उत्तर प्रदेश और मध्यप्रदेश की सीमा को जोड़ने वाले दुर्गम बीहड़ों के बीच कल-कल बहती चंबल नदी का जल देश की सबसे प्रदूषित समझी जाने वाली यमुना नदी को जीवनदान देता है। राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली से लेकर उत्तर प्रदेश के इटावा तक सबसे बुरे हालात से गुजर रही यमुना नदी को चंबल नदी का जल एक नई राह दिखाता है। असल में चंबल नदी इटावा जिले के भरेह में यमुना नदी में समाहित हो जाती है जहां से यमुना नदी की दिशा सुधर जाती है।

क्या कहते हैं अध्ययन
यमुना नदी के जल पर अध्ययन आइआइटी और एलेक्जेंड्रा यूनिवर्सिटी इजिप्ट ने मिलकर किया है। इसे एनवायरमेंट मॉनिटरिंग असेस्मेंट जनरल में प्रकाशित भी किया गया है। यमुना नदी का सबसे प्रदूषित हिस्सा दिल्ली से उत्तर प्रदेश के इटावा तक है। अध्ययन रिपोर्ट मे कहा गया है कि पांवटा (हिमाचल प्रदेश) से प्रतापपुर (यूपी) के बीच 12 जगहों से पानी लिया गया। इनमें पांवटा (हिमाचल प्रदेश), कलानौर (हरियाणा), मावी (यूपी), पल्ला (दिल्ली), मोहना (यूपी), मथुरा (यूपी), आगरा (यूपी), इटावा (यूपी) जैसी जगह शामिल हैं।

जगह के साथ बदल रही गुणवत्ता
पानी की गुणवत्ता के आधार पर यमुना नदी को चार समूह में बांटा गया है, जिसमें पहला समूह पांवटा, कलानौर, मावी और पल्ला है। इस जगह का पानी पीने के लिए भी उपयुक्त है और खेती और जलीय जीवन के लिए भी। दूसरे समूह में दिल्ली, मोहाना और मथुरा शामिल है। इस हिस्से में कुछ ड्रेन से आॅर्गेनिक लोड काफी अधिक नदी में मिल रहा है इसलिए इस हिस्से का पानी न तो पीने और न ही नहाने के योग्य है।

आगरा से इटावा तक का हाल
अध्ययन के तीसरे समूह में आगरा से इटावा तक के हिस्से को शामिल किया गया है। इस हिस्से का पानी भी पीने लायक नहीं है लेकिन इसे पीने के लायक बनाया जा सकता है। इस हिस्से में यमुना के प्रदूषण की वजह घरों और खेती से निकलने वाला प्रदूषण है। जबकि चौथे हिस्से में औरेया, हमीरपुर और प्रतापपुर शामिल हैं। इस हिस्से में नदी अपने सबसे अच्छे रूप में है। यहां नदी के पानी को विभिन्न कामों के लिए प्रयोग किया जा सकता है।

यमुना नदी के जल को कभी राजतिलक करने के काम में प्रयोग किया जाता था लेकिन आज उसी नदी के जल को कोई छूना भी पसंद नहीं कर रहा है। यमुना नदी इतनी प्रदूषित हो चुकी है कि वह एक नदी न होकर नाला बनकर रह गई है। धार्मिक नदी का दर्जा पाए यमुना नदी के इस हाल के लिए जिम्मेदार का पता लगाना जरूरी है। -संजीव चौहान, सचिव, सोसायटी फॉर कंजरवेशन ऑफ नेचर