उत्तराखंड में यूनिफॉर्म सिविल कोड (UCC) का ड्राफ्ट सरकार को मिल चुका है। रंजना प्रकाश देसाई की अध्यक्षता में गठित समिति ने लंबे इंतजार के बाद अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंप दी है। विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने वादा किया था कि सरकार में आने के बाद समान नागरिक संहिता को लेकर कानून बनाया जाएगा। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने कहा कि हमें ड्राफ्ट मिल चुका है। अब इसे कानूनी जामा पहनाए जाने की तैयारी कर ली गई है। 6 फरवरी को इस ड्राफ्ट को विधानसभा में पेश किया जा सकता है। विधानसभा से अध्यादेश को मंजूरी दिए जाने के बाद इसे राज्यपाल के पास भेजा जाएगा। राज्यपाल की मंजूरी के बाद उत्तराखंड देश का पहला राज्य बन जाएगा, जहां समान नागरिक संहिता लागू हो जाएगी।
यूनिफॉर्म सिविल कोड क्या है?
यूनिफॉर्म सिविल कोड यानी सभी नागरिकों के लिए समान नागरिक कानून। इसका अर्थ हुआ कि सभी नागरिकों के लिए धर्म और जाति से ऊपर बढ़कर एक जैसा कानून लागू होगा। फिलहाल अलग-अलग धर्मों के लिए अलग कानून हैं। ऐसे में असमानता की भावना सामने आती है। यूनिफॉर्म सिविल कोड देश के सभी नागरिकों पर लागू होता है, फिर चाहे वो किसी भी धर्म या क्षेत्र से संबंधित हो। देश के संविधान में भी इसका उल्लेख है। संविधान के अनुच्छेद 44 में समान नागरिक संहिता का जिक्र किया गया है।
उत्तराखंड में UCC से क्या-क्या होंगे बदलाव?
सूत्रों के मुताबिक उत्तराखंड में यूसीसी को लेकर जो ड्राफ्ट सरकार को दिया गया है उसमें कमेटी ने लड़कों के लिए शादी की उम्र 21 साल और लड़कियों की 18 साल निर्धारित की है। इसके अलावा तलाक के लिए महिला और पुरुष को बराबर अधिकार दिए गए हैं। महिला अगर दोबारा शादी करना चाहती है तो उस पर किसी भी तरह की शर्त नहीं होगी। इस कानून में हलाला को लेकर भी सख्त सजा का प्रावधान किया गया है। हलाला जैसे मामले में तीन साल की सजा और एक लाख रुपये का जुर्माना लगाया जा सकता है। अगर पति या पत्नी में से कोई भी जिंदा है तो वह दूसरी शादी नहीं कर सकेंगे।
यूसीसी के ड्राफ्ट में विवाह के साथ ही तलाक का भी रजिस्ट्रेशन अनिवार्य कर दिया गया है। ड्राफ्ट में बेटी और बेटी के लिए संपत्ति में समान अधिकार की बात कही गई है। इसके अलावा अलावा पति-पत्नी के तलाक़ या घरेलू झगड़े के दौरान पाँच साल तक के बच्चे की कस्टडी मां को मिलेगी। संपत्ति में जायज और नाजायक बच्चों को समान अधिकार दिए हैं।
लिव इन के लिए रजिस्ट्रेशन अनिवार्य
यूनिफॉर्म सिविल कोड में सभी वर्ग के लोगों को लिव इन रिलेशनशिप में रहने के लिए रजिस्ट्रेशन को जरूरी किया जाएगा। इसके लिए एक पोर्टल बनाया जाएगा जिस पर रजिस्ट्रेशन होगा। ऐसे रिश्तों में रहने वाले लोगों को अपने माता- पिता को भी जानकारी देनी होगी। लिव- इन रिलेशनशिप में रहने वालों के लिए पुलिस में रजिस्ट्रेशन कराना होगा। हर शादी के रजिस्ट्रेशन के लिए गांव- कस्बे में सुविधा दी जाएगी। अगर किसी ने शादी का रजिस्ट्रेशन नहीं कराया है तो उसकी शादी अमान्य मानी जाएगी। पंजीकरण न कराने पर छह माह की सजा या 25 हज़ार जुर्माना लगाया जाएगा।
बुजुर्गों का भी रखा गया ध्यान
यूसीसी के नए ड्राफ्ट के मुताबिक नौकरीशुदा बेटे की मृत्यु पर पत्नी को मिलने वाले मुआवजे में वृद्ध माता-पिता के भरण पोषण की भी जिम्मेदारी दी गई है। अगर पत्नी पुर्नविवाह करती है तो पति की मौत पर मिलने वाले कंपेंशेसन में माता पिता का भी हिस्सा होगा। पत्नी की मृत्यु होने की स्थिति में उसके माता-पिता का सहारा नहीं रहने की स्थिति में उनकी देखरेख की जिम्मेदारी पति पर होगी। यूसीसी महिला अधिकारों पर केंद्रित है। इससे आदिवासियों को छूट मिल सकती है।