गजेंद्र सिंह
सूचना के अधिकार (आरटीआइ) कानूून का उपयोग करके अपने बैंक खाते से रुपए कटने की जानकारी मांगने पर एक अधिवक्ता को बताया गया कि उन्होंने सूचना एक ‘अधिवक्ता’ की प्रतिनिधिक हैसियत से मांगी है न की नागरिक की हैसियत से। जवाब में यह भी कहा गया है कि ‘अधिवक्ता’ अधिनियम की धारा 3 में वर्णित नागरिक की परिभाषा के अंतर्गत नहीं आता है। ऐसा जवाब देकर बैंक की ओर से आवेदनकर्ता को जानकारी देने से मना कर दिया गया है। मामले पर सूचना मांगने वाले आवेदनकर्ता अधिवक्ता खालिद जीलानी ने राष्ट्रपति, केंद्रीय सूचना आयुक्त और बैंक के महाप्रबंधक को पत्र लिखा है और जांच की मांग की है। बरेली के अधिवक्ता मुहम्मद खालिद जीलानी ने 19 जून को पत्र भेजकर बैंक आॅफ बड़ौदा की सिविल लाइंस शाखा से आरटीआइ के तहत जानकारी मांगी थी कि बैंक द्वारा 9 दिसंबर, 2018 और 5 मार्च, 2019 को 17 रुपए 70 पैसे खाते से काटे गए। 15 जून, 2019 को 11 रुपए 80 पैसे तिमाही एसएमएस अलर्ट शुल्क के नाम पर काटे गए। लेकिन बैंक से बार-बार आग्रह करने के बावजूद उनके नंबर पर एसएमएस प्राप्त नहीं हुआ।

इसके अलावा उन्होंने बताया कि उनके बैंक खाते से 220 और 100 रुपए का पेट्रोल भरवाने पर 11 रुपए 80 पैसे की अतिरिक्त धनराशि कटौती की गई थी, जबकि कुछ दिन बाद 105 रुपए का पेट्रोल खरीदने पर 105 रुपए की ही कटौती की गई। जीलानी ने दोनों ही परिस्थतियों में कटौती की गई धनराशि की स्थिति स्पष्ट करने की मांग करते हुए आरटीआइ दाखिल किया था। यह पत्र उन्होंने अपने अधिवक्ता के निजी लेटर पैड पर लिखकर दायर की थी। जिसका जवाब 29 जून, 2019 को बैंक आॅफ बड़ौदा सहायक महाप्रबंधक एवं जन सूचना अधिकारी अतुल कुमार बंसल की ओर से प्राप्त हुआ।

जवाब में कहा गया कि ‘अधिनियम के प्रावधानों के तहत भारत के किसी भी नागरिक द्वारा सूचना का अधिकार अधिनियम के अंतर्गत सूचना प्राप्त करने के लिए आवेदन किया जा सकता है। लेकिन आपके द्वारा आवेदित सूचना अधिवक्ता की प्रतिनिधिक हैसियत से मांगी गई है न कि नागरिक की हैसियत में।’ जवाब में कहा गया है कि ‘अधिवक्ता’ अधिनियम की धारा 3 में वर्णित नागरिक की परिभाषा के अंतर्गत नहीं आता है। इसलिए आवेदित सूचना प्रदान नहीं की जा सकती है। आवेदन करने वाले अधिवक्ता खालिद जीलानी बताते हैं कि धारा 3 के मुताबिक सूचना मांगने वाला भारतीय नागरिक होना चाहिए, तो अधिवक्ता पहले भारतीय नागरिक है और बाद में अधिवक्ता।

जीलानी का कहना है कि यह उनका निजी लेटर पैड है जिस पर सूचना मांग रहे थे। इससे पहले वे इस लेटर पैड का उपयोग करके कई सूचना मांग चुके है जिसका जवाब भी आया है। जीलानी बताते हैं कि केंद्रीय सूचना आयुक्त इस तरह के कई मामलों में आदेश जारी कर चुके हैं, जिसमें धारा-3 से संबंधित एक मामले में आयुक्त की ओर से कहा गया था कि भारत के नागरिकों को सूचना का अधिकार है लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि एक सार्वजनिक प्राधिकरण नागरिकता के प्रमाण पर जोर दे और सूचना को अस्वीकार करने के एक तरीके के रूप में प्रयोग करे। ऐसे मामलों में जुर्माना और कारण बताओ नोटिस जारी किया जा चुका है।