पश्चिम बंगाल के राज्यपाल जगदीप धनखड़ ने बताया है कि राज्य की ममता बनर्जी सरकार विधानसभा सत्र के चालू रहते भी अध्यादेेश के जरिए अपने फैसले लागू कराना चाहती हैंं। उन्होंने रविवार (27 दिसंबर) को जनसत्ता.कॉम को इंटरव्यू में जानकारी दी कि चार दिन पहले राज्य सरकार की ओर से दो अध्यादेश उनके दस्तखत के लिए भेजे गए थे।
उन्होंने इस सवाल के साथ फाइलें लौटा दीं कि क्या विधानसभा सत्र समाप्ति की घोषणा हो चुकी है? फाइल पर इस टिप्पणी पर राज्य सरकार की ओर से कोई जवाब नहीं भेजा गया है। राज्यपाल ने कहा- मैं यह जानकारी पहली बार जनसत्ता.कॉम के साथ ही साझा कर रहा हूं। हालांकि, उन्होंने यह नहीं बताया कि अध्यादेश किस मामले से संबंधित थे। धनखड़ ने उक्त जानकारी एक सवाल के जवाब में दी। सवाल था- आपकी राय में राज्यपाल का पद कितना प्रासंंगिक है? हमने राज्यपाल से कई और सवाल पूछे।
सवाल: मुख्यमंत्री से आपके रिश्ते लगातार तल्ख ही रहते हैं। आखिर इसकी वजह क्या है?
जवाब: मेरा एक भी कदम संविधान के दायरे से बाहर हो तो बताएं। राज्य के हालात बहुत खराब हैं। अफसर राजनीतिक तंत्र के तौर पर काम कर रहे हैं। भ्रष्टाचार के आरोपी अफसरों को अहम पदों पर बिठाया जाता है। राजभवन में अफसरों और कर्मचारियों के खाली पद नहीं भरे जा रहे हैं। राज्यपाल के लिए विधानसभा का गेट बंद कर दिया जाता है। विरोधी दल के नेताओं को राजनीतिक गतिविधियों की खुली छूट नहीं है। राजनीतिक हत्या के बिना एक भी दिन नहीं बीतता। मैं अपने संवैधानिक कर्तव्यों से पीछे नहीं हट सकता।
सवाल: जब इतनी खराब हालत है तो आप राष्ट्रपति शासन की सिफारिश क्यों नहीं करते? माना जाए कि पश्चिम बंगाल में विधानसभा चुनाव राष्ट्रपति शासन के तहत होंगे?
मैं राज्य सरकार को लगातार चेता रहा हूं और स्थितियां ठीक करने के लिए कोशिश कर रहा हूं। मुझे सफलता भी मिल रही है। कुछ अफसर अभी भी ऊपर के दबाव में काम कर रहे हैं। अफसोस की बात है कि मीडिया पश्चिम बंगाल की खौफनाक हालात के बारे में मुख्यमंत्री से सवाल नहीं करता।
सवाल: मुख्यमंत्री की ओर से भी आरोप लगते हैं कि राज्यपाल राजनीति कर रहे हैं, इस पर आप क्या कहेंगे?
मीडिया से मेरा आग्रह है कि मेरी कोई भी गतिविधि संविधान के दायरे से बाहर हो, तो मुझे संकेत दें। राज्य में हत्या-बलात्कार की स्थिति को लेकर मैं ट्वीट करता हूं, ताकि लोग वस्तुस्थिति से अवगत और सचेत रहें। यह एक आम चलन है कि केंद्र में विरोधी पार्टी की सरकार हो तो राज्यपाल को केंद्र का एजेंट कह दिया जाए, लेकिन मैं राज्य में लोकतंत्र खत्म होते नहीं देख सकता। मैं ‘रबर स्टांप’ नहीं हूं।
सवाल: आप केंद्र के प्रतिनिधि तो हैं ही और इस नाते राज्य की हालत ठीक करने के लिए आपने क्या पहल की है?
देखिए ये बातें सार्वजनिक तौर पर नहीं की जा सकतीं, पर सर्वविदित है कि राज्यपाल की ओर से केंद्र को हर महीने राज्य की स्थिति पर रिपोर्ट जाती है।
सवाल: आप वकालत से राजनीति में कैसे आ गए, इस बारे में बताना चाहेंगे?
देखिए, मैं एक पेशेवर हूं। चौधरी देवीलाल की नजर मुझ पर पड़ी। उनमें प्रतिभाओं को पहचानने की अद्भुत क्षमता थी। झुंझुनू से लोकसभा चुनाव लड़ने के लिए उन्हें किसी की तलाश थी। मैंने उनसे कहा- मैं तो ‘प्लीडर’ हूं, वह बोले- ‘पी’ हटा दो और लीडर बन जाओ। लेकिन, मैं आज भी प्रोफेशनल ही हूं।