प्रकृति ने पूरे संसार के लिए अपने आप में बिल्कुल न्यायपूर्ण, व्यवस्थित और समुचित विधि बनाई है, लेकिन हम अपनी लालसा और अति लोभ में उसकी विधि के अनुरूप काम नहीं करके स्वयं के लिए संकट उत्पन्न करते रहते हैं। इसीलिए संसार में तरह-तरह की परेशानियां और बीमारियां आती हैं। कहीं सूखा पड़ रहा है तो कहीं बाढ़ का संकट है, कहीं गर्मी की ज्वाला से लोग त्रस्त हैं तो कहीं शीतलहर ने आम मनुष्यों का जीवन कष्टकर बना रखा है। जब हमारे पूर्वजों ने प्रकृति के अनुरूप काम किया तो वे अपने जीवन काल में हमेशा स्वस्थ, संपन्न और आनंदपूर्ण जीवन व्यतीत किए। जबसे हमने प्रकृति की उपेक्षा करनी शुरू की, तभी से हम कई प्रकार की विभीषिकाओं से परेशान रहने लगे। ये बातें भारत सरकार से जलयोद्धा घोषित और पिछले दो दशक से बुंदेलखंड में जल बचाने और जल प्रबंधन पर काम कर रहे जल ग्राम जखनी बुंदेलखंड उत्तर प्रदेश के संयोजक उमा शंकर पांडेय ने कही।

उन्होंने बताया कि वर्षा की बूंदें जहां गिरे वहीं रोकें, जिस खेत में जितना पानी होगा, खेत उतना अधिक उपजाऊ होगा। मेड़ ने खेत को पानी दिया, खेत ने पानी पिया पड़ोसी खेत को दिया, फिर खेत ने तालाब को दिया, तालाब ने कुआं को कुआं ने गांव को, गांव ने नाली को, नाली ने बड़े नाले को, नाले ने नदी को, नदी ने समुद्र को, समुद्र ने सूर्य को, सूर्य ने बादल को, बादल ने खेत को दिया। जल पाने की यही एक समान प्राकृतिक प्रक्रिया है। मानव जीवन की सभी आवश्यकताएं जल पर निर्भर हैं, तभी तो कहा गया है कि जल ही जीवन है।

कहा कि मैं गांव का हूं हमारे पुरखे प्रतिवर्ष जून माह मे अपने खेत में मेड़बंदी करते थे, किसान थे, मेड़बंदी के फायदे बताते थे। मनुष्य को जब भोजन की आवश्यकता पड़ी होगी, तब हमारे पुरखों ने भोजन का आविष्कार किया होगा। किस स्थान पर भोजन उगाया जाए, फसलें पैदा की जाएं, इसके लिए जमीन खोजी होगी, खेत बनाया होगा, खाद्यान्न, अन्न पैदा करने के लिए खेत का निर्माण तय हुआ होगा, तभी से मेड़बंदी जैसी जल संरक्षण की विधि का आविष्कार हुआ होगा, यह हमारे पुरखों के परिश्रम का फल है, जिनसे खेत-खलिहान का जन्म हुआ है।

बुंदेलखंड के बांदा जिले में जलग्राम जखनी में मेड़बंदी विधि से संग्रहित जल को दिखाते जलयोद्धा उमाशंकर पांडेय।

जिन्होंने जल संरक्षण परंपरागत प्रमाणित सर्वमान्य मेड़बंदी विधि का आविष्कार किया है, जिसमें किसी प्रकार की कोई तकनीकी शिक्षा, नवीन ज्ञान, वैज्ञानिक ज्ञान की आवश्यकता नहीं होती है।

उनके मुताबिक मेड़बंदी से खेतों में वर्षा का जल रुकता है, भू-जल संचय होता है, भूजल स्तर बढ़ता है, गांव का फसलों को जलभराव एवं आभाव के कारण होने वाले नुकसान से बचाता है। भूमि के कटाव के कारण मृदा के पोषक तत्व खेत से जाते हैं मेड़बंदी के कारण मृदा कटाव रुक जाता है, जिससे पोषक तत्व खेत में ही बने रहते हैं, जो पैदावार के लिए आवश्यक हैं, नमी संरक्षण के कारण फसल अवशेष से सड़ने से खेत को परंपरागत जैविक खाद ऊर्जा प्राप्त होती है।

