राजमाता विजयाराजे सिंधिया अपने पति जीवाजीराव सिंधिया के लंबे टाइटल से परेशान हो जाया करती थीं। राजमाता की उम्र 22 साल थी, जब उनकी शादी ग्वालियर के महाराजा जीवाजीराव सिंधिया के साथ हुई थी। उन दिनों ग्वालियर रियासत की गिनती देश की बड़ी रियासतों में होती थी। जीवाजी राव का टाइटल भी उनकी रियासत की तरह काफी बड़ा हुआ करता था। अपनी ऑटोबायोग्राफी प्रिंसेज में विजयाराजे सिंधिया लिखती हैं कि एक साधारण जीवन जीने वाले व्यक्ति के साथ कई सारे ओहदे जुड़ जाने के बाद बहुत परेशानी होती है। बताते चलें कि बीजेपी नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया के दादा जीवाजी राव ने लेखा दिव्येश्वरी देवी (शादी से पहले का नाम) से शादी की थी। शादी के बाद उनका नाम विजयाराजे सिंधिया हो गया था और आगे वह इसी नाम से जानी गईं।

जीवाजी सिंधिया का पूरा नाम काफी लंबा था, किताब के अनुसार उनका पूरा नाम लेफ्टिनेंट जनरल मुख्तार-उल-मुल्क, अम-उल-इक्तिदार, रफी-उश-शान, वाला शिकोह, मोहरा-शम-ए-दौरा, उम्दत्त-उल-उमराह, महाराजाधिराज, आलीजाह, हिसम-उश-सल्तनत, हिज हाईनेस सर जार्ज जीवाजी राव सिंधिया बहादुर, श्रीनाथमन्सूर-ए-जमा-फिदवी-हजरत-ए-माली-मुअज्जम-ए-रफीउद-दरजात-ए-इंग्लिशिया, ग्रांड कमांडर ऑफ एम्पायर। राजमाता अपनी किताब में लिखती हैं कि इतने सारे ओहदों के बीच जीवाजी राव साधारण इंसान की तरह अपना जीवन बिताते थे। उनकी दिनचर्या, घोड़ों, बंदूकों और अपने आपको तंदरुस्त रखने में बीता करती थी।

किताब में वह कहती हैं कि ग्वालियर के ज्यादातर शासकों ने अंग्रेजों से दोस्ती करके अपनी जनता को ही इसका फायदा पहुंचाया। अंग्रेजों के जीवन जीने के तौर तरीकों को अपनाने का रिवाज ग्वालियर में तेजी से चला। इसी कारण जीवाजी के नाम के साथ जॉर्ज भी लगता था। उनके पिता के देहांत के बाद जीवाजी की देखरेख अंग्रेजी सिविल सर्वेंट सर टेरेन्स कीज की एक कमेटी द्वारा की गई थी। शायद यही कारण था कि ग्वालियर नरेश पर अंग्रेजी रहन सहन का खासा प्रभाव देखने को मिलता था।

जीवाजी राव और विजयाराजे सिंधिया की शादी का किस्सा भी बड़ा मशहूर है, एक इंटरव्यू में खुद वसुंधरा राजे ने इसके बारे में बताया था। उन्होंने बताया था कि जब जीवाजी राव के लिए रानी-महारानियों की तस्वीरें देखी जा रही थीं तो उन्हीं तस्वीरों के बीच में किसी ने मां की तस्वीर गलती से रख दी थी। संयोग ऐसा हुआ कि जीवाजी राव ने भी उसी तस्वीर को उठाकर शादी की इच्छा जता दी थी। वसुंधरा राजे बताती हैं कि वह न तो कोई राजकुमारी थीं और न ही महारानी थीं।

नेहरू भी हो गए थे नाराज: आजादी के बाद मध्यभारत का गठन हुआ तो जीवाजी राव सिंधिया और प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू की मित्रता की खूब चर्चा हुआ करती थी। लेकिन बाद में दोनों के रिश्तों में दूरी आने लगी थी। इस किस्से का जिक्र मध्य प्रदेश राजनीतिनामा नामक किताब में पढ़ने को मिलता है, जिसे दीपक तिवारी ने लिखा है। किताब के अनुसार आजाद भारत के बाद जवाहरलाल नेहरू की लोकप्रियता लगातार बढ़ रही थी, दूर-दूर से लोग उनको सुनने के लिए आया करते थे। एक बार ग्वालियर में एक सभा का आयोजन किया गया था, इस सभा में जीवाजीराव सिंधिया के अलावा सरदार पटेल और पंडित नेहरू भी पहुंचे थे।

जीवाजी राव जैसे ही भाषण देने के लिए उठे तो उनके जयकारों से फिजा गूंज उठी। इसके बाद पूर्व प्रधानमंत्री नेहरू भाषण देने के लिए मंच पर आए तो किसी ने नारा नहीं लगाया, यह बात उनको इतनी नागवार गुजरी कि उन्होंने इसकी नाराजगी अपने भाषण में जताते हुए कह दिया कि ग्वालियर के लोग आज भी अतीत में जी रहे हैं। नेहरू की नाराजगी से जीवाजी को भी दुख हुआ, उन्होंने विश्वास दिलाया कि भविष्य में इस तरह की घटनाएं नहीं दोहराई जाएंगी। किताब के अनुसार, कांग्रेसी नेताओं के भाषण से पहले जीवाजी राव मंच के इर्द-गिर्द अपने लोगों को बिठा दिया करते थे जिनकी जिम्मेदारी ताली बजाना और नारे लगाना हुआ करती थी। कहते हैं कि उस भाषण के बाद जीवाजी और नेहरू के बीच दोस्ती उनके पुराने दिनों जैसी नहीं रही थी।