उत्तराखंड कांग्रेस की फूट सड़क पर आ गई है। 2017 के विधानसभा चुनाव में करारी हार के बावजूद भी कांग्रेस ने कोई सबक नहीं सीखा है। हरीश रावत दिल्ली से देहरादून कांग्रेस के राष्ट्रीय महामंत्री और कांग्रेस कार्यसमिति का सदस्य बनकर जब हवाई अड्डे पहुंचे तो उनके समर्थकों ने तो अगवानी की लेकिन रावत के स्वागत समारोह में प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष प्रीतम सिंह और विधानसभा में कांग्रेस विधायक दल की नेता इंदिरा हृदयेश और उनके खेमे का कोई भी नेता नहीं पहुंचा। इसके उलट प्रीतम सिंह ने कांग्रेस भवन में हरीश रावत के धुर विरोधी और विधानसभा चुनाव में कांग्रेसी उम्मीदवार के खिलाफ बगावत करके चुनाव लड़ने वाले पूर्व मंत्री सजवाण और उनके समर्थकों को कांग्रेस में शामिल कर लिया।
सजवाण को कांग्रेस में शामिल करने पर प्रीतम सिंह का कहना है कि कांग्रेस का दिल बड़ा है और हमारे जो समर्पित कार्यकर्ता पार्टी छोड़कर चले गए थे, उनकी वापसी के बाद कांग्रेस और मजबूत होगी। वहीं सजवाण ने प्रीतम सिंह की तारीफ करते हुए कहा कि वे एक जननेता हैं और कांग्रेस के टिकट पर लगातार विधानसभा चुनाव जीतते आए हैं।
कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव और कांग्रेस कार्यसमिति का सदस्य बनने के बाद हरीश रावत को सबसे पहले कांग्रेस के नेता और जयराम आश्रम के संचालक ब्रह्मस्वरूप ब्रह्मचारी ने दिल्ली में उनका स्वागत किया। ब्रह्मस्वरूप ब्रह्मचारी नारायण दत्त तिवारी, इंदिरा ह्रदयेश, विजय बहुगुणा, प्रीतम सिंह और संजय पालीवाल के खेमे के माने जाते थे। अब ब्रह्मचारी ने हरीश रावत से हाथ थाम लिया है। जहां हरीश रावत समर्थक मान रहे हैं कि उनके नेता को पार्टी का राष्ट्रीय महामंत्री और कांग्रेस कार्यसमिति का सदस्य तथा असम का प्रभारी बनाकर पार्टी हाईकमान ने उनका राजनीतिक कद बढ़ाया है, वहीं उनके विरोधियों का मानना है कि आलाकमान ने रावत को प्रदेश की राजनीति से किनारे कर दिया है। इससे प्रीतम सिंह और नेता प्रतिपक्ष इंदिरा ह्रदयेश खुश हैं।
राजनीतिक विश्लेषक डॉ अवनीत कुमार घिल्डियाल का मानना है कि प्रदेश में हरीश रावत के लिए विधानसभा चुनाव में पार्टी की करारी हार के बाद राजनीति करने के लिए कुछ नहीं बचा था, क्योंकि उनके मुख्यमंत्री रहते कांग्रेस के 9 ताकतवर विधायक भाजपा में चले गए थे। 2017 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस 70 सीटों की विधानसभा में केवल 11 सीटों पर ही सिमटकर रह गई और रावत दो विधानसभा सीटों से चुनाव हार गए थे। हरीश रावत का कहना है कि पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी ने उनपर भरोसा जताकर उन्हें जो राजनीतिक जिम्मेदारी दी है, वे उसे बखूबी निभाने का प्रयास करेंगे।
वहीं, हरीश रावत के राजनीतिक विरोधी प्रीतम सिंह एक जमाने में वे हरीश रावत के दाहिने हाथ माने जाते थे। 2012 में प्रीतम सिंह ने विजय बहुगुणा के मुख्यमंत्री बनने पर हरीश रावत का साथ छोड़ दिया, क्योंकि रावत 2012 में कांग्रेस को छोड़कर भाजपा के साथ राज्य में सरकार बनाना चाहते थे। परंतु प्रीतम सिंह ने कांग्रेस के प्रति वफादारी रखी। वहीं जब विजय बहुगुणा 9 विधायकों के साथ भाजपा में गए तो प्रीतम सिंह ने बहुगुणा का साथ छोड़ दिया। फिर राहुल गांधी ने उनको प्रदेश अध्यक्ष बनाया।
