जहां एक ओर केंद्र सरकार गंगाजल में पाए जाने वाले बैक्टीरियोफाज (बैक्टिरिया खाने वाले) से एंटीबायोटिक दवाएं बनाने की संभावना तलाश रही है। वहीं दूसरी ओर एम्स में यमुना पर हो रहे अध्ययन में पाया गया है कि इसके पानी में बड़ी मात्रा में तमाम तरह के एंटीबायोटिक्स और कई खतरनाक प्रदूषक भी मिले हैं। एम्स के फार्मोकोलॉजी विभाग के डॉक्टर तिरुमूर्ति वेलपांडियन यह अध्ययन कर रहे हैं कि इंसान यमुना के पानी पर क्या असर डाल रहा है और यमुना का पानी इंसान की रोग प्रतिरोधक क्षमता को कैसे प्रभावित कर रहा है। उन्होंने बताया कि यमुना में पाए गए एंटीबायोटिक हमारी खाद्य श्रृंखला और हमारे दैनिक क्रियाकलापों में प्रयोग होने वाले उत्पादों से पहुंच रहे हैं। इन एंटीबायोटिक्स में कई तो ऐसे हैं जिनमें मल्टीड्रग रेजिस्टेंस भी पाया गया (एमडीआर) है। इसे देखते हुए लगता है कि यमुना के पानी की भूमिका रक्षात्मक नहीं है।

डॉक्टर वेलपांडियन ने बताया कि यमुना दिल्ली की सीमा में जहां प्रवेश कर रही हैस वहां (वजीराबाद) से पानी के छह नमूने लिए और जहां दिल्ली का आखिरी यमुना का छोर है (कालिंदी कुंज) वहां से भी कुछ नमूने लिए गए। इनकी जांच की तो पाया कि इनमें एजिथ्रोमाइसिन, सिप्लाफ्लाक्सिन, नारफालक्सिन ,फ्लोरोक्यूनोलांस (फेफड़ों के संक्रमण में प्रयोग होने वाला), मार्कोलिड्स (न्यूमोनिया और कई अन्य तरह के संक्रमण रोकने में प्रयोग होने वाला) सहित कई एंटीबायोटिक्स के समूह भी पाए गए।

इनके करीब सौ तरह के ऐसे अलग-अलग कण पाए गए हैं जिनका मानव शरीर पर काफी बुरा असर पड़ता है। इसके अलावा यह भी देखा गया गया है कि इसमें बेंजाल्कोनियम क्लोराइड भी है, जो घरों मे प्रयोग होने वाले (पोछा लगाने के रासायन)लाइजाल जैसे दूसरे पदार्थों के प्रयोग से पहुंच रहे हैं। उन्होंने कहा कि घरों में पोछा के लिए इस्तेमाल होने वाले केमिकल से लेकर बर्तन साफ करने के डिटर्जेंट, मंजन, डिब्बाबंद पदार्थों में शामिल खाद्य संरक्षकों (प्रिजर्वेटिव्स) सहित रोजमर्रा की जरूरत की चीजों से हम अपनी नदियों को तबाह कर रहे हैं।

नदियों के प्रदूषकों से अंत:स्रावी ग्रंथियों पर बुरा असर हो रहा है। देखा जा रहा है कि महानगरों में मधुमेह, थॉयइराइड, रुमैर्टोआर्थराइटिस सहित ऐसी तमाम बीमारियां बढ़ रही हैं, जिनका संबंध उपापचय या इंडोक्राइन से है। नदियों या पीने के पानी में पाया जाने वाला एंटीबायोटिक्स जैव परिवर्धन के जरिए शरीर में पहुंच कर कई गुणा अधिक हो जाता है। मानव शरीर में एंटीबायोटिक की अधिकता होने पर उसमे किसी भी एंटीबायोटिक दवा का असर खत्म हो जाता है, जो चिकित्सा जगत के लिए एक बड़ी चुनौती है।

इसके अलावा औद्योगिक प्रदूषण यमुना में गिराए जाने से तमाम घातक रसायनों के साथ इसमें बायोएक्टिव भी पाए गए हैं। उन्होंने कहा कि यमुना में सालाना सात टन जैविक कण (बायोमालीक्यूल) पहुंच रहे हैं। इनसे पैदा होने वाले जहरीले कण पूरी पारिस्थितिकी पर असर डालते हैं। इनके मानव शरीर और जानवरों पर पड़ने वाले प्रभावों का अध्ययन अभी आगे होना है।