व्यापम के जरिए मध्य प्रदेश मेडिकल कॉलेजों में दाखिला पाने के लिए अनुचित तरीके अपनाने के आरोपी 634 छात्रों का भविष्य फिलहाल स्पष्ट नहीं हो पाया है। दरअसल, सुप्रीम कोर्ट के एक पीठ के न्यायाधीशों के बीच मतभेद है, क्योंकि एक न्यायाधीश उनसे सेना में पांच साल बतौर चिकित्सक सेवा देने को कह रहे हैं, जबकि दूसरे न्यायाधीश उन्हें फिर से प्रवेश परीक्षा देने का आदेश दे रहे हैं।
मध्य प्रदेश हाई कोर्ट के साल 2014 के दो फैसलों को छात्रों ने चुनौती दी थी। इन फैसलों के जरिए साल 2008 से 2013 के बीच हुई प्रवेश परीक्षाओं में उनके नतीजों को मध्य प्रदेश प्रोफेशनल एग्जामिनेशन बोर्ड (एमपीपीईबी) द्वारा रद्द करने के खिलाफ की गई उनकी अपीलों को खारिज किया गया था। बोर्ड को व्यापम नाम से भी जाना जाता है। व्यापम घोटाला शीर्ष न्यायालय के आदेश से हो रही सीबीआइ जांच का भी विषय है। अपनी जांच में परीक्षा बोर्ड इस निष्कर्ष पर पहुंचा था कि परीक्षा प्रक्रिया में छेड़छाड़ की गई। ये 634 चिकित्सक उस परीक्षा प्रक्रिया के लाभार्थियों में शामिल हैं।
अलग-अलग फैसलों को आगे के आदेशों के लिए प्रधान न्यायाधीश टीएस ठाकुर के पास भेजते हुए न्यायमूर्ति जे चेलमेश्वर ने कहा कि उन्होंने इस बात का समर्थन किया है कि छात्रों को अपनी पढ़ाई पूरी करने दी जाए और वे बगैर किसी दावे के सेना में सेवा देकर समाज को इसका प्रतिफल दें। उन्होंने कहा कि वह वादियों को मेडिसिन की अपनी पढ़ाई पूरी करने दिए जाने और राष्ट्र की सेवा के लिए प्रशिक्षित चिकित्सक बनने को वरीयता देना चाहेंगे। लेकिन साथ ही एक मजबूत राष्ट्रीय हित यह भी है कि बेईमान लोगों को यह यकीन नहीं होने दिया जा सकता कि समय सबकुछ ठीक कर देता है और समाज सभी गलत कामों को माफ कर देता है, बशर्ते कि वे अपने गलत कामों से लंबे समय तक पीछा छुड़ाने में कामयाब रहें।
न्यायमूर्ति चेलमेश्वर ने कहा कि गलत काम करने वालों से समाज को अवश्य ही कुछ मुआवजा मिलना चाहिए। मुआवजा मौद्रिक होने की जरूरत नहीं है। इस मामले में यह नहीं होना चाहिए। उन्होंने कहा कि उनके विचार से वादियों से पांच साल तक राष्ट्र की सेवा कराने से यह व्यापक जनहित को पूरा करेगा और वे योग्य चिकित्सक बन जाएंगे। उस दौरान वे बगैर नियमित वेतन के काम करेंगे।
वहीं, न्यायमूर्ति एएम सप्रे ने न्यायमूर्ति चेलमेश्वर से अलग विचार जाहिर किया और हाई कोर्ट के फैसले को कायम रखते हुए कहा, ‘बड़े पैमाने पर नकल हुई।’ उन्होंने कहा कि राज्य वादियों और वादियों जैसे अन्य उम्मीदवारों को आगे कोई प्रतियोगी परीक्षा होने पर उनमें बैठने की इजाजत दे सकती है और उम्र सीमा में छूट देने पर विचार कर सकती है। इसके अलावा उनके विचार से वादी कोई अनुग्रह पाने के हकदार नहीं हैं।
115 पन्नों के फैसले में 57 पन्नों का फैसला लिखने वाले न्यायमूर्ति चेलमेश्वर ने व्यापम परीक्षा प्रक्रिया के विभिन्न पहलुओं और बोर्ड के कदम पर गौर किया। उन्होंने सुझाव दिया है कि इन चिकित्सकों को तभी प्रमाणपत्र दिया जाए जब वे सेना में पांच साल सेवा दें। हालांकि इस कार्य के लिए रक्षा मंत्रालय के विचारों को जानना होगा। उसके बाद इस न्यायालय की ओर से आगे का आदेश जारी करना होगा। उन्होंने कहा, ‘इस सिलसिले में विचारों में असहमति होने को लेकर मैं ऐसी कार्रवाई का प्रस्ताव नहीं करता।’ न्यायमूर्ति चेलमेश्वर ने छात्रों की यह दलील खारिज कर दी कि समय की कमी के चलते उनके खिलाफ कार्रवाई असंगत होगी।
उन्होंने कहा सवाल यह नहीं है कि ये छात्र किसी सहानुभूति के हकदार हैं या नहीं। उन्होंने कहा, ‘मेरे विचार से एक बड़ा सवाल यह है कि क्या यह समाज तकनीकी रूप से प्रशिक्षित और योग्य मानव संसाधनों की बर्बादी को सहन कर सकता है जिन्हें बनाने के लिए प्रचुर मात्रा में ऊर्जा, वक्त और अन्य भौतिक संसाधनों की जरूरत होती है।’ उन्होंने कहा कि बेशक 634 योग्य मेडिकल स्नातकों का एक और समूह तैयार करने में और पांच साल का वक्त लगेगा। इस विचार के लिए यह पृष्ठभूमि है। इस मुद्दे पर फैसला किए जाने की जरूरत है। हालांकि, न्यायमूर्ति सप्रे ने काफी हद तक न्यायमूर्ति चेलमेश्वर से मामले के कानूनी और तथ्यात्मक पहलुओं पर सहमति जताई।
* एक जज ने कहा, आरोपी छात्र पांच साल तक सेना में सेवाएं दे
* दूसरे जज ने कहा, आरोपी छात्र फिर से प्रवेश परीक्षा में बैठें