राजगीर की तलहटी में नालंदा विश्वविद्यालय बनने के एक दशक बाद, बिहार में एक और प्राचीन शिक्षा केंद्र—विक्रमशिला को पुनर्जीवित करने का कार्य जारी है। पिछले साल दिसंबर से भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) अधिक पर्यटकों को आकर्षित करने के लिए प्राचीन विक्रमशिला विश्वविद्यालय के स्थल को विकसित कर रहा है। वहीं, बिहार सरकार ने हाल ही में भागलपुर जिले के अंतीचक गांव में केंद्रीय विश्वविद्यालय के लिए 202.14 एकड़ भूमि की पहचान की है।

केंद्र ने 2015 में दिए थे 500 करोड़ रुपए

हालांकि केंद्र ने 2015 में इस परियोजना को मंजूरी दी थी और 500 करोड़ रुपये आवंटित किए थे, लेकिन राज्य सरकार परियोजना के लिए उपयुक्त भूमि की पहचान करने में असमर्थ रही, जिससे अब तक इस पर बहुत कम प्रगति हो पाई।

24 फरवरी को भागलपुर में अपने संबोधन के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा, “अपने चरम पर, विक्रमशिला विश्वविद्यालय दुनिया के लिए ज्ञान का केंद्र था। हमने पहले ही प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय के गौरव को नए नालंदा विश्वविद्यालय के साथ जोड़ा है। नालंदा के बाद, अब विक्रमशिला की बारी है, क्योंकि हम एक केंद्रीय विश्वविद्यालय खोल रहे हैं।”

सप्ताहांत की एक सुबह, प्राचीन विक्रमशिला महाविहार के खंडहरों के स्थल पर कामगारों ने वनस्पतियों को उखाड़ा और इसके अंदर के ढांचों को सामने लाने के लिए मिट्टी को सावधानीपूर्वक साफ किया। संरक्षण और सुरक्षा प्रक्रिया के तहत पूरे स्थल को ग्रिड में विभाजित किया गया है।

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खंडहरों के बीच, धूप में चमकता हुआ एक क्रूसिफ़ॉर्म ईंट स्तूप स्थित है, जो विक्रमशिला स्थल का केंद्रबिंदु है। स्तूप के चारों ओर 208 कक्ष हैं – प्रत्येक ओर 52 – जहां अपने समय के सबसे प्रतिष्ठित विश्वविद्यालयों में से एक के छात्र-भिक्षु तंत्रयान का अभ्यास करते थे। तंत्रयान, जो हीनयान और महायान के बाद भारतीय बौद्ध धर्म की तीसरी प्रमुख शाखा थी, तांत्रिक अभ्यास और अनुष्ठानों पर केंद्रित था। इसी में विक्रमशिला के विद्वान विशेषज्ञ माने जाते थे।

8वीं शताब्दी के अंत से 9वीं शताब्दी की शुरुआत में पाल वंश के राजा धर्मपाल द्वारा स्थापित, विक्रमशिला महाविहार नालंदा विश्वविद्यालय के समकालीन था और अत्यंत समृद्ध हुआ।

एएसआई के अधीक्षण पुरातत्वविद् (पटना सर्कल) सुजीत नयन के अनुसार, “जहां नालंदा विश्वविद्यालय गुप्त काल (320-550 ई.) से लेकर 12वीं शताब्दी तक फला-फूला, वहीं विक्रमशिला पाल काल (8वीं से 12वीं शताब्दी) के दौरान अपने उत्कर्ष पर था। नालंदा को विभिन्न विषयों के अध्ययन हेतु अंतरराष्ट्रीय प्रसिद्धि प्राप्त थी, जबकि विक्रमशिला एकमात्र ऐसा विश्वविद्यालय था जो तांत्रिक और गुप्त अध्ययनों में विशेषज्ञता रखता था। वास्तव में, राजा धर्मपाल के शासनकाल के दौरान विक्रमशिला सर्वोच्च था और नालंदा के मामलों को नियंत्रित करने के लिए भी जाना जाता था।”

