पिछले साल पश्चिम बंगाल में आए अम्फान चक्रवात के बाद, विश्व भारती विश्वविद्यालय ने मुख्यमंत्री राहत कोष में दान करने के लिए अपने कर्मचारियों का एक दिन का वेतन काटने का फैसला लिया था। अब कलकत्ता हाई कोर्ट ने कहा कि विश्वविद्यालय अपने कर्मचारियों की सहमति के बिना ऐसा नहीं कर सकता है।
अदालत विश्वविद्यालय के प्रोफेसरों की याचिका पर सुनवाई कर रही थी जो विश्वविद्यालय के “एकतरफा” फैसले के खिलाफ थे। हालांकि, अदालत ने विश्वविद्यालय को कर्मचारियों को राशि वापस करने के लिए नोटिस जारी नहीं किया। याचिकाकर्ताओं ने अपनी याचिका में मांग रखी थी कि उनकी राशि उनको लौटाई जाए। अदालत ने कहा कि चूंकि इस तरह की कटौती को एक साल से अधिक समय हो गया है, वह अब कुछ नहीं कर सकती क्योंकि उक्त राशि पहले ही सरकार को दे दी गई है और पैसे का इस्तेमाल पहले ही जरूरतमंदों के पक्ष में किया जा चुका है।
हालांकि, मामले की सुनवाई कर रही जस्टिस अमृता सिन्हा ने कहा, ‘यूनिवर्सिटी प्रशासन के पास न तो शक्ति है और न ही अधिकार है कि वह किसी कर्मचारी के वेतन या उसके किसी हिस्से को एकतरफा रूप से दान की आड़ में काट सके। किसी व्यक्ति को दान करने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता है। यह जबरन कटौती जैसा है, जो कि दान शब्द से बिल्कुल अलग है। ”
मालूम हो कि पश्चिम बंगाल के अम्फान चक्रवात के बाद, विश्वविद्यालय के रजिस्ट्रार (कार्यवाहक) ने 24 मई, 2020 को अपने कर्मचारियों को एक परिपत्र जारी किया, जिसमें कहा गया था कि कर्मचारियों के एक दिन के वेतन को मुख्यमंत्री राहत कोष में दान करने का निर्णय लिया गया है।
इसके बाद, स्थायी कर्मचारियों को 29 मई, 2020 को एक दिन का वेतन दान करने के लिए एक और नोटिस भेजा गया था। विश्वविद्यालय प्रशासन ने धारा 6 और 14 (3) और विश्व-भारती अधिनियम, 1951 (अधिनियम) के अन्य प्रावधानों का हवाला दिया था।
याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि विश्वविद्यालय प्रशासन से नोटिस प्राप्त करने के बाद, उन्होंने विश्वविद्यालय के अधिकारियों से अनुरोध किया कि कर्मचारियों को मामले में एक विकल्प दिया जाए।
हालांकि, विश्वविद्यालय प्रशासन ने इसका जवाब नहीं दिया, लेकिन एक अन्य नोटिस (29 मई को) भेजकर शिक्षकों से नोटिस का पालन करने को कहा।