राष्ट्रीय लोक दल की उत्तर प्रदेश इकाई के अध्यक्ष मसूद अहमद ने विधानसभा चुनाव में पार्टी के टिकट बेचे जाने का आरोप लगाते हुए इस्तीफा दे दिया। जयंत चौधरी को शनिवार को लिखे पत्र में मसूद ने सपा और रालोद गठबंधन नेतृत्व पर तानाशाही का रवैया अपनाने का आरोप भी जड़ा।

मसूद ने सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव पर गंभीर आरोप लगाते हुए कहा कि उन्होंने मनमर्जी से पैसे लेकर टिकट दिए जिससे गठबंधन बिना बूथ अध्यक्षों के चुनाव लड़ने पर मजबूर हुआ। मसूद ने जयंत और सपा अध्यक्ष पर तानाशाह की तरह काम करने का आरोप लगाते हुए कहा कि स्वामी प्रसाद मौर्य को बिना सूचना के फाजिलनगर भेजा गया। वो चुनाव हार गए। उन्होंने सुझाव देते हुए लिखा कि जब तक अखिलेश बराबर का सम्मान नहीं देते, इस गठबंधन को स्थगित कर दिया जाए।

उन्होंने आरोप लगाया कि पैसे के लालच में प्रत्याशियों का ऐलान समय रहते नहीं हुआ और बिना तैयारी के चुनाव लड़ा गया। सभी सीटों पर लगभग आखिरी दिन पर्चा भरा गया। किसी भी प्रत्याशी को यह नहीं बताया गया कि कौन कहां से चुनाव लड़ेगा। कार्यकर्ता आपके और अखिलेश जी के चरणों में पड़े रहे। चुनाव की कोई तैयारी नहीं हो पाई।

मसूद ने लिखा कि चेताने के बाद भी आज समाज पार्टी के अध्यक्ष चंद्रशेखर रावण को अपमानित किया गया, जिससे दलित वोट सपा-रालोद गठबंधन से कटकर भाजपा के पास चला गया। इसका खामियाजा गठबंधन को भुगतना पड़ा। उन्होंने जयंत और सपा अध्यक्ष अखिलेश पर आरोप लगाते हुए पत्र में कहा है कि आपने तथा अखिलेश ने सुप्रीमो कल्चर अपनाते हुए संगठन को दरकिनार कर दिया। लालू यादव व सपा के नेताओं का चुनाव प्रचार में उपयोग नहीं किया गया।

मसूद ने पत्र को अपना त्यागपत्र भी बताकर कहा कि जौनपुर सदर जैसी सीटों पर पर्चा भरने के आखिरी दिन तीन-तीन बार टिकट बदला गया। एक-एक सीट पर सपा के तीन-तीन उम्मीदवार हो गए। इससे जनता में गलत संदेश गया। नतीजा यह हुआ कि कम से कम 50 सीटों पर गठबंधन 200 से लेकर 10,000 मतों के अंतर से हार गया। हालांकि विश्लेषक मान रहे हैं कि हार के बाद इस तरह का घमासान तय था। चुनाव में समाजवादी पार्टी को 111 और राष्ट्रीय लोक दल को आठ सीटें ही हासिल हुई थीं। जाटलैंड में प्रभावी माने जाने वाले राष्ट्रीय लोकदल को पश्चिमांचल में भी खास कामयाबी नहीं मिल सकी।