Who was Rana Beni Madhav Singh: रायबरेली से कांग्रेस सांसद और लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने अपने संसदीय क्षेत्र में राणा बेनी माधव सिंह की मूर्ति का अनावरण किया है। साथ ही उनकी मूर्ति पर पुष्प भी चढ़ाए हैं। इस दौरान राहुल गांधी ने कहा कि 1857 की क्रांति में राना बेनी माधव जी और वीरा पासी जी के योगदान को हम याद करते हैं। वे सब जिन्होंने अंग्रेजों से लड़ाई लड़ी, बलिदान दिया, जेल गए। वे सब आजादी और संविधान के लिए लड़े। आजादी की लड़ाई का नतीजा हमारा संविधान है और हमारे संविधान में हिंदुस्तान की जनता की आवाज है। आइए अब जानते हैं कि राणा बेनी माधव सिंह कौन हैं।
राणा बेनी माधव सिंह को 1857 की क्रांति के नायकों में शुमार किया जाता है। हालांकि, इतिहास में उनकी ज्यादा कोई चर्चा नहीं मिलती है। वह लोकनायक के तौर पर पहचान रखते हैं। खासतौर पर रायबरेली जिले में स्वतंत्रता के संघर्ष का जो इतिहास है, उसमें राणा बेनी माधव का नाम अमिट है। राणा बेनी माधव रायबरेली की शंकरपुर रियासत के राजा था। साल 1856 में अंग्रेजों ने नवाब वाजिद अली शाह को पद से हटाने का निर्णय लिया। राणा माधव ने इसका पुरजोर तरीके से विरोध किया।
18 महीने तक चला आंदोलन
ईस्ट इंडिया कंपनी की तरफ से बनाए गए रायबरेली के सालोन जिला हेडक्वार्टर पर विद्रोह का नेतृत्व राणा ने ही किया था। राणा ने ही रायबरेली से 1857 का बिगुल भी फूंक दिया था। राणा के नेतृत्व में आंदोलन करीब 18 महीने तक चला। ईस्ट इंडिया कंपनी के चंगुल से अवध के काफी सारे इलाके आजाद हो गए। 17 अगस्त 1857 को राणा बेनी माधव को जौनपुर और आजमगढ़ का प्रशासक तय किया गया।
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राणा ने गुरिल्ला युद्ध की नीति अपनाई
राणा का दबदबा इतना था कि इन्हीं के नेतृत्व में स्थानीय लोग, तालुकदार और जमींदार ब्रिटिश सेना के खिलाफ आवाज बुलंद कर रहे थे। राणा ने गुरिल्ला युद्ध की रणनीति अपनाई थी। इसी की वजह से अंग्रेज फिर से अवध को हासिल करने में सफल नहीं हो पा रहे थे। राणा बेनी माधव ने बेगम महल की भी काफी सहायता की थी। दिसंबर 1858 में वह नेपाल चले गए और यहां पर हुई जंग में शहीद हो गए। आर्मी चीफ की राहुल गांधी को नसीहत पढ़ें पूरी खबर…