ग्वालियर साम्राज्य पर राज करने वाली राजमाता विजयाराजे सिंधिया ने 1957 में कांग्रेस से अपनी राजनीति की शुरुआत की थी। 10 सालों के बाद कांग्रेस से उनका मोहभंग हुआ तो वो 1967 में जनसंघ में शामिल हो गईं। यहां उन्होंने अटल बिहारी वाजपेयी और लालकृष्ण आडवाणी के साथ मिलकर पार्टी को बढ़ाने का काम किया।
विजयाराजे, ग्वालियर की महारानी थीं और इस शहर से अटल बिहारी वाजपेयी का खास लगाव हुआ करता था। वाजपेयी, अक्सर बिना किसी को बताए ग्वालियर पहुंच जाया करते थे और सड़कों पर घूमने का आनंद लिया करते थे। एक बार जनसंघ के कार्यकर्ताओं ने उन्हें ग्वालियर में पैदल टहलते हुए देखा तो खबर विजयाराजे सिंधिया तक पहुंच गई।
राजमाता ने पार्टी से नाराजगी जताते हुए कहा कि क्या आप अपने सबसे बड़े नेता के लिए एक गाड़ी का इंतजाम नहीं कर सकते हैं। इसके बाद उन्होंने अपनी गाड़ी भेजी लेकिन अटल बिहारी वाजपेयी ने मना कर दिया। जब वह विजयाराजे से मुलाकात करने जयविलास पैलेस पहुंचे तो राजमाता ने उनसे कहा कि आप इतने बड़े नेता होकर पैदल घूम रहे हैं? इसके जवाब में वाजपेयी ने कहा कि ग्वालियर तो मेरा घर है और अपने घर में कोई गाड़ी से चलता है क्या।
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राजमाता ने राजनीति में परिवार से ज्यादा पार्टी का सहयोग किया 1984 के चुनावों में अटल बिहारी वाजपेयी, ग्वालियर लोकसभा सीट से चुनाव लड़ रहे थे। कांग्रेस ने इस सीट पर माधवराव सिंधिया को टिकट दे दिया। राजमाता के सामने एक तरफ पुत्र तो दूसरी तरफ पार्टी में से एक का चयन करना था। यहां उन्होंने अटल बिहारी वाजपेयी को धर्मपुत्र मानते हुए, उनका प्रचार किया था। हालांकि इन चुनावों में वाजपेयी को हार का सामना करना पड़ा था। उन्होंने कहा था कि अगर ग्लावियर सीट से मैं खुद चुनाव नहीं लड़ता तो राजमाता खुद उतर जातीं। ऐसे में एक परिवार का आपसी झगड़े का सड़कों पर आ जाना, अच्छी बात नहीं होती।
1984 के चुनावों में मिली हार के बाद जब अटल बिहारी वाजपेयी 2005 में ग्वालियर पहुंचे थे तो उन्होंने एक साहित्य सभा में कहा था कि ग्वालियर में मेरी चुनावी एक हार के पीछे एक इतिहास छिपा हुआ है, जो मेरे साथ ही चला जाएगा। उस साल का चुनाव राजनीतिक इतिहास के कुछ चुनिंदा रोचक किस्सों में गिना जाता है।
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अटल बिहारी वाजपेयी के ग्वालियर से चुनाव लड़ने के ऐलान के साथ दिल्ली में कांग्रेस की एक बैठक बुलाई गई। इस बैठक में राजीव गांधी समेत कांग्रेस तमाम नेताओं के साथ अर्जुन सिंह भी बैठे थे। बैठक में अर्जुन सिंह ने सुझाव दिया कि माधवराव सिंधिया को अटल बिहारी वाजपेयी के खिलाफ उतारा जाना चाहिए। राजीव गांधी को यह सुझाव पसंद आया, बाद में सभी नेताओं ने सहमति जताई तो माधवराव सिंधिया को इसकी जानकारी दे दी गई।