जम्मू कश्मीर की मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती की अपील के बाद केन्द्र सरकार ने भारतीय सेना के आॅपरेशन आॅल आउट को रोकने का फैसला किया था। ये फैसला रमजान के पवित्र महीने के कारण लिया गया और एकतरफा संघर्ष विराम घोषित कर दिया गया। लेकिन सियासत का ये फैसला अब आम जनता और सुरक्षाबलों पर भारी पड़ रहा है। पाकिस्तानी गोली से अखनूर में आठ महीने के बच्चे की मौत हो गई। वहीं देहरादून के रहने वाले कमांडेंट दीपक नैनवाल ने भी आतंकियों से मुठभेड़ और 40 दिन तक मौत से संघर्ष के बाद वीरगति प्राप्त की। जब उनका शव देहरादून लाया गया तो पांच साल की उनकी बेटी की प्रतिक्रिया देखकर हर आंख नम हो गई।
शहीद कमांडेंट दीपक नैनवाल की पांच साल की बेटी समृद्धि ये नहीं जानती थी कि उसके पापा ने कितनी बड़ी कुर्बानी दी है और उसके मायने क्या हैं? समृद्धि ने सिर्फ इतना बताया कि उसके पापा अमर हो गए हैं। अब वो कभी अपने पापा की गोदी में नहीं बैठ पाएगी। शहीद दीपक नैनवाल को एक बेटा और बेटी हैं। उनकी पत्नी ज्योति भी रोते हुए बेहाल हो गईं।

मेरे पापा सितारा बन गए: जब शहीद के शव को सेना की टुकड़ी ताबूत में लेकर आई तो आसमान शहीद की जय—जयकार से गूंज उठा। वहां खड़े हर आदमी की आंख में गुस्सा और नमी थी। कश्मीर में रहते हुए दीपक नैनवाल जब भी घर पर फोन करते तो अपनी लाडली समृद्धि से बात करना नहीं भूलते थे। जब उनका शव अंतिम दर्शन के लिए रखा गया तो कुछ समय तक मासूम समृद्धि कुछ भी समझ नहीं सकी। वह सिर्फ टकटकी लगाए अपने पिता की तरफ देखती रही। उसे उम्मीद थी कि पापा उससे कुछ बात करेंगे। लेकिन बाद में उसने उम्मीद छोड़ दी। जब मुख्यमंत्री त्रिवेंद सिंह रावत ने बच्ची से बात की तो उसने सिर्फ यही कहा,”मेरे पास अब आसमान में जाकर सितारा बन गए हैं।” इस जवाब को सुनकर मुख्यमंत्री भी फफककर रो पड़े।
40 दिन तक किया संघर्ष: बता दें कि बीते 10 अप्रैल को आतंकियों से मुठभेड़ के दौरान कमांडेंट दीपक नैनवाल को सीने पर गोलियां लगीं थीं। उनका इलाज पुणे के सैनिक अस्पताल में किया गया था। करीब 40 दिन तक जीवन और मौत संघर्ष करने के बाद उन्होंने वीरगति हासिल की थी। मंगलवार की सुबह उनका शव उनके देहरादून स्थित पैतृक आवास में लाया गया तो हाहाकार मच गया था। शहीद को श्रद्धांजलि देने के लिए मुख्यमंत्री त्रिवेंद सिंह रावत भी आए थे।