योगी आदित्यनाथ के वे मंत्री, जो अपने विभाग का औचक निरीक्षण कर सुर्खियां बटोरने में लगे थे, उन्हें अपने विभाग मे तबादलों में हो रहे घपले की भनक तक नहीं हुई। बात गले से नीचे उतरने वाली है तो नहीं, लेकिन सरकार अपने बचाव में अब तक यही दलील देती आई है। पांच साल सरकार चलाने के बाद दूसरी बार पूर्ण बहुमत की सरकार में सेवानिवृत्त अधिकारियों के तबादलों ने योगी आदित्यनाथ की खासी किरकिरी कराई है।
आदित्यनाथ की दूसरी सरकार में उप मुख्यमंत्री बृजेश पाठक, सरकार बनने के बाद अपने स्वास्थ्य विभाग का औचक निरीक्षण कर पहले कार्यकाल में स्वास्थ्य सेवाओं में हुई गड़बड़ी की कापी जांचने निकले थे। शुरू में उन्होंने ऐसा कर खासी सुर्खियां बटोरीं, लेकिन उन्हीं के विभाग में हुए तबादलों में हेर-फेर ने दूध का दूध, पानी का पानी कर दिया। शासन ने गलत तरीके से स्थानान्तरित किए गए 89 चिकित्सकों से जवाब तलब किया।
अब इन 89 चिकित्सकों में से 30 का स्थानान्तरण निरस्त करने की बात कही जा रही है। रही बाकी बचे चिकित्सकों की बात, तो उनके स्थानान्तरण संशोधित करने के निर्देश दिए गए हैं। पाठक के विभाग के महानिदेशक स्वास्थ्य ने स्वीकार किया है कि तबादलों में नियमों का पालन नहीं किया गया।
प्रदेश में दो मंत्रियों, उप मुख्यमंत्री बृजेश पाठक और लोक निर्माण मंत्री जितिन प्रसाद पर आरोप लगे कि स्थानांतरण में इनके विभाग में गड़बड़ी हुई। स्वास्थ्य विभाग में जो स्थानांतरण हुए थे, उसकी शिकायत उप मुख्यमंत्री बृजेश पाठक ने मुख्यमंत्री से की थी। उस पर कोई कार्रवाई नहीं हुई तो पाठक ने इस प्रकरण को गृह मंत्री से साझा किया था। उसके बाद पीएमओ कार्यालय के हस्तक्षेप से जांच कमेटी बनाई गई। स्वास्थ्य के अपर मुख्य सचिव की खूब चली। तबादला नीति में लखनऊ में 15 साल से जमे हुए डा रामानंद का तबादला नहीं किया गया। लेकिन 5 साल कार्यकाल पूर्ण कर लिए डाक्टर मनीष पांडे का स्थानांतरण लखनऊ से बदायूं दिया गया।
उत्तर प्रदेश सरकार के शासनादेश के अनुसार जिस कर्मचारी की सेवानिवृत्ति अवधि दो साल से कम रह जाती है उसका तबादला नहीं किया जाता है। यदि संभव हो तो तबादला उसके गृह जिले में कर दिया जाए, लेकिन लखनऊ से डा रहमान का तबादला सोनभद्र कर दिया गया जिनका कार्यकाल दो साल से भी कम था। स्वास्थ्य विभाग के दो विशेष सचिव ने तबादला नीति पर सवाल भी उठाया था लेकिन अपर मुख्य सचिव स्वास्थ्य ने उसको दरकिनार करते हुए सूची जारी कर दी। जब जांच कमेटी बनी तो उन्होंने दोनों विशेष सचिवों पर दोष मढ़ दिया। जानकारों का कहना है की लोक निर्माण विभाग और स्वास्थ्य विभाग में मंत्रियों से अनुमोदन तो ले लिया गया लेकिन दोनों विभागों के मुखिया ने अपने मन से स्थानांतरण सूची जारी कर दी।
वही हालात लोक निर्माण विभाग का भी है। लोक निर्माण विभाग के स्थानान्तरण के मामले में पीडब्लूडी के प्रमुख को हटा दिया गया। उनके अलावा छह से अधिक अधिकारियों के विरुद्ध निलम्बन की तलवार लटक रही है। पीडब्लूडी मंत्री जितिन प्रसाद स्थानान्तरण के मसले पर जब घेरे में आए तो उन्होंने साफ कहा कि विभाग के मुखिया अधिकारी ने न उनकी सुनी और न उनके कहे पर कोई तबादला किया। पीडब्लूडी में भी कई सेवानिवृत्त अधिकारी स्थानान्तरित किए गए।यो
अधिकारियों पर साधा निशाना
योगी सरकार के एक और मंत्री संजय निषाद ने अधिकारियों पर निशाना साधा है। संजय निषाद ने कहा कि कुछ अधिकारी ऐसे हैं जो अंदर से साइकिल और ऊपर से कमल के होते हैं। राजनीतिक रूप से विपक्षी दलों से जुड़े हैं। यूपी के मत्स्य मंत्री संजय निषाद ने अधिकारियों पर तंज कसा और कहा कि राज्य मंत्रिमंडल में कुछ ऐसे अधिकारी हैं, जो राजनीतिक रूप से समाजवादी पार्टी और बहुजन समाजवादी पार्टी की ओर झुके हुए हैं, लेकिन दिखाते हैं कि वे भाजपा का समर्थन करते हैं।
योगी सरकार के दूसरे कार्यकाल में चले तबादलों के खेल में किस किस पर जांच की आंच आती है और कौन दोषी करार दिया जाता है, यह तो जांच रपट आने के बाद पता चलेगा। लेकिन तबादलों के नाम पर जो हुआ उससे साफ है कि अब भी उत्तर प्रदेश के विभागों में भीतर ही भीतर वह होता है जिसकी भनक तब लगती है जब वह सार्वजनिक होता है। तबादले के इस खेल ने खुद योगी की पेशानी पर बल पैदा कर दिए हैं।