उत्तराखंड के चार साल तक सीएम रहे त्रिवेंद्र सिंह रावत को विधानसभा चुनाव से एक साल पहले पद से इस्तीफा देना पड़ा। इसके पीछे सत्ता के केंद्रीकरण से लेकर जनता में बढ़ते असंतोष तक कई कारण रहे। आज देहरादून में विधायक दल की बैठक में फैसला हो सकता है कि अगला मुख्यमंत्री कौन होगा। फिलहाल इस कड़ी में चार नाम आगे हैं। इनमें पहला नाम है धन सिंह रावत का जो वर्तमान में राज्य में शिक्षा मंत्री हैं। दूसरा नाम अनिल बलूनी का है जो कि राज्यसभा सांसद हैं। तीसरा नाम भाजपा सांसद अजय भट्ट का और चौथा नाम केंद्रीय मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक का है।

7 मार्च को भाजपा के उपाध्यक्ष रमन सिंह और राज्य सभा सांसद दुष्यंत गौतम उत्तराखंड आए थे। उन्होंने विधायकों और आरएसएस नेताओं से मुख्यमंत्री के बारे में चर्चा की। सूत्रों ने इंडियन एक्सप्रेस को बताया कि रावत को हटाने का फैसला दिल्ली में पहले ही कर लिया गया था। एक सूत्र ने बताया कि उत्तराखंड में केंद्र से नेताओं को भेजने का यही उद्देश्य था कि अब यहां त्रिवेंद्र सिंह रावत के खिलाफ कार्रवाई होनी है।

पार्टी के नेताओं में और विधायकों में सबसे ज्यादा असंतोष इस बात को लेकर था कि मुख्यमंत्री ने सत्ता की ज्यादातर जिम्मेदारियां या तो खुद संभाल रखी थीं या फिर कुछ लोगों तक ही सीमित थीं। 45 विभाग खुद मुख्यमंत्री के पास थे। इन विभागों को चलाने के लिए मुख्यमंत्री नौकरशाहों पर ही निर्भर थे। एक सीनियर नेता ने कहा कि लोगों को यह शिकायत थी कि नौकरशाह किसी की सुनवाई नहीं करते हैं।

मुख्यमंत्री के पास जो डिपार्टमेंट थे उनमें गृह, विजिलेंस ऐंड लॉ जस्टिस आदि शामिल हैं। एक सीनियर नेता ने कहा कि मुख्यमंत्री कैबिनेट विस्तार भी नहीं कर रहे थे। उत्तराखंड में 12 मंत्री हुआ करते थे जबकि इस समय मुख्यमंत्री को लेकर केवल सात ही थे। सूत्र ने बताया, कुछ नेताओं ने इस बात की शिकायत भी की थी। मंत्रियों में भी ज्यादातर वे लोग थे जो कि चुनाव से पहले कांग्रेस से भाजपा में आए थे।

ऐंटीइनकंबेंसी और जननायक छवि की कमी

यह भी कहा जा रहा है कि ऐंटीइनकंबेंसी के फैक्टर से निपटने के लिए शीर्ष नेतृत्व ने पहले ही मुख्यमंत्री बदलने का फैसला कर लिया था। उत्तराखंड में हर बार सरकार बदलती रही है इसलिए यह 2022 के चुनावों से पहले की तैयारी मानी जा रही है। एक नेता ने कहा, ‘रावत की छवि खराब नहीं थी। उनपर भ्रष्टाचार के आरोप भी नहीं थे। यहां तक की महामारी और चमोली हादसे के दौरान भी उन्होंने अच्छा काम किया। लेकिन नेतृत्व को लग रहा था कि चुनाव के लिहाज से उनका चेहरा ठीक नहीं है क्योंकि वह मास लीडर नहीं थे।’