एक बहुत पुरानी कहावत है कि बोया पेड़ बबूल का तो आम कहां से होय? पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को शायद अब इसका असली मतलब समझ में आ रहा है। यही वजह है कि राजधानी कोलकाता से सटे दक्षिण 24-परगना जिले के भांगड़ इलाके में एक बिजली परियोजना के लिए जमीन अधिग्रहण का विरोध करने वाले लोगों के साथ मंगलवार देर रात पुलिस की झड़प में दो लोगों की मौत के बाद ममता तुरंत मामले को दुरुस्त करने में जुट गई हैं। उधर, माओवादियों का एक गुट भी अब अधिग्रहण विरोधी आंदोलन की इस बहती गंगा में हाथ धोकर एक बार फिर अपने पांव जमाने का प्रयास कर रहा है।
राज्य के सिंगुर और नंदीग्राम में जमीन अधिग्रहण विरोधी जिस आंदोलन की लहर पर काबिज होकर ममता बनर्जी छह साल पहले बंगाल की सत्ता पर काबिज हुई थीं अब कोई एक दशक बाद वैसा ही एक आंदोलन उनके लिए सिरदर्द बन गया है। पावर ग्रिड कारपोरेशन आफ इंडिया के एक पावर सब-स्टेशन के लिए दक्षिण 24-परगना जिले में जमीन अधिग्रहण का विरोध करने वाले लोगों और पुलिस के बीच हिंसक संघर्ष में मंगलवार शाम को दो लोगों की मौत हो गई। वहां कुछ जमीन का अधिग्रहण किया गया है और निर्माण कार्य चल रहा है, लेकिन गांव वाले अब इसके विरोध में सड़कों पर उतर आए हैं। उनका कहना है कि जमीन का समुचित मुआवजा नहीं मिला है और इस सब-स्टेशन से स्वास्थ्य संबंधी खतरा भी पैदा होगा।
दूसरी ओर, अधिग्रहण विरोधी आंदोलन का मर्म समझने वाली ममता बनर्जी ने इस आंदोलन के पीछे माओवादियों का हाथ होने का आरोप लगाया है। उन्होंने कहा है कि जरूरत पड़ने पर इस परियोजना की जगह बदली जा सकती है। ममता के मुताबिक, इलाके में जबरन जमीन का अधिग्रहण नहीं किया जाएगा।
मंगलवार की हिंसा के बाद ममता ने फौरन एक बयान में कहा था कि इलाके में जमीन का जबरन अधिग्रहण नहीं किया जाएगा। उनका कहना था कि जरूरत पड़ने पर उस बिजली उप-केंद्र को कहीं और स्थानांतरित किया जा सकता है। मुख्यमंत्री ने कल की हिंसा की जांच सीआईडी को सौंप दी है। उसे इसमें शामिल खासकर माओवादियों और बाहरी तत्वों की शिनाख्त कर उनकी जल्द गिरफ्तारी के निर्देश दिए गए हैं।इस बीच, विपक्ष ने ममता पर निशाना साधते हुए कहा है कि उन्होंने एक दशक पहले जो फसल बोई थी अब उसे ही काट रही हैं। भाजपा के राष्ट्रीय सचिव सिद्धार्थ नाथ सिंह ने कहा कि अब सिंगुर व नंदीग्राम का भूत ममता को डराने लगा है। सिंह ने कहा कि एक ओर तो मुख्यमंत्री जमीन का जबरन अधिग्रहण नहीं करने की बात कहती हैं। लेकिन दूसरी ओर, भांगड़ में ठीक इसका उल्टा हो रहा है। भाजपा नेता ने आरोप लगाया कि विपक्ष में रहते किसानों और गरीब तबके के लोगों के प्रति ममता का रवैया कुछ और था। लेकिन सत्ता में आने का बाद उनका नजरिया बदल गया है।
सिंगुर और नंदीग्राम आंदोलन के समय राज्य की सत्ता पर काबिज माकपा ने तृणमूल कांग्रेस पर दोहरा रवैया अपनाने का आरोप लगाया है। माकपा के एक नेता ने कहा कि वर्ष 2007 में तृणमूल ने सिंगुर व नंदीग्राम में किसानों को भड़का कर आंदोलन शुरू किया था। अब वह खुद जबरन जमीन अधिग्रहण करने में जुटी है।जानकार सूत्रों का कहना है कि माओवादी संगठन सीपीआइ (एमएल) का रेड स्टार गुट भांगड़ में अधिग्रहण विरोधी आंदोलन की आग में घी डालने का काम कर रहा है। इस परियोजना के लिए पहले अधिग्रहीत 16 एकड़ जमीन लौटाने की मांग में जमीं, जीविका, परिवेश और पारिस्थितिकी तंत्र रक्षा समिति के बैनर तले बीते साल अक्तूबर से भीतर ही भीतर सुलगते आंदोलन की आग मंगलवार को अचानक भड़क उठी। इसने ममता बनर्जी को चिंता में डाल दिया है। खासकर दो दिन बाद ही यहां निवेशक सम्मेलन होना है। ऐसे में अधिग्रहण विरोधी यह आंदोलन खासकर विदेशी निवेशकों को यहां निवेश करने से रोक सकता है। साथ ही इससे राज्य के औद्योगिक माहौल के बारे में गलत संदेश जा सकता है। यही वजह है कि हिंसा भड़कने के तुंरत बाद ममता इस आंदोलन की आग पर पानी डालने के लिए सक्रिय हो गई हैं।

