अचलेश्वर महादेव मंदिर (माउंट आबू, राजस्थान) बेहद अद्भूत और अनूठा पूजा स्थल है। यहां भगवान शिव के दाहिने पैर के अंगूठे की पूजा होती है। मान्यता है कि इस पर्वत को स्वयं महादेव ने अपने दाहिने अंगूठे से थाम रखा है। स्कंद पुराण के अर्बुद खंड में भी इस मंदिर का जिक्र है। अचलेश्वर महादेव मंदिर पश्चिमी राजस्थान के सिरोही जिले में ऋषि वशिष्ठ की तपस्थली माने जाने वाले माउंट आबू से 11 किमी दूर अचलगढ़ में है। इस प्राचीन मंदिर के रहस्य हैं।
पौराणिक कथा के अनुसार, अचलगढ़ में एक गहरी और विशाल खाई थी। इस खाई में ऋषि वशिष्ठ की गाएं गिर जाती थीं। इससे परेशान ऋषियों ने देवताओं से खाई को बंद करने की गुहार लगाई, ताकि आश्रमों में पल रहीं गायों का जीवन बच सके। ऋषियों के आग्रह पर देवताओं ने नंदीवर्धन को उस खाई को बंद करने का आदेश दिया, जिसे अर्बुद नामक एक सांप ने अपनी पीठ पर रखकर खाई तक पहुंचाया था। अर्बुद सांप को इस बात का अहंकार हो गया कि उसने पूरा पर्वत अपनी पीठ पर रखा है। इससे अर्बुद सांप हिलने-डुलने लगा। इस वजह से पर्वत पर कंपन होने लगा। इससे घबराए भक्तों की पुकार सुन महादेव ने अपने अंगूठे से पर्वत को स्थिर कर अर्बुद सांप का घमंड तोड़ दिया।
अचलगढ़ नाम का रहस्य
कहते हैं कि पर्वत को अचल करने की वजह से ही इस स्थान का नाम अचलगढ़ पड़ा। मंदिर में अंगुठानुमा प्रतिमा शिव के दाहिने पैर का वही अंगूठा है, जिससे शिव जी ने काशी से बैठे हुए इस पर्वत को थामा था। तभी से यहां अचलेश्वर महादेव के रूप में शिव जी के अंगूठे की पूजा की जाती है। मान्यता है कि भगवान शिव के अंगूठे ने पूरे माउंट आबू पहाड़ को थाम रखा है। जिस दिन अंगूठे का निशान गायब हो जाएगा, उस दिन माउंट आबू खत्म हो जाएगा। यह विश्व का इकलौता मंदिर है, जहां महाकाल के अंगूठे नुमा गोल भूरे पत्थर की पूजा होती है। यह गोल पत्थर गर्भगृह के एक कुंड से निकलता है। गर्भगृह की जिस गोल खाई से पत्थर निकला है, उसका कोई अंत नहीं है।
तीन बार रंग बदलता शिवलिंग
इस मंदिर की एक खासियत यह भी है कि यहां स्थापित शिवलिंग दिन में तीन बार अपना रंग बदलता है। शिवलिंग देखने में एकदम सामान्य लगेगा, लेकिन इसके बदलते हुए रंग आपको हैरान कर देंगे। शिवलिंग का रंग सुबह लाल, दोपहर में केसरिया और रात में काला हो जाता है। मंदिर में पंचधातुओं से बनी चार टन वजनी नंदी की मूर्ति भी है। मंदिर परिसर के विशाल चौक में चंपा का विशाल पेड़ अपनी प्राचीनता को दर्शाता है। मंदिर की बाईं ओर दो कलात्मक खंभों का धर्मकांटा है, जिसकी शिल्पकला अद्भुत है। क्षेत्र के शासक राजसिंहासन पर बैठने के समय अचलेश्वर महादेव से आशीर्वाद प्राप्त कर धर्मकांटे के नीचे प्रजा के साथ न्याय की शपथ लेते थे।
महादेव मंदिर में द्वारिकाधीश की उपस्थिति
महादेव मंदिर परिसर में ही द्वारिकाधीश का भी मंदिर है। गर्भगृह के बाहर वराह, नृसिंह, वामन, कच्छप, मत्स्य, कृष्ण, राम, परशुराम, बुद्ध व कलंगी अवतारों की काले पत्थर की भव्य मूर्तियां हैं। हर साल अचलेश्वर महादेव में शिवरात्रि पर्व विधि विधान पूर्वक हर्षोल्लास से मनाया जाता है। अचलेश्वर महादेव मंदिर अचलगढ़ की पहाड़ियों पर अचलगढ़ के किले के पास स्थित है। खंडहर में तब्दील हो चुका अचलगढ़ किले का निर्माण परमार राजवंश द्वारा करवाया गया था। बाद में वर्ष 1452 में महाराणा कुंभा ने इसका पुनर्निर्माण कराया और इसे अचलगढ़ नाम दिया। अचलेश्वर महादेव मंदिर पहुंचने के लिए पहले माउंट आबू पहुंचना होगा।