उत्तराखंड में त्रिवेंद्र सिंह रावत के मुख्यमंत्री पद छोड़ने के बाद अब भाजपा हाईकमान ने तीरथ सिंह रावत को यह जिम्मेदारी सौंपी है। गढ़वाल से सांसद तीरथ सिंह राज्य के 21 साल के इतिहास में 10वें सीएम बने हैं। चौंकाने वाली बात यह है कि साल 2017 में वे विधानसभा का टिकट तक बचा पाने में नाकाम रहे थे। हालांकि, जमीनी स्तर पर काम करने के बाद चार साल के अंतराल पर ही वे उत्तराखंड के मुख्यमंत्री की कुर्सी पर पहुंच गए हैं।
चौंकाने वाला रहा तीरथ सिंह रावत का सीएम बनना: दिग्गज भाजपा नेता भुवन चंद्र खंडूरी के राजनीतिक शिष्य माने जाने वाले तीरथ सिंह अपनी साफ-सुथरी छवि, सहज व्यक्तित्व, विनम्र और जमीन से जुड़े भाजपा नेता माने जाते रहे हैं। उत्तराखंड के 10वें मुख्यमंत्री के रूप में उनका चयन प्रदेश में सियासी जानकारों से लेकर आमजन तक सभी को चौंका गया।
भाजपा विधानमंडल दल की बैठक से निकलकर पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत द्वारा उनके नाम की घोषणा से सब इसलिए भी चौंके क्योंकि पिछले चार दिनों से प्रदेश में चल रही सियासी उठापठक के दौरान उनका नाम इस पद के दावेदारों में कहीं भी सुनाई नहीं दिया। तीरथ सिंह को एक सादगी भरे व्यक्तित्व के लिए जाना जाता है जिनके पास कोई भी अपनी बात को लेकर सीधे पहुंच सकता है।
फरवरी, 2013 से लेकर दिसंबर 2015 तक उनके प्रदेश अध्यक्ष के कार्यकाल के दौरान उनकी इसी खूबी ने उन्हें कार्यकर्ताओं के बीच काफी लोकप्रिय बनाया। पौड़ी जिले में स्थित उनके चौबट्टाखाल क्षेत्र के लोग भी उनकी इसी खूबी के कायल हैं, जहां के घर-घर में वह एक जाना-पहचाना नाम हैं।
ABVP में निभाई जिम्मेदारियां, छात्रसंघ अध्यक्ष भी रहे: तीरथ सिंह की इस खूबी के पीछे उनका संघ से लंबा जुडाव भी माना जाता है। 9 अप्रैल 1964 को पौड़ी जिले के सीरों गांव में जन्मे तीरथ सिंह 1983 से 1988 तक संघ प्रचारक रहे। उनके राजनीतिक करियर की शुरुआत अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से हुई जिसमें उन्होंने उत्तराखंड में संगठन मंत्री और राष्ट्रीय मंत्री का पद भी संभाला। तीरथ सिंह हेमवती नंदन गढ़वाल विश्वविद्यालय में छात्रसंघ के अध्यक्ष भी रहे। इसके बाद 1997 में वह उत्तर प्रदेश विधान परिषद् के सदस्य भी निर्वाचित हुए।
2017 में भाजपा ने नहीं दिया था टिकट: साल 2000 में उत्तराखंड बनने के बाद बनी राज्य की अंतरिम सरकार में वह राज्य के प्रथम शिक्षा मंत्री बनाए गए थे। 2002 और 2007 में वह विधानसभा चुनाव हार गए थे। हालांकि, 2012 में वह चौबट्टाखाल सीट से विधायक चुने गए 2017 विधानसभा चुनाव में तत्कालीन विधायक होने के बावजूद उन्हें भाजपा का टिकट नहीं मिला और कांग्रेस छोड़कर पार्टी में आए सतपाल महाराज को उनकी जगह चौबट्टाखाल से उतारा गया। इस बात का जिक्र करते हुए उनकी पत्नी डॉ. रश्मि, जो कि साइकोलॉजी की प्रोफेसर हैं, ने कहा कि उन लोगों को उस समय बहुत बुरा लगा था। उन्होंने कहा कि रावत एक गंभीर व्यक्ति हैं और ज्यादा बोलते नहीं हैं।
बता दें कि तीरथ सिंह रावत की पत्नी रश्मि रावत अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) की उनकी पुरानी सहयोगी हैं। उत्तर प्रदेश के मेरठ से आने वाली रश्मि की तीरथ रावत से दिसंबर 1998 में हुई थी। उन्होंने एक न्यूज चैनल को बताया कि विद्यार्थी परिषद में साथ आगे बढ़ने के बाद दोनों ने शादी की। रश्मि के मुताबिक, मीडिया में भले ही सीएम के लिए तीरथ के नाम पर चर्चा नहीं थी, पर उन्हें विश्वास था कि एक दिन उन्हें इसका मौका जरूर मिलेगा।
लोकसभा चुनाव में राजनीतिक गुरु के बेटे को दी शिकस्त: हालांकि, बाद में भाजपा ने उन्हें राष्ट्रीय सचिव बनाकर उनकी नाराजगी दूर की। इस बीच, 2019 के लोकसभा चुनावों में उनके राजनीतिक गुरु खंडूरी के चुनावी समर में उतरने की अनिच्छा व्यक्त करने के बाद भाजपा ने उन्हें पौढ़ी गढ़वाल सीट से टिकट दिया और वह जीतकर पहली बार संसद पहुंचे।
लोकसभा चुनाव में तीरथ सिंह ने कांग्रेस प्रत्याशी और खंडूरी के पुत्र मनीष को 3,02,669 मतों के अंतर से शिकस्त दी। उन्होंने खुद भी स्वीकार किया कि उन्होंने कभी यह कल्पना भी नहीं की थी कि छोटे से गांव से उठकर वह मुख्यमंत्री बन जाएंगे। तीरथ सिंह ने ऐसे समय में प्रदेश की बागडोर संभाली है जब राज्य में होने वाले विधानसभा चुनाव में एक साल से भी कम का समय शेष है। विधानसभा चुनावों में जिताकर पार्टी की सत्ता में दोबारा वापसी तीरथ सिंह के लिए एक बड़ी चुनौती होगी।