बंगाल विधानसभा चुनाव के आखिरी दोनों चरणों में जिन सीटों पर मतदान होना है, उनमें मालदा की 12, मुर्शिदाबाद की 20 और कोलकाता की 11 सीटें यानी 45 सीटें ऐसी हैं, जहां भाजपा सबसे ज्यादा कमजोर रही है। इन दोनों चरणों में खासकर मालदा और मुर्शिदाबाद में तृणमूल कांग्रेस का मुकाबला कांग्रेस के साथ है। हालांकि, भाजपा ने इन इलाकों में भी अपनी ताकत झोंकी है। मुर्शिदाबाद में दो उम्मीदवारों के कोरोना से निधन की वजह से उन पर मतदान अब 16 मई को होगा। आखिरी दोनों चरणों में 71 के बजाय 69 सीटों पर ही मतदान होगा।

भाजपा ने पिछली बार मालदा जिले में एक सीट जीती थी। तब उसे कांग्रेस की गुटबाजी का फायदा मिला था। इस बार जिला कांग्रेस के नेता ऐसी गलती से बचने की बातें कर रहे हैं। मालदा जिला कांग्रेस महासचिव मोहम्मद मसूद आलम के मुताबिक, ‘पिछली बार की तरह सीटों पर तालमेल के तहत इस बार भी जिले की 12 सीटों में से नौ पर कांग्रेस लड़ रही है और तीन पर वाममोर्चा। इस बार तमाम सीटें संयुक्त मोर्चा के खाते में ही जाएंगी।’

मुर्शिदाबाद की 20 सीटों पर भी कांग्रेस का जोर नजर आता है। यह इलाका प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अधीर चौधरी की पकड़ वाला होने की वजह से पार्टी का गढ़ माना जाता है। असदुद्दीन ओवैसी ने भी यहां कुछ सीटों पर उम्मीदवार उतारे हैं, लेकिन कांग्रेस के स्थानीय नेताओं का कहना है कि फर्क नहीं पड़ेगा। इन दोनों जिलों में कांग्रेस इतनी मजबूत है कि तमाम कोशिशों के बावजूद तृणमूल कांग्रेस भी कभी यहां एक भी सीट नहीं जीत सकी है।

सातवें चरण में जिन सीटों पर मतदान कराए गए, उनमें दक्षिण दिनाजपुर के छह, पश्चिम बर्दवान की नौ, मालदा की छह, मुर्शिदाबाद की नौ और कोलकाता की चार सीटें शामिल हैं। बांग्लादेश से सटे दक्षिण दिनाजपुर में भाजपा को लोकसभा चुनाव में कामयाबी जरूर मिली थी, लेकिन तृणमूल का दावा है कि इस बार जिले में उसका खाता तक नहीं खुलेगा। आखिरी चरण में मालदा की छह, मुर्शिदाबाद की 11, वीरभूम की 11 और कोलकता की सात सीटों के लिए मतदान होगा। वीरभूम जिले में बीते दो-तीन साल में भाजपा और तृणमूल कांग्रेस के बीच हिंसक टकराव होते रहे हैं। राजनीतिक हिंसा में भी कई लोगों की मौत हो चुकी है।