागमिष्ठाः॥8॥
उपहूताः पितरः सोम्यासो बर्हिष्येषु निधिषु प्रियेषु।
तऽ आ गमन्तु तऽ इह श्रुवन्तु अधि ब्रुवन्तु ते ऽवन्तु-अस्मान्॥9॥
आ यन्तु नः पितरः सोम्यासो ऽग्निष्वात्ताः पथिभि-र्देवयानैः।
अस्मिन् यज्ञे स्वधया मदन्तो ऽधि ब्रुवन्तु ते ऽवन्तु-अस्मान्॥10॥
अग्निष्वात्ताः पितर एह गच्छत सदःसदः सदत सु-प्रणीतयः।
अत्ता हवींषि प्रयतानि बर्हिष्य-था रयिम् सर्व-वीरं दधातन॥11॥
येऽ अग्निष्वात्ता येऽ अनग्निष्वात्ता मध्ये दिवः स्वधया मादयन्ते।
तेभ्यः स्वराड-सुनीतिम् एताम् यथा-वशं तन्वं कल्पयाति॥12॥
अग्निष्वात्तान् ॠतुमतो हवामहे नाराशं-से सोमपीथं यऽ आशुः।
ते नो विप्रासः सुहवा भवन्तु वयं स्याम पतयो रयीणाम्॥13॥
आच्या जानु दक्षिणतो निषद्य इमम् यज्ञम् अभि गृणीत विश्वे।
मा हिंसिष्ट पितरः केन चिन्नो यद्व आगः पुरूषता कराम॥14॥
आसीनासोऽ अरूणीनाम् उपस्थे रयिम् धत्त दाशुषे मर्त्याय।
पुत्रेभ्यः पितरः तस्य वस्वः प्रयच्छत तऽ इह ऊर्जम् दधात॥15॥
॥ ॐ शांति: शांति:शांति:॥
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