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नालंदा दोनों विश्वविद्यालयों में से पुराना था, लेकिन एक समय में दोनों शिक्षण केंद्रों ने ज्ञान और शिक्षकों – जिन्हें आचार्य कहा जाता था – का आदान-प्रदान किया। अपने चरम पर, विक्रमशिला में धर्मशास्त्र, दर्शन, व्याकरण, तत्वमीमांसा और तर्क जैसे विषय पढ़ाए जाते थे। लेकिन इसकी सबसे महत्वपूर्ण शिक्षा शाखा तंत्र थी, क्योंकि विक्रमशिला तांत्रिकवाद के उत्कर्ष काल में फला-फूला, जब बौद्ध धर्म और हिंदू धर्म दोनों में गुप्त विज्ञान और जादू अध्ययन के विषय थे।

इस विश्वविद्यालय ने कई महान विद्वानों को जन्म दिया, जिनमें अतिसा दीपांकर प्रमुख थे, जिन्होंने तिब्बत में बौद्ध धर्म के पुनरुद्धार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। संस्थान लगभग चार शताब्दियों तक समृद्ध रहा, लेकिन 13वीं शताब्दी के आसपास नालंदा के साथ इसका भी पतन हो गया। विशेषज्ञ इस पतन का कारण हिंदू धर्म के पुनरुत्थान और बौद्ध धर्म के ह्रास से लेकर बख्तियार खिलजी के आक्रमण तक, कई कारकों के संयोजन को मानते हैं। खंडहर-स्तूप, छात्र कक्षों के अवशेष और विशाल पुस्तकालय – विक्रमशिला के उत्थान और पतन के मूक साक्षी हैं।

यह पुस्तकालय, जिसके अवशेष स्थल के दक्षिण-पश्चिम में स्थित हैं, वह स्थान था जहाँ शिक्षकों और छात्रों को पांडुलिपियों की प्रतिलिपि बनाने और अनुवाद करने के लिए जाना जाता था।

एएसआई के सुजीत नयन के अनुसार, यह आयताकार संरचना, जो अब आंशिक रूप से उजागर हो चुकी है, एक उन्नत शीतलन प्रणाली से युक्त थी। इस प्रणाली के अंतर्गत समीपस्थ जलाशय से पानी इमारत में लाया जाता था। उन्होंने कहा, “शीतलन प्रणाली संभवतः नाजुक पांडुलिपियों को संरक्षित करने के लिए थी।” नयन ने यह भी कहा कि वे खुदाई की गई संरचना के मूल स्वरूप को बनाए रखते हुए स्थल का संरक्षण और सुरक्षा सुनिश्चित करने का प्रयास कर रहे हैं।

अंतीचक में प्रारंभिक खुदाई पटना विश्वविद्यालय (1960-69) द्वारा की गई थी, जिसके बाद एएसआई ने इस कार्य को अपने हाथ में ले लिया। साइट पर एक संग्रहालय स्थित है, जहां खुदाई के दौरान मिली अनेक प्राचीन वस्तुएँ प्रदर्शित की गई हैं – बुद्ध के जीवन की आठ प्रमुख घटनाओं को दर्शाने वाली नक्काशीदार चूना पत्थर की मूर्ति से लेकर बौद्ध और हिंदू देवताओं जैसे अवलोकितेश्वर, लोकनाथ, गणेश, सूर्य और विष्णु की मूर्तियाँ तक।

अंतीचक गाँव, जो प्राचीन स्थल से मात्र तीन किलोमीटर की दूरी पर स्थित है, में एक नए विश्वविद्यालय की स्थापना की योजना आकार ले रही है। बिहार सरकार ने भूमि अधिग्रहण के लिए 87.99 करोड़ रुपये स्वीकृत किए हैं। भागलपुर के जिला मजिस्ट्रेट नवल किशोर चौधरी ने कहा, “जिला प्रशासन ने प्राचीन विक्रमशिला स्थल से तीन किलोमीटर दूर 202.14 एकड़ भूमि की पहचान की है। इसमें से 27 एकड़ भूमि राज्य सरकार की है, लेकिन उस पर कुछ परिवारों का कब्जा है।”

बिहार के उपमुख्यमंत्री सम्राट चौधरी ने कहा, “विक्रमशिला परियोजना शुरू हो चुकी है। भूमि अधिग्रहण की प्रक्रिया शीघ्र पूरी कर ली जाएगी। एनएच-80 (विक्रमशिला को भागलपुर से जोड़ने वाला मार्ग, जो 50 किलोमीटर दूर है) के निर्माण और मरम्मत का कार्य जारी है। वह दिन दूर नहीं जब नए नालंदा और विक्रमशिला विश्वविद्यालय आपस में सहयोग करेंगे – ठीक वैसे ही जैसे प्राचीन काल में करते थे।”