उत्तराखंड के दो गांवों में ग्रामीणों को संस्कृत सिखाने के लिए एक प्रोजेक्ट में प्रगति मिलने के बाद राज्य सरकार ने मंगलवार (8 सितंबर, 2020) को एक अहम निर्णय लिया। इसके मुताबिक प्रदेश भर में अब ‘संस्कृत ग्राम’ बनाया जाएगा और इसके लिए अधिकारियों को भी मंजूदी दे दी गई। उत्तराखंड में संस्कृत दूसरी आधिकारिक भाषा है।

हाल में उत्तराखंड संस्कृत अकादमी की एक बैठक हुई, जिसका अध्यक्षता खुद मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने की। मीटिंग में शुरुआती कार्यक्रम के लिए गांवों की लिस्ट तैयार की गई। जिसमें संस्कृत भाषा के प्रचार को पहले जिला स्तर और फिर ब्लॉक स्तर पर चलाया जाएगा। इसी बैठक में संस्कृत अकादमी का नाम बदलकर उत्तरांचल संस्कृत संस्थान हरिद्वार (उत्तराखंड) करने का निर्णय लिया गया।

राज्य सरकार प्रदेश में अभी 97 संस्कृत स्कूल चलाती है जिसमें हर साल औसतन 2,100 बच्चे शिक्षा ग्रहण करते हैं। इधर अकादमी के सचिव डॉक्टर आनंद भारद्वाज ने बताया कि चमोली जिले में किमोथा और बागेश्वर जिले में भंटोला गांव को पहले संस्कृत गांवों के रूप में विकसित किया गया। उन्होंने बताया कि यहां के निवासियों ने अपनी दैनिक बातचीत में देवभाषा यानी संस्कृत भाषा का इस्तेमाल करना शुरू कर दिया है। लोग संस्कृत भाषा में लोकगीत भी गाते हैं। इससे पहले केरल में ही ऐसा एकलौता गांव है जहां के निवासी सिर्फ संस्कृत में बात करते हैं।

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उत्तराखंड सरकार ने इसके लिए हरिद्वार, उत्तरकाशी, चमोली, रुद्रप्रयाग, टिहरी गढ़वाल, देहरादून, पौड़ी गढ़वाल, नैनीताल, अल्मोड़ा, पिथौरागढ़, चंपावत और ऊधम सिंह नगर जैसे जिलों को चिन्हित किया है। अधिकारियों के मुताबिक संस्कृत स्कूलों की उपलब्धता के अनुसार गांवों का चनय किया गया ताकि शिक्षक आसानी से गांवों का दौरा कर सके और ग्रामीणों को संस्कृत सीखने और इसका इस्तेमाल करने के लिए प्रेरित कर सकें।

अधिकारियों के अुसार सबसे अधिक ध्यान स्कूल जाने वाले बच्चों पर होगा, ताकि कम उम्र वो संस्कृत भाषा सीख सकें। भारद्वाज के अनुसार हमारा उद्देश्य लोगों को संस्कृत का नियमित रूप से इस्तेमाल करना सिखाना है। ये कार्यक्रम छोटे वाक्यों को सिखाने से शुरू होगा जो आमतौर पर इस्तेमाल किए जाते हैं।