उत्तर प्रदेश सरकार ने जाति आधारित राजनीतिक रैलियों पर प्रतिबंध लगाने का फैसले किया है। इस पर सामुदायिक कार्यकर्ताओं ने मिली-जुली प्रतिक्रियाएं दी हैं। कुछ ने इसे कठोर करार दिया है, जबकि कई संगठनों ने कहा कि ये प्रतिबंध जरूरी थे। सरकार के आदेश के तहत वाहनों और साइनबोर्ड पर जाति के नाम लिखने और पुलिस रिकॉर्ड में जाति का उल्लेख करने तक पर रोक लग गई है।

पथिक सेना ने किया विरोध

पथिक सेना के राष्ट्रीय अध्यक्ष मुखिया गुर्जर ने बुधवार को इस कदम की आलोचना करते हुए इसे एक तानाशाही आदेश बताया। उन्होंने कहा, “अगर जाति एक आधार नहीं रहती है, तो जाति जनगणना का क्या होगा? ऐसा लगता है कि सरकार भविष्य में जाति आधारित जनगणना भी रोक सकती है। मुझे डर है कि कहीं मेरा नाम ‘मुखिया गुर्जर’ भी अधूरा न रह जाए।” उन्होंने कहा कि यह देखना बाकी है कि इस आदेश को कैसे लागू किया जाता है।

जाट महासभा ने क्या कहा?

वहीं जाट महासभा के प्रदेश अध्यक्ष रोहित जाखड़ ने भी फैसले से असहमति जताई और कहा कि जाति एक ऐसा सच है जिसे मिटाया नहीं जा सकता। उन्होंने कहा, “जब सभी राजनीतिक दल जाति के आधार पर संगठनात्मक पद और लोकसभा और विधानसभा चुनावों के लिए टिकट वितरित करते हैं, तो जाति तटस्थ होने की बात करना तानाशाही है। जाति भारतीय समाज का एक अकाट्य सच है।” रोहित जाखड़ ने कहा कि असली परीक्षा यह होगी कि इस फैसले को व्यवहार में कैसे लाया जाता है।

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ब्राह्मण संगठन ने फैसले का किया स्वागत

इसके विपरीत युवा ब्राह्मण समाज संगठन के जिलाध्यक्ष अश्विनी कौशिक ने इस फैसले का स्वागत किया। उन्होंने कहा, “जहां जाति से कटुता पैदा होती है, वहां प्रतिबंध आवश्यक हैं। किसी भी संगठन का उद्देश्य सामाजिक उत्थान होना चाहिए, न कि एक-दूसरे को नीचा दिखाना। अब इस आदेश को प्रभावी ढंग से लागू करना सरकारी मशीनरी की जिम्मेदारी है।” त्यागी भूमिहार ब्राह्मण समाज समिति (रजिस्टर्ड) के राष्ट्रीय अध्यक्ष मांगेराम त्यागी ने कहा कि यह आदेश उचित है लेकिन यह भी कहा कि जब तक राजनीतिक दल जातिगत विचारों के आधार पर टिकट और मंत्री पद बांटते रहेंगे, इस प्रथा को खत्म करना मुश्किल होगा।

क्या है आदेश?

योगी आदित्यनाथ सरकार के आदेश में राज्य में जाति आधारित रैलियों, वाहनों और साइनबोर्ड पर जाति के नाम प्रदर्शित करने और पुलिस रिकॉर्ड में जाति का उल्लेख करने पर पूर्ण प्रतिबंध लगाया गया है। जाति-आधारित भेदभाव को खत्म करने के उद्देश्य से इलाहाबाद उच्च न्यायालय के एक फैसले के बाद, उत्तर प्रदेश सरकार ने रविवार को पुलिस रिकॉर्ड और सार्वजनिक नोटिस से जाति के सभी संदर्भों को तुरंत हटाने का आदेश दिया।

आदेश में कहा गया है कि राजनीतिक मकसद वाली जाति-आधारित रैलियों और सार्वजनिक कार्यक्रमों को भी पूरे राज्य में प्रतिबंधित कर दिया गया है। जबकि जातिगत गौरव या नफरत को बढ़ावा देने वाली सोशल मीडिया सामग्री की बारीकी से निगरानी की जाएगी।