उत्तराखंड में पांच जून को यमुनोत्री के लिए रवाना हुए मध्य प्रदेश के तीर्थ यात्रियों की बस जिस तरह सड़क दुर्घटना का शिकार हुई और 26 यात्रियों की मौत हुई, उस घटना ने सब को झकझोर कर रख दिया और लोक निर्माण विभाग द्वारा बनाई जा रही इन सड़कों की पोल खोल कर रख दी।
जिस स्थान पर यह हादसा हुआ, उसी स्थान पर सड़क किनारे सुरक्षा दीवार नहीं थी, जबकि सड़क के इस मोड़ के नीचे गहरी खाई थी। जब उत्तराखंड के परिवहन मंत्री ने घटनास्थल का दौरा किया तो उन्होंने सड़क किनारे पैरामीटर दीवार खड़ी ना होने पर आश्चर्य जताया और कहा कि सड़क के ऐसे मोड़ पर सुरक्षा दीवार होनी चाहिए।
राज्य सरकार ने इस मामले की न्यायिक जांच बिठा दी है और राज्य का परिवहन विभाग भी इस मामले की जांच करेगा। यह मामला प्रथम दृष्टया दुर्घटनाग्रस्त बस के चालक द्वारा एक अन्य वाहन को पीछे छोड़ कर अपना वाहन आगे करने की होड़ में हुआ जबकि घायल बस चालक ने राज्य के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी को बताया कि उसकी बस की स्टेयरिंग खराब होने से हादसा हुआ।
उत्तराखंड की चार धाम यात्रा के दौरान हुई सड़क दुर्घटनाओं में यह सबसे बड़ी सड़क दुर्घटना है जिसने लोगों के भीतर डर बैठा दिया। कुछ साल पहले देहरादून चकराता मार्ग में भीषण सड़क दुर्घटना हुई थी और जिसमें 13 लोगों की जान चली गई थी। तब भी सरकारी महकमे ने सड़क दुर्घटनाएं रोकने के लिए कई कदम उठाने की घोषणाएं की थी परंतु वे समय के साथ ठंडे बस्ते में चली गई।
हर सड़क हादसे के बाद राज्य का सरकारी महकमा वाहनों के लाइसेंसों की जांच और क्षमता से ज्यादा सवारियां भरने जैसे मामलों की जांच करता है और मृतकों कि परिजनों को मुआवजा बांटने के बाद शांत बैठ जाता है। सड़क दुर्घटनाओं की जांच की फाइलें धूल फांकती रहती हैं।
उत्तराखंड पर्वतीय क्षेत्रों में सड़क दुर्घटनाओं की मुख्य वजह क्षमता से ज्यादा वाहनों में सवारियां भरना, वाहनों की फिटनेस न होना, वाहनों का तेज गति से चलना, वाहन चालकों की लापरवाही होना तथा सड़क किनारे सुरक्षा दीवार (पैराफिट) का न होना होता है। सड़क सुरक्षा के तमाम दावों के बावजूद उत्तराखंड की सड़कों पर हादसे थमने का नाम नहीं ले रहे हैं।
शायद ही साल का कोई ऐसा महीना हो जब कोई सड़क हादसा ना होता हो। जब पर्वतीय क्षेत्रों के राष्ट्रीय राजमार्गों में सड़क हादसे थमने का नाम नहीं ले रहे हैं वही देखने में आया है कि राज्य के पर्वतीय क्षेत्रों की ग्रामीण सड़कें तो बहुत खतरनाक और जानलेवा हैं।
पांच साल में आठ हजार हादसे
पांच साल में उत्तराखंड में 7993 हादसे हो चुके हैं, जिनमें 5028 लोगों की जान चुकी है। पांच साल का तुलनात्मक अध्ययन बताता है कि पर्वतीय राज्य उत्तराखंड में हर वर्ष औसत 1500 के करीब सड़क दुर्घटनाएं होती है और हर वर्ष 900 लोग मौत का शिकार होते हैं।
राज्य परिवहन विभाग के आंकड़ों के मुताबिक उत्तराखंड में 2016 में 1591 सड़क दुर्घटना हुई थी, जिनमें 962 लोग मारे गए थे, वही 2017 में 1603 सड़क दुर्घटनाएं हुई, जिनमें 942 लोग मारे गए, 2018 में 1468 सड़क दुर्घटना हुई, जिनमें1047 लोग मरे, 2019 में 1353 दुर्घटनाओं में 886 लोगों की मौत हुई। 2020 में 1041 सड़क दुर्घटना में 674 की जान गई जबकि 20 21 में 876 सड़क दुर्घटनाओं में 517 लोगों की मौत हुई। 2022 में अभी तक हुई सड़क दुर्घटनाओं के आंकड़े प्रशासन के पास पूरी तरह उपलब्ध नहीं है।
देहरादून हादसे में 13 की हुई थी मौत
कुछ साल पहले देहरादून चकराता मार्ग में भीषण सड़क दुर्घटना हुई थी और इसमें 13 लोगों की जान चली गई थी। तब भी सरकारी महकमे ने सड़क दुर्घटनाएं रोकने के लिए कई कदम उठाने की घोषणाएं की थी परंतु वे समय के साथ ठंडे बस्ते में चली गई।