उत्तराखण्ड के प्रवेश द्वार हरिद्वार में रोड़ी बेलवाला क्षेत्र में गंगा के तट पर 41 करोड़ रुपए की लागत से बनने वाले उत्तर प्रदेश सरकार के 100 कमरों के अत्याधुनिक पर्यटक आवास गृह भागीरथी शिलान्यास के साथ ही विवादों में घिर गया है। हरिद्वार-रुड़की विकास प्राधिकरण से नक्शा पास करवाए बिना ही इस पर्यटक आवास गृह का उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और उत्तराखंड के मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत ने बड़े धूमधड़ाके के साथ शिलान्यास किया। उत्तर प्रदेश सरकार को उत्तराखंड सरकार ने एक समझौते के तहत 87 हजार वर्गफुट जमीन रोड़ी बेलवाला में होटल अलकनंदा के बगल में दी है। उत्तर प्रदेश सरकार ने इसके बदले में 13 हजार वर्ग मीटर भूमि में बने 39 कमरों का होटल अलकनंदा देने का फैसला किया है।
उत्तराखंड सरकार ने कैबिनेट की बैठक में प्रस्ताव पारित करके सिंचाई विभाग की 87 हजार वगर्फुट जो जमीन उत्तरप्रदेश सरकार को पर्यटक आवास गृह बनाने के लिए दी है, उसका भूमि प्रयोग उत्तराखंड सरकार ने कैबिनेट बैठक में सिंचाई भूमि का प्रयोग व्यवसायिक क्षेत्र के लिए तब्दील कर दिया ताकि उत्तरप्रदेश पर्यटन विभाग यहां 100 कमरों का होटल बना सके। उत्तराखंड के हिस्से में जो अलकनंदा होटल आया है उसका निर्माण 1962 में हुआ था और अलकनंदा होटल के परिसर की जमीन सर्किल रेट के हिसाब से 1 लाख 40 हजार रुपए बैठती है, जबकि उत्तराखंड सरकार ने इस होटल के ऐवज में 87 हजार वर्गफुट जमीन पांच मंजिला होटल बनाने के लिए उत्तरप्रदेश पर्यटन विभाग को दी है, उस जमीन की कीमत सर्किल रेट के हिसाब से आठ करोड़ रुपए बैठती है।
उत्तराखंड आंदोलनकारी और वामपंथी नेता आरएन डोभाल का कहना है कि अलकनंदा होटल पाने के लिए उत्तराखंड सरकार उत्तरप्रदेश सरकार के हाथों ठगी गई और उत्तरप्रदेश सरकार के दबाव में उत्तराखंड सरकार ने यह बंटवारा माना है। और उत्तराखंड की परिसंपत्तियों को औने-पौने दामों पर लुटाया जा रहा है। वहीं उत्तराखंड के पर्यटन मंत्री सतपाल महाराज का कहना है कि अलकनंदा होटल का सौदा घाटे का सौदा नहीं है। उत्तराखंड क्रांति दल के राष्ट्रीय अध्यक्ष दिवाकर भट्ट ने आरोप लगाया कि उत्तरप्रदेश और उत्तराखंड में भाजपा की सरकारें हैं। दोनों सरकारें परिसंपत्तियों के बंटवारे के मामले में मनमानी कर रही हैं। और उत्तराखंड सरकार उत्तरप्रदेश सरकार के दबाव में है इसलिए उत्तराखंड की परिसंपत्तियों को लेकर राज्य की जनता के साथ अन्याय किया जा रहा है।
अलकनंदा होटल अभी उत्तरप्रदेश सरकार के ही कब्जे में हैं। इस होटल के नॉडल अधिकारी सुभाष अग्रवाल का कहना है कि इस होटल में 39 कमरें हैं और उत्तरप्रदेश पर्यटन विभाग में जिस एक लाख 19 हजार वर्गफुट जमीन पर बीते सोमवार को शिलान्यास कार्यक्रम किया था वह जमीन उत्तरप्रदेश सरकार के अलकनंदा होटल की हैं और 1962 से यह जमीन हमारे कब्जे में है। उत्तराखंड सरकार ने केवल इस जमीन के भू प्रयोग की अनुमति दी है। जब उत्तराखंड सरकार के सिंचाई, लोक निर्माण तथा अन्य विभाग उत्तरप्रदेश पर्यटन विभाग को इस जमीन पर होटल बनाने के लिए अनापत्ति प्रमाण पत्र दे देंगे, तब ही इस होटल में निर्माण कार्य शुरू किया जा सकेगा। और निर्माण कार्य शुरू करने के दो साल बाद अलकनंदा होटल उत्तराखंड के कब्जे में आएगा।
हरिद्वार विकास प्राधिकरण के अधिकारियों का कहना है कि अलकनंदा होटल के पास जो गंगा नदी बह रही है वह गंगनहर की श्रेणी में आती है। पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत सरकार के जमाने में हरकी पैड़ी से लेकर मायापुर और कनखल तक गंगा नदी को एक शासनादेश के तहत गंगनहर घोषित किया था जिसका हरिद्वारर के तीथर्पुरोहित जमकर विरोध कर रहे हैं। वहीं 1986 में बने कैलाश चंद्र आयोग और 1996 में बने राधा कृष्ण अग्रवाल आयोग के मुताबिक रोडी बेलवाला कुंभ क्षेत्र में किसी भी तरह का भवन निर्माण नहीं हो सकता है। इस तरह उत्तरप्रदेश पर्यटक आवास गृृह भागीरथी अपने शिलान्यास के साथ ही विवादों में फंस गया है।
समारोह में आपा-धापी मची रही
उत्तरप्रदेश पर्यटन विभाग द्वारा शिलान्यास किए गए पर्यटक आवास गृह भागीरथी को लेकर शिलान्यास समारोह में आपा-धापी सी मची रही। मंच पर समुचित सम्मान न मिलने के कारण कई संतों ने इस समारोह का बहिष्कार किया। योगगुरु स्वामी रामदेव जब मंच पर पहुंचे तो उनके बैठने की कुर्सी अग्रिम पंक्ति में नहीं लगाई गई थी, तो वे भी नाराज होकर मंच से नीचे उतर गए। और भूमि पूजन के बाद मंच पर बैठने की बजाय वे समारोह स्थल से चले गए। इसी तरह जयराम आश्रम के महाराज ब्रह्मस्वरूप ब्रह्मचारी, बैरागी संत बाबा हठयोगी, महामंडलेश्वर स्वामी हरिचेतनानंद समेत कई संतों ने नाराज होकर समारोह का बहिष्कार किया। बाबा हठयोगी का कहना है कि उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के मंच पर संतों को समुचित सम्मान नहीं दिया गया। भाजपा के नेताओं और मंत्रियों को अग्रिम पंक्ति में बैठाया गया और संतों को उनके पीछे स्थान दिया गया। जो संतों का घोर अपमान है।
