अगले साल उत्तर प्रदेश में होने वाले विधान सभा चुनाव में जातीय समीकरण अहम भूमिका निभाएंगे इस पर ज्यादातर राजनीतिक जानकार सहमत हैं। इसीलिए जब अखिलेश यादव कैबिनेट ने पिछले हफ्ते 17 ओबीसी जातियों को अनुसूचित जाति (एससी) का दर्जा देने की घोषणा की तो इसे चुनावी रणनीति का हिस्सा माना गया। जिन जातियों को एससी वर्ग में शामिल किए जाने का अखिलेश ने फैसला लिया है वो हैं- कहार, कश्यप, केवल, निषाद, बिंद, भर, प्रजापति, राजभर, बाथम, गौड़िया, तुरहा, माझी, मल्लाह, कुम्हार, धीमर, धीवर और मछुआ। इनमें से सभी जातियों का अलग-अलग वोट बहुत कम है ऐसे में ये भला आगामी चुनाव में निर्णायक कैसे हो सकती हैं?

माना जाता है कि सूबे की बड़ी आबादी वाली ज्यादातर जातियां किसी ने किसी पार्टी के साथ जुड़ी हुई हैं। इसीलिए इस बार गैर-यादव ओबीसी जातियों और गैर-जाटव (चमार) दलित जातियों के हाथ में यूपी की सत्ता की कुंजी है। मोटे अनुमान के मुताबिक यूपी में 44 प्रतिशत ओबीसी, 21 प्रतिशत दलित, 19 प्रतिशत मुस्लिम और 16 प्रतिशत अगड़ी जातियां हैं। ओबीसी वर्ग में यादवों की संख्या सबसे ज्यादा है लेकिन सूबे की बाकी 200 से अधिक ओबीसी जातियों की संयुक्त आबादी यादवों से करीब दोगुनी है। कुर्मी (बिहार के सीएम नीतीश कुमार भी इसी जाति से आते हैं), कोइरी, लोध, जाट, सुनार इत्यादि इन गैर-यादव ओबीसी जातियों में अहम हैं। वहीं दलितों में पासी और वाल्मीकि सबसे प्रमुख गैर-जाटव जातियां हैं।

साल 2005 में अगड़ी जातियों और गैर-यादव पिछड़ी जातियों के समर्थन वाले बीजेपी और जेडीयू गठबंधन ने लालू यादव से सत्ता की बागडोर छीन ली थी। भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) 12 साल बाद यूपी में वही समीकरण दोहराना चाहती है। बीजेपी के पास अगड़ी जातियों के बड़े हिस्से का समर्थन पहले से है। केशव प्रसाद मौर्य और अपना दल की नेता अनुप्रिया पटेल जैसे नेताओं को बढ़ावा देकर बीजेपी गैर-यादव ओबीसी जातियों का वोट अपने साथ लाना चाहती है।

समाजवादी पार्टी (सपा), बहुजन समाज पार्टी (बसपा), बीजेपी और कांग्रेस के चतुष्कोणीय मुकाबले में जिसे 30-35 प्रतिशत वोट मिलेंगे वो प्रदेश में अगली सरकार बना लेगा। 2007 के विधान सभा चुनाव में बसपा को 30,40 प्रतिशत वोट मिले थे और वो सरकार बनाने में सफल रही थी। साल 2012 में सपा को 29.15 प्रतिशत वोट मिले थे और सूबे में उसकी सरकार बनी थी। 2012 में बसपा को 25.91 प्रतिशत, बीजेपी को 15 प्रतिशत और कांग्रेस को 11.5 प्रतिशत वोट मिले थे।

