मुख्यमंत्री ममता बनर्जी जीते-जी इतिहास बन रही हैं। बंगाल के सरकारी स्कूलों में आठवीं कक्षा में पढ़ाई जाने वाली इतिहास की पुस्तक में अब सिंगुर आंदोलन भी पढ़ाया जाएगा। राज्य सरकार के निर्देश पर पाठ्यक्रम तय करने वाली एक विशेषज्ञ समिति ने सिंगुर को पाठ्यक्रम में शामिल किया है। विपक्ष ने इसके लिए सरकार की खिंचाई की है। इसका औचित्य ठहराने के लिए वेस्ट बंगाल बोर्ड आफ सेकेंडरी एजुकेशन ने अतीत व विरासत शीर्षक से एक नए अध्याय में सिंगुर के अलावा तेलंगाना और नर्मदा बचाओ समेत कई मशहूर आंदोलनों को शामिल किया है। मगर जहां तेलंगाना आंदोलन को दो पन्ने में और बाकी तमाम आंदोलनों को पांच-पांच पंक्तियों में निपटा दिया गया है वहीं सिंगुर आंदोलन पर पूरे सात पेज हैं। इस आंदोलन से संबधित अध्याय के आखिर में सिलसिलेवार तरीके से तारीख के साथ बताया गया है कि किस तरह ममता और उनकी पार्टी तृणमूल कांग्रेस के दूसरे नेताओं ने 2006 में यह आंदोलन शुरू किया था और बीते साल सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले ने इस आंदोलन को जायज ठहराया है। शिक्षाविदों ने किसी सत्तारूढ़ पार्टी को इतिहास की पुस्तकों में इतनी प्रमुखता देने पर चिंता जताई है।
पाठ्यक्रम तय करने वाली समिति के अध्यक्ष अवीक मजुमदार स्वीकार करते हैं कि राज्य सरकार की ओर से भेजे एक प्रस्ताव के बाद ही सिंगर आंदोलन को इतिहास की पुस्तक में शामिल करने का फैसला किया गया, लेकिन उनकी दलील है कि यह आंदोलन इतिहास की पुस्तकों में जगह पाने का हकदार है। उन्होंने कहा कि राज्य सरकार ने इस आशय का एक प्रस्ताव जरूरी भेजा था। मगर यह बीती एक सदी के दौरान देश के सबसे बड़े व अहम किसान आंदोलनों में शुमार है। इस नाते इतिहास में इसकी जगह तो बनती ही है। सुप्रीम कोर्ट के फैसले से भी इस आंदोलन की अहमियत बढ़ गई है। आखिर इस अध्याय में तृणमूल कांग्रेस नेताओं को इतनी प्रमुखता क्यों दी गई है? इस सवाल पर मजुमदार कहते हैं कि जन आंदोलन का नेतृत्व तृणमूल नेताओं ने ही किया था तो उनकी अनदेखी कैसे की जा सकती है। उनकी दलील है कि किसी राजनीतिक दल के नाम का जिक्र नहीं किया गया है। बीते साल सिंगुर की जमीन पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद ही शिक्षा मंत्री पार्थ चटर्जी ने कहा था कि सरकार सिंगुर आंदोलन को इतिहास की पुस्तकों में शामिल करने के लिए पाठ्यक्रम समिति को एक औपचारिक प्रस्ताव भेजेगी। सरकारी सूत्रों ने बताया कि सरकार की इच्छा को सिर माथे पर रखते हुए पाठ्यक्रम समिति फौरन इस पर अमल करने में जुट गई। सिंगुर आंदोलन का अध्याय जोड़ने की वजह से ही इस साल इतिहास की पुस्तकों के वितरण में देरी हुई। इस पुस्तक का अंग्रेजी संस्करण अब तक छप कर नहीं आया है।
अब इतिहास की स्कूली किताबों में पढ़ाया जाएगा सिंगुर आंदोलन
लगभग सात पन्ने में सिंगुर आंदोलन की शुरुआत और ममता बनर्जी की भूमिका के बारे में विस्तार से चर्चा की गई है। इसमें पार्थ चटर्जी, शोभन चटर्जी, फिरहाद हकीम और मुकुल राय जैसे तृणमूल कांग्रेस नेताओं के अलावा आंदोलन का समर्थन करने वाले कम से कम 20 बुद्धिजीवियों का भी जिक्र है। हां, इसमें तृणमूल कांग्रेस का नाम नहीं दिया गया है। विपक्ष ने सरकार के इस फैसले की खिंचाई करते हुए इसे अपने मुंह मियां मिट्ठू बनना बताया है। वाममोर्चा और कांग्रेस नेताओं ने कहा है कि राज्य में विकास का काम करने की बजाय ममता बनर्जी सरकार खुद अपनी पीठ थपथपाने में जुटी है।