मेड़बंदी से एक ओर जहां भूमि को खराब होने से बचाव होता है, वहीं पशुओं को मेड़ पर शुद्ध चारा भोजन प्राप्त होता है। मेड़बंदी, नाकाबंदी, चकबंदी, घेराबंदी, हदबंदी, जैसे अलग क्षेत्रों में अलग-अलग नामों से जाना जाता है। धान गेहूं की फसल तो केवल मेड़बंदी से रुके जल से ही होती है।

वे बताते हैं कि हमारे पूर्वज जल रोकने के लिए खेत के ऊपर मेड़, मेड़ के ऊपर फलदार छायादार औषधि पेड़ लगाते थे, जिसकी छाया खेत में, फसल पर कम पड़े जैसे बेल, सहजन, सागोन, करोंदा , अमरूद, नींबू, पेड़ लगाए जा सकते हैं। ये पेड़ इमारती लकड़ी, आयुर्वेदिक औषधियां, फल के साथ अतिरिक्त आय भी देते हैं। इन पेड़ों की छाया खेत में कम पड़ती है।

बताया कि इनके पत्तों से जैविक खाद मिलती है। पर्यावरण शुद्ध रहता है। मेड़ के ऊपर हमारे पुरखे अरहर, मूंग, उर्द, अलसी, सरसों, ज्वार, सन जैसी फसलें पैदा करते हैं, जिन्हें पानी कम चाहिए, जमीन सतह से ऊपर हो मेड़ से उपज फसल ले सकते हैं। मेड़बंदी से ऊसर भूमि को उपजाऊ बनाया जा सकता है जहां-जहां जल संकट है उसका एकमात्र उपाय है वर्षा जल को अधिक से अधिक खेत में मेड़बंदी के माध्यम से रोकना चाहिए।

विश्व में हमारी आबादी 16% है जबकि जल संसाधन मात्र 2% है। राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने 10 अक्टूबर 2017 को जल सप्ताह के अवसर पर कहा था कि हमें अधिक से अधिक नवीन और परंपरागत तकनीकों से वर्षा जल को रोकना होगा। 8 जून 2019 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने देश के प्रधानों को पत्र लिखा और कहा कि मेड़बंदी कर खेतों में वर्षा बूंदों को रोकें। हमारे देश में बड़ी संख्या में नहर, तालाब, कुओं, निजी ट्यूबवेलों के सिंचाई साधन होने के बावजूद भी कई करोड़ हेक्टेअर भूमि की खेती वर्षा जल पर निर्भर है। लाखों गांव में वर्तमान जल साधन उपलब्ध नहीं है।

वर्षा तो हर गांव में होती है। वर्षा के भरोसे खेती होती है। खासकर बुंदेलखंड के इलाके में पहाड़ी, पठार भूजल के अधिक दोहन से नदियां सूख रही हैं। तालाब की परंपरा समाप्त हो रही है। भूजल 400 फीट से 1000 फिट तक नीचे चला गया है। समस्त सभ्यताएं जल पर निर्भर हैं, हम बादलों पर निर्भर हैं।

मेड़बंदी से जल रोकने का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि खेत में मेड़बंदी कराकर इस प्रयास से भूजल स्तर बढ़ेगा, खेत की पैदावार बढ़ेगी। वहीं दूसरी ओर बड़ी संख्या में पलायन रुकेगा। रोजगार मिलेगा, किसान मजबूत होगा। खेत से पशु, पक्षी, जीव, जंतु, पेड़, पौधों को पानी मिलेगा। धान, गेहूं, पान, गुड़, गन्ना, कपास सब्जियों, पशु, औषधियों को मेड़बंदी के माध्यम से पानी मिलता है।

खेत से पानी रोकने से गांव का भूजल स्तर बढ़ेगा हमने यह प्रयोग बुंदेलखंड के कई जिलों में खुद किया है। कुछ साथियों ने भारत के कई सूखा प्रभावित राज्यों के गांव में खेतों में मेड़बंदी करके जल रोका है उन गांव का जल स्तर बढ़ा है।

जल शक्ति मंत्रालय ग्रामीण विकास मंत्रालय लघु सिंचाई विभाग सभी से मेरा अनुरोध है केवल वर्षा जल रोकने के लिए उपाय करें परिणाम आपके सामने तुरंत मिल सकते हैं। बुंदेलखंड की 6 लाख हेक्टेयर भूमि वर्षा जल पर आधारित है। इन खेतों में मेड़बंदी कर जल रोका जा सकता है। उन्होंने कहा कि यद्यपि मैं जल विशेषज्ञ नहीं हूं। किसान होने के नाते मैंने प्रयोग किया है। मेरे गांव व क्षेत्र का मेड़बंदी के कारण भूजल स्तर बढ़ा है।