Dihuli Massacre: मैनपुरी के दिहुली नरसंहार में मंगलवार को स्पेशल डकैती कोर्ट की ADJ इंद्रा सिंह ने फैसला सुनाया। 24 दलितों की सामूहिक हत्या में तीन डकैतों कप्तान सिंह, रामसेवक और रामपाल को फांसी की सजा दी है। 50-50 हजार का जुर्माना भी लगाया है। इतना ही नहीं दो दोषियों पर दो-दो लाख और दोषी पर एक लाख रुपये का जुर्माना भी लगाया गया।
जिन दोषियों को फांसी की सजा मिली है। वह अपने कानूनी अधिकारों का इस्तेमाल करते हुए 30 दिन के अंदर हाई कोर्ट का भी दरवाजा खटखटा सकते हैं। हाई कोर्ट सेशन कोर्ट के फैसले की समीक्षा के बाद अपना फैसला लेकर फांसी की सजा को बरकरार रख सकती है या फिर सजा में संशोधन भी किया जा सकता है। कोर्ट ने जब दोषियों को सजा सुनाई तो वह कोर्ट में ही रोने लगे।
क्या है पूरा मामला?
अब पूरे मामले की बात करें तो पुलिस की वर्दी पहने 17 डकैतों के एक गिरोह ने 18 नवंबर 1981 को शाम 4.30 बजे देहुली पर धावा बोला। ठाकुरों राधेश्याम सिंह उर्फ राधे और संतोष सिंह उर्फ संतोषा के नेतृत्व में उन्होंने दलित परिवार को निशाना बनाया और 24 लोगों की गोली मारकर हत्या कर दी। इसमें महिलाओं समेत बच्चे भी शामिल थे। उस समय 17 साल के छोटेलाल ने टॉइम्स ऑफ इंडिया को बताया, ‘मैं अपने खेतों में काम कर रहा था, तभी मैंने गोलियों की आवाज सुनी। सबसे पहले ज्वालाप्रसाद की हत्या हुई। इसके बाद उन्होंने गोलीबारी शुरू कर दी। हममें से कई लोग पास के जाजूमई गांव में भाग गए।’ एक स्थानीय शख्स की शिकायत के आधार पर पुलिस ने आईपीसी की धारा 302, 307 और 396 के तहत 17 आरोपियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की थी। चार दशकों से चल रहे मुकदमे में 14 की मौत हो गई।
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पूर्व पीएम इंदिरा गांधी पीड़ितों के परिवार से मिली थीं
इस हत्याकांड के बाद पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने पीड़ित परिवारों से मुलाकात की थी। वहीं विपक्ष के नेता अटल बिहारी वाजपेयी ने तो पैदल यात्रा निकालकर पीड़ित परिवारों के लिए संवेदना व्यक्त की थी। कोर्ट के इस फैसले के बाद वकील रोहित शुक्ला ने कहा कि करीब चार दशक के बाद पीड़ित परिवार को न्याय मिला है। कोर्ट का आज का फैसला ऐतिहासिक है। इससे समाज में यह मैसेज जाएगा कि कोई भी अपराधी कानून से नहीं बच सकता है। अंकित सक्सेना मर्डर केस में सभी दोषियों को आजीवन कारावास