उत्तराखंड में विधानसभा चुनाव की घोषणा होते ही सूबे के दोनों प्रमुख दलों भाजपा और कांग्रेस में सत्ता हथियाने की लड़ाई तेज हो गई है। इसी के साथ दोनों दलों में आरोप-प्रत्यारोप का दौर भी शुरू हो गया। नेता प्रतिपक्ष और भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष अजय भट्ट ने कहा कि सूबे में विधानसभा चुनाव की घोषणा होने और आदर्श आचार संहिता लागू होने के साथ ही कांग्रेस का भय, आंतक और लूट का शासन खत्म हो गया है। दूसरी ओर, उत्तराखंड के मुख्यमंत्री हरीश रावत और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष किशोर उपाध्याय ने कहा कि भाजपा नेताओं के कारनामों की भी सीबीआइ जांच होनी चाहिए। भाजपा और कांग्रेस दोनों के नेता राज्य में तीन चौथाई बहुमत से अपनी-अपनी सरकारें बनाने का दावा कर रहे हैं। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष किशोर उपाध्याय ने दावा किया की कांग्रेस तीन चौथाई बहुमत लेकर उत्तराखंड में फिर से सत्ता में वापसी करेगी। वहीं प्रदेश भाजपा अध्यक्ष भट्ट ने दावा ठोका है कि राज्य की जनता ने हरीश रावत सरकार को चलता कर देने का मन बना लिया है। उन्होंने आरोप लगाया कि कांग्रेस की सरकार ने उत्तराखंड को जम कर लूटा। प्रदेश का हाल बेहाल है। राज्य में सभी वर्ग कांग्रेस से त्रस्त है।

उत्तराखंड क्रांति दल के अध्यक्ष काशी सिंह ऐरी ने आरोप लगाया कि उत्तराखंड की जनता कांग्रेस और भाजपा दोनों से परेशान हैं। दोनों राजनीतिक दलों की राज्य में सरकारें बनी हैं, परंतु उत्तराखंड के मुख्य मुद्दों से दोनों राजनीतिक दलों की सरकारों ने मुह मोड़े रखा और राज्य को सौगात में खनन माफिया, शराब माफिया और भू माफिया दिए।  उत्तराखंड में भाजपा और कांग्रेस अपने अस्तित्व की लड़ाई चल रही है। जहां हरीश रावत को फिर से सत्ता में लौटने के लिए ऐड़ी-चोटी का जोर लगाना पड़ेगा, वहीं भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष अजय भट्ट को भाजपा को सत्ता दिलाने के लिए अपने राजनीतिक वजूद को दांव पर लगाना होगा।

दोनों नेताओं के लिए उत्तराखंड के विधानसभा चुनाव तलवार की धार पर चलने जैसा है। अगर हरीश रावत कांग्रेस को सत्ता में फिर से वापस लाने में नाकाम रहते हैं तो उनका राजनीतिक वजूद उत्तराखंड और देश की राजनीति में खत्म हो जाएगा। और अगर भाजपा की सरकार सूबे में नहीं बनती है तो ये चुनाव भट्ट के लिए वाटर लू साबित होगा।
भाजपा और कांग्रेस के नेता टिकट पाने के लिए दिल्ली और देहरादून के चक्कर काट रहे हैं और इस समय टिकट पाने के लिए दोनों ही दलों में टिकट के दावेदार एक दूसरे की टांग खिचाई में लगे हैं। दोनों राजनीतिक दलों को टिकट न मिलने पर बागी नेताओं को मनाना टेड़ी खीर साबित होगा। उत्तराखंड में 70 विधानसभा की सीटें हैं, जबकि भाजपा और कांग्रेस में टिकट के दावेदार एक हजार से ज्यादा है।