2014 के लोक सभा चुनाव में 42.3 प्रतिशत वोट पाने के बाद बीजेपी का हौसला बुलंद है। सपा को पिछले लोक सभा चुनाव में 22.2 प्रतिशत और बसपा को 20 प्रतिशत वोट मिले थे।  लेकिन विधान सभा चुनावों में बीजेपी का प्रदर्शन पिछले कई चुनावों से खराब ही होता जा रहा है। बीजेपी को यूपी विधान सभा में सबसे ज्यादा 32.51 प्रतिशत वोट 1996 में मिले थे। साल 2002 में बीजेपी को 20.12 प्रतिशत और 2007 में 16.97 प्रतिशत और 2012 में 15 प्रतिशत वोट मिले थे।

यादव की बड़ी आबादी सपा को वोट देती है और जाटवों की बड़ी आबादी बसपा को वोट देती है। पिछले कई चुनावों से मुसलमान उसी पार्टी को वोट देते हैं जो बीजेपी को हरा सके। यूपी में अगड़ी जातियों, यादवों, जाटवों और मुसलानों की आबादी करीब 65 प्रतिशत है। बाकी 35 प्रतिशत में गैर-यादव ओबीसी और गैर-जाटव दलित जातियां हैं। इसीलिए 2005 में मुलायम सिंह यादव द्वारा जिन जातियों को एससी का दर्जा दिए जाने का आदेश हाई कोर्ट ने रद्द कर दिया था उन्हीं जातियों को अखिलेश ने चुनाव की घोषणा से ठीक पहले एससी वर्ग में शामिल करने का फैसला किया है। जाहिर है कि अखिलेश को पता है कि राज्य सरकार के पास ओबीसी को एससी का दर्जा देने का अधिकार नहीं है लेकिन चुनावी अभियान में ये फैसला मददगार साबित हो सकता है।

साल 2014 में एक भी लोक सभा सीट न जीते पाने के बाद मायावती ने “भाईचारा” बैठकों द्वारा गैर-जाटव समुदायों को अपने से जोड़ने की कोशिश की है। वहीं बीजेपी ने कुर्मी वोटरों को लुभाने के लिए अनुप्रिया पटेल को केंद्र में मंत्री बनाया है। मिर्जापुर से सांसद अनुप्रिया के पिता सोनेलाल पटेल 1994 में बसपा के महासचिव रह चुके हैं। उन्होंने 1995 में अपना दल का गठन कर लिया था। कुर्मी एवं कोइरी जैसी जातियां पूर्वी उत्तर प्रदेश की कई सीटों पर निर्णायक भूमिका निभा सकते हैं।

सपा भी कुर्मी-कोइरी वोट का महत्व बखूबी समझती है। सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव ने प्रमुख कुर्मी नेता बेनी प्रसाद वर्मा की सपा में घर वापसी करवा ली है। मुलायम ने वर्मा को राज्य सभा सांसद भी बनवाया है। वर्मा 2009 के लोक सभा चुनावों के पहले सपा छोड़कर कांग्रेस में चले गए थे।

राज्य में करीब 4.5 आबादी वाला मल्लाह समुदाय भी चुनाव में अहम भूमिका निभा सकता है। 27 उप-जातियों में विभाजित ये समुदाय यूपी की 127 विधान सीटों में अच्छी दखल रखता है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भारतीय नैविगेशन सिस्टम “नाविक” के उद्घाटन के समय इसे नाविक समुदाय का सम्मान बताया था। वहीं बसपा प्रमुख मायावती भी कश्यप-निषाद समुदाय को पार्टी से जोड़ना चाहती हैं। वहीं मल्लाह समुदाय से आने वाली पूर्व दस्यु फूलन देवी समाजवादी पार्टी से सांसद रही थीं।

जुलाहा और बुनकर समुदाय में हिंन्दू और मुस्लिम दोनों समुदाय के लोग हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पिछले साल बुनकरों को लुभाने के लिए वाराणसी में “उस्ताद” योजना की घोषणा की थी। वाराणसी में मुसलमानों में दो लाख से ज्यादा आबादी है जिनमें से बड़ी संख्या मुस्लिम बुनकरों की है। पूर्वांचल के कई अन्य जिलों में भी बुनकरों की आबादी जीत-हार में निर्णायक भूमिका निभा सकती है।