कानपुर का कुख्यात गैंगस्टर विकास दुबे पुलिस एनकाउंटर में ढेर हो चुका है। बावजूद उसके अपराध की कहानी जान लोग हैरान हैं। विकास दुबे ने 1980 के दशक में ही अपराध की दुनिया में कदम रख लिया था। पहले वह छिनतई करता था और बिकरू से शिवली के बीच रास्ते में टेम्पो लूटा करता था। उसके सहयोगी रहे लल्लन वाजपेयी के मुताबिक विकास दुबे ने इसके लिए तभी गैंग बना लिया था। बिकरू गांव के ही निवासी और विकास दुबे के ग्रामीण छोटे लाल बताते हैं कि विकास दुबे ने 1980 के दशक में ही जमीन लूटने और कब्जाने की भी शुरुआत कर दी थी।

बतौर छोटे लाल, 1980 में विकास दुबे और गैंग के पास आठ बीघे जमीन थी। फिलहाल विकास दुबे के पास अकेले 125 बीघे जमीन थी। इसके अलावा कानपुर से लेकर लखनऊ तक उसकी कई प्रॉपर्टी थी, जो अधिकांशत: लूट के पैसे से खरीदी गई थी या फिर कब्जाई गई थी। छोटेलाल ने इंडियन एक्सप्रेस को बताया कि विकास दुबे के माता-पिता गांव में ही एक कच्चे मकान में रहते थे। बाद में दुबे ने उसे 20,000 स्कावायर फीट में एक आलीशान मकान बना दिया।

विकास दुबे ने लूट और कब्जे की आपाधापी में इंसानियत को भी तार-तार कर दिया। उसने जिस स्कूल (तारा चंद इंटर कॉलेज) से पढ़ाई की थी उसके रिटायर्ड प्रिंसिपल सिद्धेश्वर पांडेय की भी जमीन कब्जा ली थी और उनकी हत्या की भी साजिश रची थी। इस मामले में उसे आजीवन कारावास की सजा हुई थी लेकिन साल 2001 में जमानत पर रिहा होने में कामयाब रहा। उसके वकील ने बताया कि उसे दोषी करार देने के खिलाफ इलाहाबाद होई कोर्ट में मामला लंबित है।

3 जुलाई की रात उसने रेड मारने आए यूपी पुलिस के आठ कर्मियों की बेरहमी से हत्या कर दी। इस मामले में यूपी पुलिस उसे ढूंढ़ रही थी। आठ दिनों की लुकाछिपी के बाद विकास दुबे ने उज्जैन के महाकाल मंदिर के पास सरेंडर कर दिया था लेकिन कानपुर वापस लाने के दौरान यूपी पुलिस ने भागने की कोशिश करने पर दुबे का एनकाउंटर कर दिया। यूपी पुलिस के छह जवान इस मुठभेड़ में घायल हो गए थे।